संपादकीय

सर्वें में गिरावट–राष्ट्रीय मोर्चों पर सरकार असफल क्यों— डॉ नीलम महेंद्र

मार्च 2017 में उप्र के चुनावी नतीजों के बाद देश भर के विभिन्न मीडिया सर्वे में जुलाई तक जिस मोदी
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जो बबूल नहीं बोया वह अब बबूल खा रहा है–शैलेश कुमार

बोयें पेड़ बबूल का आम कहाँ से खाएं ? यह कहावत उल्टा पर गया। जो बबूल बोया वह आम खाया
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कायस्थ —-नई दिशा और नई सोच–शैलेश कुमार

चित्रगुप्त की उत्पति : – विष्णु के मस्तिष्क से उत्पति पुत्र। विष्णु ने कहा यह पुत्र -कायस्थ के नाम से
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उत्तर भारतीयों के लिये गर्व काल -शैलेश कुमार

उत्तर भारतीये मंत्रियो पर गर्व है / गर्व इसलिए नहीं की वे गबन नहीं करते / गवन करने मे महारथ
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कायस्थ एक धोवन बोतल– शैलेश कुमार

कायस्थ एक मानसिक दिवालिया वर्ग ??? अचरज की बात है की आज कायस्थ वर्ग परिचय के लिए मुँहताज है। प्रयोगशाला
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बहुमत का यह मतलब नहीं है जो मन में आये वही कर दें

(अशोक कुमार धनबाद , झारखंड ,से नवसंचार फेसबूक पर वार्तालाप ) जनता में भ्रम है की जब मोदी सरकार को
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35-A जैसे दमनकारी कानूनों का बोझ देश क्यों उठाए–डा० नीलम महेंद्र-

डा० नीलम महेंद्र————- भारत का हर नागरिक गर्व से कहता कि कश्मीर हमारा है लेकिन फिर ऐसी क्या बात है
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काश ! रेल बजट तकनीक पर केन्द्रित होता——-डॉ नीलम महेंद्र

बेहतर होता कि हमारी सरकारें देश के नागरिकों के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझतीं और सरकारी खजाने का प्रयोग दुर्घटना
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दिल्ली में एक रात फैक्ट्री के नाम :–लक्ष्य 350 से अधिक का !!!—शैलेश कुमार

मुझे एक उद्योगपति से काम था , शाम होने पर ,मैंने उनसे कहा की जाने की देरी हो रही है,
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सर खपाने से बेहतर है कुछ अच्छे सोचें–शैलेश कुमार

शुभ प्रभात : व्यक्ति कोई भी हो, अगर उससे किसी भी तरह कि उर्जा नही मिलती हो तो उसके बारे
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