• October 8, 2017

डिजिटल युग में मीडिया की चुनौती–शैलेश कुमार

डिजिटल युग में मीडिया की चुनौती–शैलेश कुमार

डयूज कर्टीज ‘- हमने बहुत से लोगों से बाते की है , उन लोगों का कहना है कि जो भी हो , न्यूज मीडिया से कोई महत्वपूर्ण सूचनाऐं नही मिलती है। टिन की पन्नी से टोपी बनाने वालों से बाते नही करते, वे लोग बुद्धिमान है जिनको विश्वास है कि उन्हे न्यूज मीडिया असफल कर दिया है।
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मीडिया प्रारंभिक अवस्था से लेकर आधुनिक समय तक एक ही समस्या से जुझ रही है -वित्तीय संपूर्णता और कुशल संपादन। प्रारंभिक अवस्था में प्रसार कम था परंतु दक्ष संपादन और कुशल लेख उपलब्ध था। वित्तीय सहयोग भी ठीक-ठाक था।

आधुनिक युग में वित्तीय और प्रसार की व्यवस्था ठीक-ठीक है तो दक्ष संपादन की कमी है। निष्पक्षता दुर्लभ है। निष्पक्षता इसलिए दुर्लभ है की अर्थ की किल्लत है।

यहाॅ निकोलस बैंटली का कहना सही है – समाचार नही है ,यह बढिया समाचार है।

अगर किसी पर से विश्वास उठ जाता है तो लोग विकल्प की तलाश करते हैं। तलाश में जो विकल्प सामने आती है उसकी लोकप्रियता चरमसीमा पर पहुॅच जाती है। इसलिए आज डिजिटल की ओर लोगों का रूझान बढ़ता जा रहा है।

प्रिंट मीडिया और चैनलों से लोगबाग अब ठगा महसूस करते हैं। इसलिए की अब जनता कीे रूचि के अनुसार नहीं, धनदाता और सरकार की रूचि के अनुसार संचालित है। यह अलग बात है कि अपने – अपने क्षेत्र में सभी कि विशेष महत्ता है।

इंटरनेट, कम्यूटर आने से और डिजिटाइज्ड होने के कारण प्रिंट मीडिया की प्रिंटिंग लागत काफी कम हुआ है और नियत समय पर अपने पाठकों तक पहुॅच बनाने में सफल भी हुआ है। ग्राफिक,डिजाइन,फोटोग्राफिक, आॅडियो -वीडियों के प्रसारण में क्रांति आई है।

चैनल हो या प्रिंट मीडिया डिजिटल से अछूत नहीं रह सकता है। डिजिटल के बिना दोनों दंतविहीन सर्प है।

डिजिटाइज्ड होने के बावजूद भी प्रिंट मीडिया दो विंदुओं पर कुशल सेवा देने में अक्षम रही है –

क. दूरस्थ देहात में समय पर नहीं पहुंचना।

ख. खुद पढे या पढ कर सुनाना या सुनना।

चैनल आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में कुशल संचार व्यवस्था देने में सक्षम नही है क्योंकि इसके लिए विद्युत आपूर्ति की आवश्यकता है जिसे सरकार मुहैया करवाने में नाकाम रह रही है। अर्थात यह परजीवी है। चैनल से जागरूकता आई है.-पढने की व्यवस्था खत्म हो गई। सुनने और देखने की व्यवस्था रही है। इससे प्रिंट मीडिया को काफी नुकसान हुआ है।

चैनल, देश की आधी आवादी, निरक्षरों में भी अपने अधिकार और देश के हित की बातें गहरी पैठ बनाने में सहयोगी कि भूमिका निभा रही है इस स्थान को लेने में प्रिंट मीडिया नाकाम रही है।

रेडियों – प्रिंट मीडिया और चैनल से कहीं सुगम संचार व्यवस्था है। वर्तमान में इसकी महत्ता काफी बढा है। रेडियों से सरकार सुगमतापूर्वक एक मजदूर के घर में घुसपैठ कर लेती है। क्षेत्रिय भाषाओं में -चौपाल और कृषि समाचार के लिए आज भी ग्रामीणों में शाम के वक्त उत्सुकता रहती है। बाढ़ जैसे आपदा में यह सहानुभूति की अहम भूमिका में रहती है। विद्युतिहीन बैट्री युक्त साधन है।

अर्थ के दृष्टिकोण से प्रिंट मीडिया और चैनल से कही सुगम है। इसे सुगमतापूर्वक एक जगह से दूसरे जगह ले जाया जा सकता है। साईकिल सवार अपने बगल में रेडियों को लटका लेते हैं, हल जोतनेवाले भी हल जोतते हुए क्रिकेट समाचार सुनते रहते हैं।

वर्तमान में रेडियों की लोकप्रियता घटी है – कारण है, बहुत ही छोटे आकार और सुगम संचार के रूप में मोबाईल ने इसका स्थान ले लिया है। एकदम आंकीककरण। यह डिजिटल संसार में संचार का लघु और आसान रूप है।

मोबाईल-संचार से संपर्क काफी तेजी बढ रहा है। संपर्कसूत्र की आवश्यकता इस स्थित में है की इसके बिना कुछ भी असंभव हो गया है।

अर्थ की दृष्टि से काफी किफायती है। विद्युत खपत भी न के बराबर होता है। इसके लिए विद्यत आपूर्ति व्यवस्था में सरकार भी सजग है।

रेलवे स्टेशन और बस अडडा के खंभे पर भी चार्जिग व्यवस्था की गई है। किफायती होने के कारण हर हाथ में मोबाईल है,घर – घर में पहुॅच है। डिजिटलरूपी यह यंत्र संचार व्यवस्था में क्रांति ला दिया है। मोबाईल ने रेडियों की उपयोगिता प्रायः खत्म ही कर दिया है।

पिछले पंचायत चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव में संपर्क संचार के रूप अग्रिम पंक्ति में रहा है। मोबाईल संदेश का उपयोग कर यह सिद्ध कर दिया गया है कि जन – जन तक पहुॅचने का सबसे सरल और कम खर्चीला साधन है। जनसंपर्क विभाग भी खुल कर उपयोग करने लगा हैं।

एक कहावत है- अगर हम सही राजा हैं तो हमारी कृति की चर्चा आम कानों तक पहुॅचनी चाहिए। यह कैसे पहुॅचे ,यह काम सेनापतियों का है।

डिजिटल के क्षेत्र में मोबाईल का उपयोग व्यवस्थित और सकारात्मक सोच पैदा करने के लिए सरकार बेहतरीन व्यवस्था कर सकती है। हम ’’माई गाव ’’ को ही ले। प्रधानमंत्री जी के मन की बात को एप्प लोड कर कभी भी और कहीे भी सुन सकते हैं।

इसी तरह राज्य से लेकर केन्द्र के सभी विभाग अगर मोबाईल संदेश की समुचित व्यवस्था करे तो सरकार की हर गतिविधियों की जानकारी से जनता अवगत होती रहेगी । यह जनता और सरकार के बीच निष्पक्ष भूमिका अदा कर सकती है। जनता भी बेवाक राय उस विभाग तक भेज सकती है। निष्क्रय विभाग सक्रिय हो जायेगी। जनता का ,जनता के लिए,जनता द्वारा शासन की लोकतांत्रिक परिभाषा की सार्थकता तभी सफल हो सकता है।

विगत सप्ताह आपदा प्रबंधन विभाग, बिहार , घर -घर तक मौसम की जानकारी पहुॅचाने में मोबाईल संदेश का उपयोग किया है, हरियाणा सरकार ने भी ब्लू-ह्वेल गेम से बचने के लिए मोबाईल संदेश भेज कर जनता को खतरे से सावधान किया है। भारत दूर संचार निगम और स्टेट बैंक खुल कर मोबाईल को सूचना संचार के रुप में उपयोग कर रही है।

जनता के साथ सीधे तौर पर संपर्क रखने की योजना सरकार की अच्छी पहल है। संचार क्षेत्र में मोबाईल एक ऐसा साधन है जिसके माध्यम से अंतिम व्यक्ति के घर तक पहुॅचना आसान है। मीडिया के रूप में मोबाईल द्वारा जन- जन तक पहुॅचने के लिए उपयुक्त साधन है।

व्यस्तता और समयाभाव के कारण लोगों में गाथा सुनने का समय नहीं है रेडियो और चैनल की जगह मोबाईल ने ले लिया है। जेब से निकाल कर समाचार सुन लेते हैं फिर जेब में रख लेते हैं। इसने वहन समस्या खत्म कर दिया है । मोबाईल एप्प से हम सिर्फ उत्सुक लोेगों तक पहुॅच सकते है लेकिन अउत्सुक लोगों तक नही।

रिलांयस मोबाईल कंपनी का नारा था – कर लो दुनिया मुटठी में। वास्तव में इसकी सार्थकता अब सिद्ध हो रही है। परिवार से लेकर सरकार अपनी मुटठी में है। वास्तव में जनता ने – सरकार को अपने मुटठी में कर लिया है। इसलिए डिजिटल — मीडिया के रूप में मोबाईल चुनौती नही है, उपलब्धि है। जनता तक पहुॅचने के लिए यह एक सीधा और सरल यंत्र है।

मोबाईल एप्प और वेब मीडिया प्रिंट मीडिया का डिजिटल रूप है। ये वेब मीडिया को मोबाईल एप्प में बदल कर द्रुतगति से जिज्ञासुओं तक पहुॅचने की सक्रिय पहल है। यह एक हद तक सफल भी हुआ है। यात्रा पर भी समाचार, मोबाईल या मोबाईल एप्प पर वेब मीडिया का नाम टाईप कर, पढते देखे जाते हैं। वेब मीडिया को सरल और सुगम बनाने के लिए मोबाईल एप्प या मोबाईल अति सुगम संचार तकनीकी है।

सुरक्षा के लिये पुलिस विभाग ने मोबाईल एप्प और मोबाईल नम्बर जारी किया है जिससे पीडितों से सीधे संपर्क साधने का प्रयास सफल है.प्रशासकीय तंत्र ने मोबाईल नम्बर सार्वजनिक कर -सुगम और सुरक्षित प्रशासन देने के प्रयास में सफल हो रही है.

डिजिटल युग में मीडिया की चुनौती के रूप में एक इंटरनेट आधारित वेब मीडिया भी आ खडा हुआ है। वेब मीडिया जो न्यू मीडिया के रूप में स्थान लेने का प्रयास कर रही हैं। इस मीडिया में एक विशेषता है। अन्य मीडिया की तरह इसका क्षेत्र सीमित नही है। इसका प्रसार क्षेत्र असीमित है और भविष्य भी उज्जवल है।

न्यू मीडिया जो इंटरनेट पर आधारित है इसका डोमेन विदेशों से पंजीवद्ध कराना पडता है इसके कारण देश में इसे नियंत्रण करने की कोई तकनीकी नही है। डोमेन को बंद करने या नियंत्रण करने के लिए पेंचिदा व्यवस्था है।

विदेश मंत्रालय ही डोमेन शासित राष्ट्र को अनुग्रह पत्र जारी करेगी। फिर संबंधित देश के गृह मंत्रालय इसे आवश्यक समझती है तो, डोमेन जारी करने वाले विभाग को नोटिस जारी करेगी।

अगर सरकार प्रिंट मीडिया,चैनल या रेडियो की तरह इसे तोता बनाना चाहती है तो सबसे पहले सूचना एंव तकनीकी मंत्रालय को डोमेन हाॅस्टिंग की व्यवस्था करना होगा।

वर्तमान में सूचना एंव प्राद्योगिकी विभाग के पास वेब मीडिया के लिए डोमेन और हाॅस्टींग करवाने की कोई विकल्प उपलब्ध नही है।

वेब मीडिया नियंत्रण—–

पूर्णतया डिजिटल आधारित वेब मीडिया के संबंध में टेड क्वाईन का कहना है – बाजार के दबाव के परिणाम पर अजय प्राप्त करना है।

टेड का कहना सही है अगर सरकार समुचित संसाधन की व्यवस्था कर देती है तो उपभोक्ताओं के हाथों में बाजार होना तय है। जिसकी शुरूआत हो चुकी है। हम वेब मीडिया के माध्यम से अमेरिका, जर्मनी की राजनीति ही नही वहाॅ कें अर्थ व्यवस्था की पल – पल की खबरें लेकर निवेश में रूचि ले सकते है। वेब मीडिया के माध्यम से रूचि के अनुसार हम विश्व को मुटठी में कर सकते है। इसके लिए डाईटी और माईटी जो सर पर हाथ रखे हैं, अब हाथ- पाॅव मारना होगा। काग की तरह उड़ान भरना होगा। अन्यथा सपनों के महफिल में पुष्पक विमान की कल्पना मात्र रह जायेगा।

मोटापन दूर करने के लिये अमेरिकी कंपनी वेब साईट पर प्रचार कर ग्राहकों को दवा आदि उपलब्ध करवा रही है। प्रतिष्ठित उद्योग अपने विश्व प्रचार के लिये वेब साईट बना रखी है जिस पर आराम से उपभोक्ता अपने समान की तलाश करते है.

वेब मीडिया के लिए डोमेन का पंजीबद्ध कराना आवश्यक है यह डाईटी और माइटी के सामने पहली चुनौती है।

डोमेन पंजीबद्ध के बाद संचालक उस देश या राज्य के किसी जिला का होता है। अर्थात व्यक्ति और संस्था नियंत्रित है। डोमेन की वार्षिक नवीनीकरण आवश्यक है। नवीनीकरण नहीं होने पर स्वयं रद्द हो जाता है। लेकिन यह सरकार पर नहीं संचालक पर निर्भर है।

वेब मीडया के हर लेख या समाचार पर संपादक का स्वामित्व होता है। इसके लिए वह जिम्मेदार है। कोई स्वयं से किसी दूसरे के वेब मीडिया पर अपना लेख या समाचार वेब नहीं कर सकता है। यह नियंत्रित और जिम्मेवार संस्था है।

वेब समाचार को क्षेत्र की संकीर्णता में बांधने की कोई देशी उपाय आज तक नही हुआ है।

उदाहरण के लिए -मैने अपने वेब समाचार साईट के लिए राज्य सरकार से मान्यता हेतु सभी हिंदी राज्यों को ई-पत्र से आवेदन भेजा । कई राज्यों ने तो जबाव ही नही दिया। हरियाणा जैसे राज्यों की सरकार ने लिखा की अब तक कोई प्रावधान नही है। वहीं उत्तरराखंड की सरकार ने जबाव दिया की – कम से कम एक हजार पाठक उत्तराखंड से होनी चाहिए।

प्रेस सूचना कार्यालय से संपर्क किया तो उसने कहा इस संबंध में मंत्रालय की बैठक नही हुई है। सरकार हाॅचपाॅच में है कि इटरनेट आधारित वेब मीडिया को मीडिया की किस श्रेणी में रखा जाय।

जून 2016 में विज्ञापन और दृश्य प्रसार निदेशालय ने वेब मीडिया को न्यू मीडिया का दर्जा दिया है लेकिन आज तक परिभाषित करने में असफल रही है उसी तरह उत्तरप्रदेश सरकार ने भी न्यू मीडिया का दर्जा देकर सहयोग की व्यवस्था की है लेकिन क्षेत्रियता की शर्त का प्रावधान संचालक के संचालन प्रक्रिया में बाधक है।

भारत सरकार ने वेब मीडिया के लिए वही नियम और शर्ते तय कर रखी है जो एक चैनल के लिए है।

सरकार के सामने नियंत्रण सबसे बडी समस्या है।

सरकार, राज्यों और देश में डिजिटल मीडिया को भी अपने अंगुलियों पर नचाना चाहती है जो उपलब्ध तकनीकी के आधार पर अब तक असंभव है। डिजिटल मीडिया अनियंत्रित है।

हमने अमेरिकी चुनाव को वहाॅ के वेब मीडिया के माध्यम से पूर्ण जानकारी ली। गार्जियन पत्रिका को सब्सक्राईब किया तो वहाॅ की चुनावी गतिविधियों की पल-पल की जानकारी मिलती रही। कहने का अर्थ है कि जब अमेरिका जैसे डिजिटल महादेश में इंटरनेट मीडिया अनियंत्रित है तो भारत में इसे एक राज्य तक ही सीमित करने की सोच एक स्वांग वाक ही कहा जा सकता है।

वेब मीडिया में एक और समस्या है- भारत की आवादी और शिक्षा तथा तकनीकी व्यवस्था के कारण इंटरनेट शहरी वातावरण में मुश्किल से 50 प्रतिशत लोगों तक पहुॅच है। दूरस्थ क्षेत्रों में तो बिलकुल पहुॅच है ही नहीं। वर्तमान में जन जागरूकता के क्षेत्र में अन्य मीडिया की तरह सफल नही है।

वेब मीडिया की बाते जब करेंगे तो हम सोशल मीडिया को दरकिनार नही कर सकते हैं। लेकिन इस मीडिया की सच्चाई संदेहो से भरा हुआ है इसीलिए तो पाम डायर ने कहा – सोशल मीडिया सहजतापूर्वक स्वार्थी मीडिया है।

आईटी सेल साइबर क्राईम से संबंधित कोई प्रशिक्षण की रुपरेखा तैयार करती है तो वह वेब मीडिया को सीधे अपने नियंत्रण में रखती है। उसका प्रयास रहता है कि संचालक को इसकी बारिकी तक पहुँचना आवश्यक है।

विद्यालयों और महाविद्यालयों में 2012 में मध्यप्रदेश प्रशासन ने साईबर क्राईम जागरण अभियान चलाया था। इस तरह सरकार वेब संचालकों को कानूनी जानकारी देने की व्यवस्था कर सकती है।

वेब मीडिया के बारे में आज तक सूचना मंत्रालय ने कोई दिशा निर्देश ही तय नही किया है । वह चैनल और प्रिंट मीडिया की शर्तें चिपका रखी है। यह पोस्टरबाजी वेब मीडिया के साथ मूर्खतापूर्ण न्याय है।

वेब मीडिया प्रोत्साहन के लिए क्षेत्रियता विषम संकट है। शुरूआती युग में प्रिंट मीडिया पूरे देश का नेतृत्व करता था। चैनल की भी यही स्तर था लेकिन ज्यो-ज्यों तकनीकी और लोंगों की जागरूता और रूचि में बढोतरी हुई संस्करण का प्रारूप भी बदल गया और इसका संस्करण आज प्रमंडल स्तर पर होने लगा है।

इसी तरह वेब मीडिया में भी ज्यों -ज्यो संचार तकनीकी सुगम होता जाएगा और लोगों की रूझान बढता जायेगा ,लोगों के पास संसाधन होगा तो उपलब्ध तकनीकी के आधार पर क्षेत्र सीमित करना आसान होगा। अभी इसके संबंध में डाइटी और माइटी ही उहापोह की स्थिति में है।

लेख, समाचार की नकल करना आसान हो गया है। किसी साईट से अपने इच्छानुसार कोई भी तथ्य को काट कर चिपका सकते हैं। इसके लिए अगर मूल साईट चाहे तो चिपकाने वाले साईट को नियंत्रित कर सकता है अर्थात चेतावनी दे सकता है। उस पर मूल लेख चुराने का आरोप लगा सकता है। यहाॅ भी पूर्ण नियंत्रित है। बिना किसी लेखक या उक्त साईट के आज्ञा के बिना तथ्य नहीं लिया जा सकता है।

इसलिए यह आरोप की वेब मीडिया के आने से लेख या समाचार चुराने की प्रवृति बढ़ चुकी है सरासर निराधार है।

वेब मीडिया या न्यू मीडिया देखने में और कहने में बहुत ही आसान है लेकिन संचालन के लिए भौतिक रूप से काफी कठिन है।

देश में राज्यवार एक राज्य ब्यूरों पर कम से कम 2 लाख रूप्ये खर्च है। अगर 25 राज्यों में एक -एक ब्यूरों रखा जाता है तो 50 लाख रूप्या मासिक वहन करना पड़ेगा। सरकार के सहयोग के बिना अंसभव है। सरकार ने वेव मीडिया के लिये कम से कम 20 लाख यूनिक विजिटर होना तय किया है जिसके कारण वेब मीडिया के संचालक को सरकारी विज्ञापन या सहयोग नही मिल रहा है।

लेख ,समाचार के लिए संवादक, लेखक सहयोग के लिए आगे आतें है। कुछ दिन तो यह सिलसिला जारी रहता है मगर धीरे -धीरे बंद हो जाता है। अप्रसार क्षेत्र के कारण कई तो समाचार या लेख देना भी नागवार समझता है।

50 लाख रूप्ये वहन करने के वाबजूद भी यह जन- जन तक पहुॅच बनाने में सक्षम नहीं है क्योकि:- सभी के पास कम्यूटर नहीं है। कम्यूटर है भी तो विद्युत नही है। सक्षम वातावरण के लिए सरकार के पास संसाधन नही है।

वेब मीडिया को आसान पहुॅच बनाने के लिए एंड्राइड मोबाईल सक्षम उपाय है। एंड्राइड मोबाईल पर तो किसी भी वेब साईट का नाम टंकित कर पढ़ सकते है। वहीं मोबाईल एप्प से सिर्फ नामित विभाग और वेब साईट की जानकारी मिल सकती है।

अगर एक वाक्यों में कहा जाय तो –डिजिटल, मीडिया के लिये वरदान है चुनौती नही। मीडिया डिजिटल पर आश्रित है अब डिजिटल स्वंय मीडिया का रुप लेने के लिये उत्सुक है।

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