ऊर्जा का संरक्षण आवश्यक

ऊर्जा का संरक्षण आवश्यक

मधुपुर (आशुतोष कुमार)– पाषाण युग से लेकर आज तक मनुष्य निरंतर प्रगति के पथ पर चल 1रहा है। इस यात्रा में ऊर्जा को प्रगति की सीढी कहना गलत नहीं होगा। जैसे-जैसे मनुष्य प्रगति की सीढियां चढता गये वैसे-वैसे ऊर्जा आवश्यकता बढती गई।

बढती जरूरत को पूरा करने के लिए मनुष्य ने कई रूपों में ऊर्जा को खोजना एवं प्रयोग करना शुरू किया। इस प्रकार पत्थर रकड़कर चिंगारी से आग (ऊर्जा) पैदा करने वाला मानव आज अणुओं की टकराहट से बिजली पैदा करने तक पहुंच गया है।

आज रसोई से लेकर खेत खलिहान तक, उद्योग- व्यापार से लेकर सड़क यातायात तक सभी जगह ऊर्जा के बिना जीवन की परिकल्पना नहीं की जा सकती। आर्थिक विकास की मूलभूत आवश्‍यकताओं में से एक ऊर्जा है। समाज के प्रत्‍येक क्षेत्र, चाहे यह कृषि हो, उद्योग, परिवहन, व्‍यापार या घर, सभी जगह ऊर्जा की आवश्‍यकता है। पिछले वर्षों के दौरान जैसे-जैसे देश की प्रगति हुई है, इन क्षेत्रों में ऊर्जा की जरूर बढ़ी है।

प्रगति के पथ पर चलते हुए मनुष्य ने ऊर्जा का विविध रूप में प्रयोग करके अपने जीवन को सरल तो बनाया लेकिन जाने-अनजाने उसने कई संकटों को भी जन्म दे डाला है। इसी प्रकार का संकट है ऊर्जा का।

आज ऊर्जा के असंतुलित और अत्यधिक उपयोग के कारण जहां एक ओर ऊर्जा खत्म होने की आशंका प्रकट हो गई है वहीं दूसरी ओर मानव जीवन, पर्यावरण, भूमिगत जल, हवा, पानी, वन,वर्षा,नदी-नाले सभी के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडराने लगे है। यह संकट विकसित देशों की अत्यधिक उपभोग वाली आदतों के कारण पैदा हुआ है लेकिन इसका परिणाम पूरा विश्व भुगत रहा है।

वनों की कटाई, उद्योगों की चिमनियों से निकलने वाले धुओं, मोटर-गाड़ियों के अत्यधिक प्रचलन आदि के कारण कार्बन डाई आक्साइड की मात्रा में निरंतर बढती जा रही है। 1880 से पूर्व वायुमंडल में आर्बन डाई आक्साइड की मात्रा 280 पाट्र्स पर मिलियन (पीपीएम) थी जो आज बढक़र 380 पीपीएम हो गई है।

आधुनिक युग से पूर्व मनुष्य का जीवन नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर आधारित था लेकिन आज का मनुष्य जीवाश्म स्रोतों (पेट्रोल, डीजल, गैस, कोयला) पर पूरी तरह निर्भर हो चुका है। ऊर्जा के जीवाश्म स्रोत एक बार उपयोग करने के बाद सदा के लिए समाप्त हो जाते हैं, दूसरे इनका भण्डार सीमित है, तीसरे इनसे बड़े पैमाने पर प्रदूषण ,यह चिंता फैल रही है कि ऊर्जा के जीवाश्म स्रोतों के खत्म होने के बाद क्या होगा?

यह सच है कि ऊर्जा के बिना जीवन संभव नहीं है। इसलिए हमें जीवाश्म ईंधन के खत्म होने का इंतजार करने के स्थान पर हमें ऊर्जा के उन स्रोतों को अपनाना होगा जो कभी खत्म नहीं होंगे। विश्व भर में ऊर्जा संरक्षण व ऊर्जा के नवीन श्रोतों को विकसित करने के महत्व को समझा जा रहा है । सभी देश सौर-ऊर्जा को अधिक महत्व दे रहे हैं तथा इसे और अधिक उपयोगी बनाने व इसके विकास हेतु विश्व भर के वैज्ञानिकों द्‌वारा अनुसंधान जारी हैं।

हमारे देश में भी ऊर्जा की आवश्यकता दिन पर दिन विकास व जनसंख्या वृद्‌धि के साथ बढ़ती चली जा रही है। ऊर्जा की बढ़ती माँग आने वाले वर्षो में आज से तीन या चार गुणा अधिक होगी । इन परिस्थितियों में भारत सरकार की ओर से ठोस कदम उठाने की अवश्यकता है। इस दिशा में अनेक रूपों में कई प्रयास किए गए हैं जिनस कुछ हद तक सफलता भी अर्जित हुई है।

‘बायो-गैस’ तथा अधिक वृक्ष उत्पादन आदि इसी दिशा में उठाए गए कदम हैं । पृथ्वी पर ऐसे ऊर्जा संसाधनों की कमी नहीं है जो प्रदूषण रहित हैं । प्रकार के ऊर्जा स्रोतों में उल्लेखनीय हैं सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, लघु बिजली परियोजना, गोबर गैस आदि। भारत में वर्ष भर पर्याप्त मात्रा में सूर्य की रोशनी रहती है। इस रोशनी का विविध रूप में प्रयोग करना संभव है।

विश्व भर में ऊर्जा संरक्षण व ऊर्जा के नवीन श्रोतों को विकसित करने के महत्व को समझा जा रहा है ।घर ऐसे बनाएं जाए जिनसे पर्याप्त रोशनी रहे, इससे बिजली की जरूरत कम पड़ेगी। सोलर कुकर रियायती दर पर दिए जाएं तो लोग खाना पकाने में इसका उपयोग करेंगे। ग्रामीण भारत में ऊर्जा की कमी रहती है। इसके लिए सबसे अच्छा उपाय है गोबर गैस।

गोबर गैस से न केवल मुपऊत में खाना पकेगा अपितु रोशनी भी मिलेगी। इससे बिजली बचेगी। अत: यह आवश्यक है कि हम ऊर्जा संरक्षण की ओर विशेष ध्यान दें अथवा इसके प्रतिस्थापन हेतु अन्य संसाधनों को विकसित करें क्योंकि यदि समय रहते हम अपने प्रयासों में सफल नहीं होते तो संपूर्ण मानव सभ्यता ही खतरे में पड़ सकती है।

सुंदर पहाड़ों, हरे भरे मैदानों वाली दृश्‍यावली के साथ घने जंगलों में बिखरी सुंदरता वाले इस देश में हम भाग्‍यशाली हैं, जो हमें मिला है। यह महत्‍वपूर्ण है कि हम यही स्‍वच्‍छ तथा स्‍वस्‍थ और सुरक्षित पर्यावरण अपनी अगली पीढि़यों को भी दें।

नवीकरण ऊर्जा स्रोतों को अपनाना तथा ऊर्जा संरक्षण के उपाय करना ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने की दिशा में दो महत्‍वपूर्ण कदम हैं जिनसे हम अपने आने वाले पीढ़ी के लिए इस ग्रह को हरा भरा बनाए रख सकते हैं।

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