लेखक के कलम से

जर्मनी से स्पेन, भोजन एवं स्वाद -सतीश सक्सेना

जर्मन लोगों को मैंने अक्सर ट्रेन या बस में शाम ६ बजे के आसपास नेपकिन में दबाये सैंडविच खाते देखा
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कुछ ख़्वाब बुन लेना जीना आसान हो जायेगा —डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’

कुछ ख़्वाब बुन लेना जीना आसान हो जायेगा कुछ ख़्वाब बुन लेना जीना आसान हो जायेगा दिल की सुनलेना मिज़ाज
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हिन्दी तेरी यही कहानी — बरुण कुमार सिंह

हम भारत के लोग! देववाणी की भाषा ‘संस्कृत’ भूल चुके हैं राष्ट्रभाषा हिन्दी पर राजनीति जारी है इंसाफ की सबसे
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शिक्षक – एक अनोखा किरदार — प्रवीण शर्मा

आचार्य द्रोणाचार्य जी ने कहा था – ‘‘शिक्षक कभी साधारण नहीं होता, प्रलय और निर्माण उसकी गोद मे खेलते हैं।”
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शिक्षा-क्षेत्र में रचनात्मक परिवर्तन अपेक्षित

आज ‘शिक्षा’ का अर्थ साक्षरता और सूचनात्मक जानकारियों से समृद्ध होना है और आज की शिक्षा का उद्देश्य किसी शासकीय,
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