लेखक के कलम से

शाबस बिहार पुलिस !– अरुण सिन्हा

शुरू में मुम्बई पुलिस सहयोग नहीं कर रही थी पर डायरेक्ट अड़ंगा भी नही लगा रही थी। जैसे ही बिहार
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आदिवासी दिवस के बहाने अलगाववाद की राजनीति– डॉ, नीलम महेंद्र (लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार)

आदिवासी दिवस के बहाने अलगाववाद की राजनीति वैशविक परिदृश्य में कुछ घटनाक्रम ऐसे होते हैं जो अलग अलग स्थान और
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सब पढ़ें-सब बढ़ें, लेकिन कैसे? —— राजेश निर्मल

दिल्ली ——- देश में 34 साल बाद एक बार फिर से शिक्षा नीति में बदलाव होने जा रहा है। अच्छी
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राममंदिर पर ओवैसी के विरोध का सच—-कृष्णगोपाल मिश्र

ए.आई.एम.आई.एम. (ऑल इंडिया मजलिस ए एतिहाद उल मुसलमीन) के नेता असदुद्दीन ओवैसी ने एक बार फिर राममंदिर के विरुद्ध स्वर
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पाँच अगस्त बस पांच नही — पंकज मुखिया

*पाँच अगस्त बस पांच नही,* *यह पंचामृत कहलायेगा!* *एक रामायण फिरसे अब,* *राम मंदिर का लिखा जाएगा!!* *जितना समझ रहे
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हर दामन में दाग है यहाँ बेदाग कोई दामन नहीं——– डॉ नीलम महेंद्र

हर चेहरे पर नकाब है यहाँ बेनकाब कोई चेहरा नहीं हर दामन में दाग है यहाँ बेदाग कोई दामन नहीं।
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अटल जी की विरासत संभालने वाला ‘लाल’ खुद ही एक विरासत बन गया—– मुरली मनोहर

जिंदगी एक सफर है, सफर करते करते एक दिन राहगीर भी थक जाता है मगर राहें कभी नहीं थकती। इस
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नीतीश का विश्वास, विरोधियों के लिए खड़ी कर रही है बड़ी चुनौती !—–मुरली मनोहर श्रीवास्तव

एक तरफ कोरोना की दहशत तो दूसरी तरफ बिहार विधानसभा चुनाव। इन दोनों को लेकर सभी राजनीतिक दल संवेदनशील हैं।
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अंधविश्वास के नाम पर महिला हिंसा का सच — अमरेन्द्र सुमन

दुमका, झारखंड———– ओझा-गुनी, झाड़-फूँक, जादू-टोना के अंधविश्वास में आकर झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के साथ शोषण-उत्पीड़न, सामुहिक बलात्कार,
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लोकतंत्र तो अधिकार देता है पर उदारवादी नहीं —- डॉ नीलम महेंद्र (लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार)

आज हम उस समाज में जी रहे हैं जिसे अपने दोहरे चरित्र का प्रदर्शन करने में महारत हासिल है। वो
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