• August 20, 2015

प्रारम्भिक शिक्षा में किसी को अनुत्तीर्ण नही करने के प्रावधान को बदला जाना चाहिए -शिक्षा राज्यमंत्री

प्रारम्भिक शिक्षा में किसी को अनुत्तीर्ण नही करने के प्रावधान को बदला जाना चाहिए -शिक्षा राज्यमंत्री

जयपुर -शिक्षा राज्यमंत्री प्रो. वासुदेव देवनानी के प्रारम्भिक शिक्षा में किसी भी विद्यार्थी को अनुत्तीर्ण नही करने के प्रावधान पर पुनर्विचार कर इसमें संशोधन करने का सुझाव दिया है।
प्रो. देवनानी बुधवार को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री श्रीमती स्मृति जुबिन ईरानी की अध्यक्षता में आयोजित केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड (कैब) की बैठक में राजस्थान का प्रतिनिधित्व करते हुए बोल रहे थे।
उन्होंने सुझाव दिया कि शिक्षा को देशानुकूल एवं युगानुकूल बनाते हुए नई शिक्षा नीति का निर्धारण करना चाहिए। विशेषकर सूचना-प्रौद्योगिकी के साथ भारतीय दर्शन, संस्कृति, योग और नैतिक शिक्षा का समावेश करने के अलावा महाराणा प्रताप जैसे शूरवीरों की गाथाओं को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए।
प्रो. देवनानी ने कहा कि वर्तमान में आठवीं कक्षा तक हमारे बच्चों का कोई मूल्यांकन नही हो रहा और उन्हें एक साल बाद ही दसवीं बोर्ड की परीक्षाओं का सामना करना पड़ता है। इससे एक ओर जहां बालक के मन पर बोझ आता है वही उसके परिवार पर भी मानसिक दवाब बढ़ रहा है।
उन्होंने बताया कि हम बालकों को तनावरहित शिक्षा देने के पक्षधर है। इसलिए बालकों की योग्यता का समय-समय पर सही मूल्यांकन होना चाहिए। पिछली बार राज्य में आठवीं के लिए ऐच्छिक बोर्ड की परीक्षा आयोजित की गई, जिसमें डेढ़ लाख विद्यार्थियों ने सहभागिता की थी। इस वर्ष यह संख्या दस लाख को पार कर गई है। शिक्षा राज्यमंत्री ने सुझाव दिया कि प्रत्येक कक्षा के विद्यार्थियों के लिए एक न्यूनतम अधिगम स्तर तय किया जाना चाहिए और इसे अध्यापक की उपलब्धि से जोड़ा जाए, ताकि परीक्षा प्रणाली मात्र तोता रटंत आधारित नही होकर विद्यार्थी की समझ अर्जित ज्ञान के उपयोग आदि की जांच करने वाली हो सकें।
शिक्षा नियामक आयोग बने
प्रो. देवनानी ने सुझाव दिया कि शिक्षा नीति में समय-समय पर परिवर्तन, परिवर्धन करने के लिए विधि द्वारा स्थापित चुनाव आयोग की तर्ज पर एक स्वतंत्र Óशिक्षा नियामक आयोग’ का गठन किया जाना चाहिए, जो कि प्रति दस वर्ष पश्चात सतत् समीक्षा कर शिक्षा नीति में गुणात्मक परिवर्तन करे। साथ ही ÓÓभारतीय शिक्षा सेवा” केडर का भी पृथक से गठन होना चाहिए।

पंडित दीनदयाल उपाध्याय जन्म शताब्दी
उन्होंने सुझाव दिया कि एकात्म मानव-दर्शन के विचार प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जन्म शताब्दी वर्ष में राष्ट्रीय सेवा योजना (एन.एस.एस.) जैसी गतिविधियों को बढ़ाने के साथ ही समाज में सामाजिक समरसता बढ़ाने के लिए विशेष कार्य-योजना बनाई जानी चाहिए।
विद्यालयों में शौचालय सुविधा : राजस्थान सबसे आगे
प्रो. देवनानी ने बताया कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के Óस्वच्छ भारत मिशन’ के अन्तर्गत राजस्थान संभवत देश का सबसे पहला राज्य बनने जा रहा है जहां सभी विद्यालयों में शौचालय की सुविधा मुहैया करवाई जा रही है। मुख्यमंत्री श्रीमती वसुुंधरा राजे ने इस दिशा में विशेष पहल की है।
उन्होंने सुझाव दिया कि राजस्थान की भौगोलिक विषमताओं के मद्देनजर विद्यालयों को विद्युत सुविधा से भी जोडऩे के लिए भारत सरकार से राज्य को अतिरिक्त मदद मिलनी चाहिए,ताकि शौचालयों के साथ ही विद्युत सुविधा भी जुड़ सके और विद्यार्थी कम्प्यूटर शिक्षा और अन्य आधुनिक तकनीक से भी जुड़ सके।
सात लाख के अधिक नामांकन
उन्होंने बताया कि राज्य सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार करते हुए शिक्षकों एवं समाज की भागीदारी को बढ़ाया है। राजस्थान में पिछले तीन वर्षों में सरकारी विद्यालयों का नामांकन 12 लाख से भी कम हो गया था। इस बार हमने न केवल चार लाख प्रति वर्ष घटते हुए नामांकन को रोका है, बल्कि सात लाख से भी अधिक नये नामांकन भी किए है।
प्रो. देवनानी ने बताया कि राज्य में आर्थिक रूप से कमजोर आय वर्ग के 25 प्रतिशत छात्रों की फीस का पुनर्भरण किया जाता है। गत वर्ष 125 करोड़ रुपये का पुनर्भरण किया गया है। इससे प्रतिवर्ष डेढ़ लाख बच्चों का स्कूलों में नया प्रवेश हो रहा है। कक्षा-आठवीं तक पहुंचते-पहुंचते छात्रों की यह संख्या 15 लाख हो जायेगी और पुनर्भरण राशि भी बढ़ कर एक हजार करोड़ रुपये हो जायेगी।
उन्होंने सुझाव दिया कि केन्द्र सरकार को पूर्व प्राथमिक कक्षाओं के लिए भी यह मदद प्रदान की जानी चाहिए अथवा निजी विद्यालयों की मान्यता के साथ ही यह नियम जोड़ा जाना चाहिए कि वे अपने सामाजिक उत्तरदायित्व के रूप में आर्थिक रूप से पिछड़े 25 प्रतिशत बालकों की राशि स्वयं वहन करेगें।
प्री-प्राईमरी कक्षाओं के लिए मदद मिले
प्रो. देवनानी ने बताया कि आर.टी.ई. के अनुसार कक्षा प्रथम में 6 वर्ष की उम्र के बालक को प्रवेश दिया जाता है, जबकि समाज में तीन वर्ष की आयु में ही बालकों को स्कूल भेजने की परिपाटी प्रचलित है। जिसके कारण सरकारी स्कूल प्रवेश के मामलों में पिछड़ रहे है और प्रति छात्र पर व्यय की लागत भी बढ़ रही है।
उन्होंने सुझाव दिया कि राजकीय विद्यालयों में भी प्री-प्राईमरी कक्षाएं प्रारंभ करने के लिए केन्द्र सरकार को वित्तीय मदद प्रदान करनी चाहिए।
आदर्श विद्यालय की परिकल्पना पर कार्य शुरू
प्रो. देवनानी ने बताया कि राजस्थान में प्रत्येक ग्राम पंचायत स्तर पर एक आदर्श विद्यालय की
परिकल्पना पर कार्य आरंभ किया गया है। जहां पर्याप्त भौतिक संसाधनों, शिक्षकों और सम्पूर्ण शैक्षिक वातावरण के साथ कक्षा एक से बारहवीं तक की शिक्षा एक ही परिसर में उपलब्ध हो सकेगी। अगले तीन वर्षों में सम्पूर्ण राज्य में ऐसे नौ हजार से भी अधिक विद्यालय बनाये जायेंगे।
व्यावसायिक शिक्षा
व्यावसायिक शिक्षा को वर्तमान समय की आवश्यकता बताते हुए प्रो. देवनानी ने कहा कि प्रधानमंत्री के Óस्कील इंडिया’ विजन को ध्यान में रखते हुए कौशल विकास पर आधारित व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा के पाठ्यक्रम तैयार करने पर जोर दिया जाना चाहिए। वर्तमान में राजस्थान की हर पंचायत समिति में आई.टी.आई. स्थापित है।
नि:शुल्क और अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 में आंशिक बदलाव जरूरी
प्रो. देवनानी ने बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम-2009 के कुशल क्रियान्वयन के लिए कई महत्वपूर्ण सुझाव दिये और समस्याओं के समाधान कें लिए केन्द्र सरकार से मदद मांगी। उन्होंने कहा कि आयु अनुरूप प्रवेशित समस्त बालकों के लिए विशिष्ट प्रशिक्षण के लिए सर्वशिक्षा अभियान के अन्तर्गत पर्याप्त बजट उपलब्ध करवाया जाये, ताकि स्कूली बच्चों का गुणवत्तापूर्ण विशिष्ट प्रशिक्षण संभव हो सकें। साथ ही केन्द्र सरकार को विद्यालयों की आधारभूत संरचना में सुधार के लिए पर्याप्त बजट उपलब्ध करवाने एवं इस सुधार कार्य को गति प्रदान करने के लिए अधिनियम की धाराओं में भी जरूरी एवं व्यावहारिक परिवर्तन करना चाहिए।
प्रो. देवनानी ने बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 की धारा 29 (सत्त एवं व्यापक मूल्यांकन)के वर्तमान स्वरूप में आंशिक परिवर्तन का सुझाव देते हुए कहा कि सतत् एवं व्यापक मूल्यांकन के दौरान यदि बालक प्रत्येक विषय में न्यूनतम योग्यता अर्जित नहीं कर पाता है तो उसे कक्षा-5वीं कक्षा-8वीं में यह अवसर दिया जाना चाहिए कि वह पिछली कक्षाओं के सभी विषयों में न्यूनतम योग्यताओं का अर्जन कर लेवें। उसके बाद ही उसे अगली कक्षा में क्रमोन्नत किया जाना चाहिए।

बैठक में राज्य के प्रारंभिक शिक्षा सचिव श्री कुंजी लाल मीना भी उपस्थित थे।

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