उर्वरक क्षेत्र के पैकेज में सुधार :- केंद्रीय वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली

उर्वरक क्षेत्र के पैकेज में सुधार :- केंद्रीय वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली
पेसूका  ——————————— केंद्रीय वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली ने आज संसद में प्रस्तुत आर्थिक समीक्षा 2015-16 में बताया गया है कि सरकार ने 2015-16 में उर्वरकों की सब्सिडियों पर सकल घरेलू उत्‍पाद का लगभग 0.5 प्रतिशत यानि 73,000 करोड़ रूपये का बजट रखा है। इस राशि का लगभग 70 प्रतिशत हिस्‍सा यूरिया के लिए आवंटित था जो आमतौर पर सबसे उपयोग किया जाने वाला उर्वरक है। इस प्रकार खाद्य के बाद इसमें सबसे अधिक सब्सि‍डी दी गई है। विविध विनियमों के परिणामस्‍वरूप यूरिया में विकृतियां आई है। ये विकृतियां अनेक विनियमों का परिणाम हैं। ये विकृतियां आपस में एक दूसरे को पोषित करते हुए ऐसा माहौल पैदा करती हैं जिससे प्रतिकूल परिणामों की श्रृंखला को बढ़ावा मिलता है।

पहला, यूरिया को केवल किसी उपयोग के लिए सब्सिडीकृत बनाया गया है। इस तरह की सब्सिडियां एक उत्‍पाद, एक मूल्‍य सिद्धांत का उल्‍लंघन करती हैं। इन विनियमों- केनेलाइजेशन से काला बाजारी को बढ़ावा मिलता हैं।

दूसरा, कालाबाजारी बड़े किसानों की तुलना में छोटे और सीमांत किसानों को प्रभावित करती हैं क्‍योंकि ऐसे लगभग सभी किसानों को कालाबाजार से यूरिया खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ता है।

तीसरा, कुछ यूरिया सब्सिडी छोटे किसानों तक पहुंचने की बजाय सतत अकुशल घरेलू उत्‍पादन में चली जाती है।

सुधार पैकेज में  पहचान की गई हर समस्‍या का समाधान उपर्युक्‍त उर्वरक प्रयोग का तीन प्रकार का क्षरण और विषम मिश्रण का समाधान प्रस्‍तुत करेगा। जिसका उद्देश्‍य छोटे किसानों को लाभ पहुंचाना है।

पहला, यूरिया आयात को डिकनेलाइन करने से आयातकों की संख्‍या में बढ़ोतरी होगी और इससे आयात के निर्णय में ज्‍यादा स्‍वतंत्रता प्राप्‍त होगी और उर्वरक आपूर्ति में लचीलापन तथा मांग में तेजी से परिवर्तन आएगा। यह काम समय रहते होगा क्‍योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण सरकार के लिए कृषि दशाओं के बारे में पूर्वानुमान लगाना और केंद्रीय रूप से आपूर्ति का प्रबंधन करना बहुत कठिन हो रहा है।

दूसरा, यूरिया को पोषण आधारित सब्सिडी कार्यक्रम में शामिल करने से, जो लाभ वर्तमान में डीएपी और एमओपी के बारे में लागू है वहीं बाजार को नियंत्रित करते समय घरेलू उत्‍पादक अपने उर्वरकों में मौजूद पोषाहार की मात्रा के आधार पर एक निर्धारित सब्सिडी के रूप में प्राप्‍त करते रहेंगे तथा उन्‍हें बाजार मूल्‍य भी मिलते रहेंगे। इससे उर्वरक विनिर्माता और अधिक दक्ष होने के लिए प्रभावित होंगे और वे ऐसी स्थिति में लागत कम करके अधिक लाभ कमाने की स्थिति में होंगे जिससे किसानों को लाभ होगा और यूरिया की गुणवत्‍ता में भी सुधार होगा।

आर्थिक समीक्षा 2015-16 में बताया गया है कि उर्वरकों में प्रत्‍यक्ष हस्‍तांतरण को काला बाजार में हेराफेरी को कम करने के लिए लागू किया गया है। नीम की परत चढ़ाने से काला बाजारियों के लिए यूरिया को औद्योगिक उपभोक्‍ताओं के लिए उपलब्‍ध कराना बहुत मुश्किल होगा। हेराफेरी में और कटौती करने तथा उर्वरकों की सब्सिडियों के बेहतर लक्ष्‍यों को हासिल करने के लिए तकनीकी का और अधिक इस्‍तेमाल किया जा सकता है। एलपीजी के सफल अनुभवों के साथ बहुत अधिक समानता के कारण जैम (जनधन, आधार, मोबाइल) सूत्र को आगे बढ़ाने के लिए उर्वरक एक सबसे अच्‍छा क्षेत्र है। केंद्र उर्वरक की आपूर्ति पर नियंत्रण रखता है। ग्रामीण भारत में अंतिम व्‍यक्ति तक वित्‍तीय समावेशी का अपेक्षाकृत कम स्‍तर यह सुझाव देता है कि बैंकिंग प्रणाली में लाभार्थियों के  कमजोर जुड़ाव के कारण उर्वरकों की सब्सिडी नकद देने में जोखिम रहेगा।

बोलियों की सीमित संख्‍या को सीमित रखते हुए सभी लोगों को सब्सिडी प्रदान करना

कितनी बोरियों पर सब्सिडी दी जाए यह तय करना एक बेहतर विकल्‍प होगा। प्रत्‍येक परिवार खरीददारी कर सकता है और बिक्री के संबंध (पीओएस) में उसे बॉयोमिट्रिक प्रमाणीकरण की आवश्‍यकता होगी। जिससे बड़े स्‍तर पर डाइवर्जन करना मुश्किल होगा। सब्सिडीकृत बोरियों की कुल संख्‍या तय करके प्रत्‍येक किसान खरीददारी कर सकता है, जिससे लक्षित सुधार होगा। छोटे किसान अपने लिए सब्सिडीकृत मूल्‍यों पर यूरिया की खरीदारी करने में समर्थ होंगे। लेकिन बड़े किसानों को अपने खरीदे गए कुछ यूरिया के लिए बाजार मूल्‍य चुकाने पड़ेंगे।

आर्थिक समीक्षा में 2015-16 में आगे यह बताया गया है कि उर्वरक  सब्सिडी बहुत महंगी हैं। और यह सकल घरेलू उत्‍पाद की लगभग 0.8 प्रतिशत है। यह सब्सिडी यूरिया के अधिक उपयोग को बढ़ावा देती है जिससे मिट्टी को नुकसान पहुंचने के साथ-साथ ग्रामीण आय, कृषि उत्‍पादकता कम होती है और इनके कारण आर्थिक प्रगति भी प्रभावित होती है। उर्वरक क्षेत्र में सुधार से न केवल किसानों की मदद होगी बल्कि निपुणता में सुधार के साथ-साथ आयात कम होगा और उस समय पर उर्वरकों की उपलब्‍धता सुनिश्चित होगी।             

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