भारतीय लोकतंत्र दल – दल में: आरक्षण गले की हड्डी

भारतीय लोकतंत्र दल – दल में: आरक्षण गले की हड्डी

सत्य शील अग्रवाल  ————–देश के आजाद होने के पश्चात् देश को एक सर्वमान्य एवं जनाकांक्षाओं को पूर्ण करने के लिए संविधान सभा का गठन किया गया.संविधान सभा में सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व रखा गया,ताकि photoआजाद देश में सभी को अपनेपन  का अहसास हो. संविधान के मूल उद्देश्य था देश के प्रत्येक नागरिक को समानता और न्याय का राज्य मिले,

सबको विकास के समान अवसर मिलें, धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र का निर्माण हो सके.इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए जो देश में पिछड़ी जातियां थी अथवा छुआ छूत के अभिशाप से ग्रस्त थीं, को सरकारी योजनाओं,सरकारी प्रतिष्ठानों में नौकरियों में आरक्षण दिला कर राष्ट्र की मुख्य धारा में लाने का अवसर प्रदान किया.

इस व्यवस्था को प्रारम्भ में दस वर्ष के लिए लागू करने का प्रावधान  गया  और उसके पश्चात् इस व्यवस्था पर पुनः विचार करने के पश्चात् ही आगे लागू रखने या न रखने का निर्णय तात्कालिक सरकार के लिए छोड़ दिया गया. परन्तु आज इस व्यवस्था को चलते करीब सात दशक बीत गए कोई भी पार्टी या नेता आरक्षण व्यवस्था को वापिस लेने की हिम्मत नहीं जुटा सका या यह कहे प्रत्येक पार्टी को वोट की चिंता ने इस पर निर्णय नहीं लेने दिया. यदि कोई पार्टी हिम्मत जुटा कर इसकी  समीक्षा भी करती तो विरोधी पार्टी जनमत अपने पक्ष में कर लेती और सत्तारूढ़ पार्टी को पराजय का  मुंह देखना पड़ सकता था. अतः आरक्षण का प्रावधान जस का तस बना रहा.

जब भी आरक्षण को खतम करने या इसकी समीक्षा करने की बात होती है, एक अन्य समुदाय(जाति) अपने को आरक्षित वर्ग में रखने के लिए आन्दोलन करने लगता है, नित्य अनरक्षित अन्य जातियां  पिछड़ी जाति में जुड़ जाती है,और आरक्षित वर्ग का दाएरा बढ़ता जाता है.सभी जातियां आरक्षण नामक हलुआ खाने को उतावली हो चुकी हैं, ताकि कम परिश्रम से अधिकतम लाभ मिल सके या अन्य विद्वान् वर्ग से आगे बढ़ जाय, मलाई दर पोस्ट पर कब्ज़ा जमा ले. सबको बैसाखी चाहिए.

आरक्षण का मूल मकसद तो जब ख़त्म हो जाता है जब आरक्षण का लाभ लेने वाला पिछड़े वर्ग का व्यक्ति संपन्न होते हुए भी हर बार आरक्षण का लाभ लेकर निर्धन और पिछड़े लोग पिछड़ी जाति के अन्य व्यक्तियों को  आरक्षण के लाभ से वंचित कर देता है. नही.

इसी कारण आरक्षण  वर्ग के होते हुए भी गरीब आगे नहीं बढ़ पाते. पिछड़ी जाति के संपन्न लोग ही बार बार आरक्षण का लाभ लेते जा रहे हैं जो आरक्षण के मूल उद्देश्य से बिलकुल प्रथक है जो लोग संपन्न हो चुके हैं, उन्हें क्यों आरक्षण चाहिए या उन्हें क्यों आरक्षण का लाभ दिया जाय ?

क्या वे पिछड़ी जाति के सम्पन्न लोग अपनी ही जाति के विरुद्ध खड़े नहीं हो गए हैं ? क्या उनकी इस हरकत से संविधान की मूल भावना(सबको विकास के समान अवसर प्रदान करना)का उल्लंघन नहीं हो रहा है? क्या सत्तारूढ़ पार्टियों एवं अन्य विपक्षी नेताओं को का कर्तव्य नहीं है,कि कम से कम  आरक्षण का लाभ उपयुक्त पात्र को उपलब्ध कराने की व्यवस्था करें,सिर्फ गरीबो को ही आरक्षण मिले?

किसी भी जाति को उन्नति करने के लिए कुछ समय तक आरक्षण दिलाना सामाजिक समरसता के लिए आवश्यक हो सकता था परन्तु हमेशा हमेशा के लिए ऐसा करना न तो आरक्षित जातियों के लिए हितकारी है, न  ही अन्य जातियों के लिए और न ही देश के स्वस्थ्य विकास के लिए.

इस सन्दर्भ में विस्तार से लाभ हानि का अध्ययन करने का प्रयास करते हैं.

आरक्षित वर्ग के लिए भी अहितकारी है,हमेशा के लिए आरक्षण व्यवस्था;

आरक्षित वर्ग अर्थात जाति को बैसाखी के सहारे की आदत बन जाती है, उसे धूप से बचने के लिए हमेशा छाता चाहिए. अतः उसे कभी भी स्वस्थ्य प्रतिद्वान्विता का स्वाद चखने को नहीं मिलेगा और उसके विकास का रास्ता हमेशा के लिए समाप्त हो जायेगा. उस वर्ग में कभी विद्वान् नहीं बन पायेगा जो देश को दुनिया को एक अच्छा वैज्ञानिक,एक अच्छा डॉक्टर,एक अच्छा इंजिनियर दे सके.और अपने समुदाय का नाम रोशन कर सके, देश दुनिया के विकास में अपना योगदान दे सके. अतः एक समय के पश्चात् उनका देश की मुख्य धारा में शामिल किया जाना चाहिए उनकी विशिष्ट पहचान ख़त्म कर देनी चाहिए.तब ही उक्त पिछड़ा समुदाय अर्थात जाति सबके साथ कंधे से कन्धा मिला कर आगे बढ़ सकेगा .

तथाकथित उच्च जातियों के लिए कितना नुकसानदायक हो सकता है?

प्रत्येक जाति या समुदाय में गरीब वर्ग होता है,माना कुछ वर्ग जाति आधारित अभिशाप सदियों से भुगतते आ रहे थे, हर स्तर पर उनका शोषण किया गया हजारों वर्षों तक उन्हें पद-दलित बना कर रखा गया. अंग्रेजों ने भी इस समस्या का समाधान करने के स्थान पर समाज को विभाजित कर शासन करने में सुविधा के रूप में इस्तेमाल किया. परन्तु आजाद भारत में उन्हें भी सामाजिक न्याय मिलना ही चाहिए था.

अतः उन्हें विकसित समाज के साथ लाने के लिए आरक्षण आवश्यक था, इसलिए ही संविधान निर्माताओं ने संविधान में आरक्षण की व्यवस्था की,और उच्च जातियों ने भी इसे अपना भरपूर समर्थन दिया. परन्तु यह व्यवस्था मात्र दस वर्ष के लिए की गयी थी यह भी उचित माना  जा सकता है की दो या तीन दशक तक इसे विस्तार दिया गया. परन्तु जब इसे छः दशक से अधिक समय तक भी संशोधित किये जाने की  सम्भावना दिखाई नहीं देती तो अवश्य ही अन्य जातियों के मेधावी छात्रो,व्यक्तियों के साथ अन्याय है.

उन्हें सिर्फ उच्च जाति में पैदा होने की सजा कब तक मिलती रहेगी.क्या एक छात्र जो अत्यंत मेधावी है परन्तु उच्च जाति का होने के कारण आगे की शिक्षा से वंचित रह जाता है,सरकारी नौकरी से वंचित रह जाता है,और अपेक्षाकृत कम योग्यता रखने वाला युवक नौकरी प्राप्त कर लेता है,कम योग्यता रखने वाला व्यक्ति अरक्षित वर्ग से होने के कारण पदोन्नति प्राप्त कर लेता है और एक परिश्रमी मेधावी व्यक्ति उच्च वर्ग से होने के कारण पदोन्नति से वंचित कर दिया जाता है उसके मन की कुंठा को वाही समझ सकता है.

क्या परिश्रमी कर्मचारी का प्रमोशन सिर्फ इसलिए नहीं होता की वह उच्च जाति से है, तो उसकी कार्यक्षमता प्रभावित नहीं होगी? उसकी हताशा देश के विकास के लिए अवरोधक सिद्ध नहीं होगी? उच्च जाति के मेधावी छात्र भी इसी देश के नागरिक हैं उनका भी हक़ बनता है की वे अपनी,अपने परिवार की और देश की उन्नति में अपना योगदान दें.यदि आरक्षण नौकरी पाने तक सीमित रहता तो भी ठीक था.परन्तु तरक्की में इस प्रकार से भेदभाव करके सरकार अपने कार्यों (कर्मियों की कार्य क्षमता) में  व्यवधान पैदा कर रही है.

आरक्षण व्यवस्था देश के विकास के लिए कितनी घातक ?

हमेशा के लिए आरक्षण व्यवस्था किसी भी समाज या देश के लिए लाभप्रद नहीं हो सकती.इस व्यवस्था से देश का विकास अवरुद्ध होता है देश को मेधावी,सक्षम,योग्य  और परिश्रमी  युवकों की सेवाएं नहीं मिल पाती.मेधावी एवं योग्य युवक अन्य देशों की ओर रुख करने लगते हैं,और मेधा शक्ति(क्रीमी लेयर ) देश से बाहर चली जाती है. जिससे देश के विकास को अपेक्षित गति नहीं मिल पाती.

आज अमेरिका जैसे सर्वशक्तिशाली राष्ट्र को ऊँचाइयाँ देने का कार्य भारतीय मेधा शक्ति ने ही किया है.वहां पर उच्चस्थ वैज्ञानिक,सफलतम डॉक्टर,सफलतम इंजिनियर अधिक तर भारतीय ही हैं. उनकी मेधा शक्ति का लाभ हमारे देश को नहीं मिल पाया, इसके लिए हमारी आरक्षण व्यवस्था भी एक हद तक जिम्मेदार है. यदि कोई मेधावी युवक अपनी सफलता को लेकर कुंठित होता है तो यह देश के विकास के लिए शुभ नहीं हो सकता.

किसी भी  पिछड़ी जाति को मुख्य धारा में लाने  के लिए आरक्षण के स्थान पर उन्हें पढने लिखने के लिए सभी तरह की अन्य सुविधाएँ,जैसे मुफ्त पुस्तकें, स्टेशनरी, वस्त्र एवं अन्य आवश्यक सामग्री के अतिरिक्त विद्यार्थियों के लिए छात्रवृति इत्यादि.देकर बाजार की प्रतिद्वंद्विता में जीतने योग्य बनाया जाय, तो अधिक उचित उपाय हो सकता है.जिससे किसी पार्टी का राजनैतिक नुकसान भी नहीं होगा,पिछड़ी जातियों का भी उत्थान होगा उन्हें बिना बैसाखी के चलने का हौसला बनेगा,और देश के किसी भी व्यक्ति या समुदाय का नुकसान नहीं होगा, देश के प्रत्येक नागरिक के न्याय हो सकेगा और देश को मेधावी युवको की सेवाएं मिलेंगी. देश को दुनिया के विकसित देशों की श्रेणी में लाया जा सकेगा.

हमारे देश में लोकतंत्र होने के कारण सभी पार्टियों को जनता का समर्थन चाहिए और कोई भी दल ऐसा कोई भी कार्य नहीं करना चाहता जिससे अन्य दलों को उनके विरुद्ध खड़े होने का मौका मिल जाय और वे चुनाव में अपनी हार सुनिश्चित कर लें.क्योंकि हमारे देश की परंपरा बन गयी है सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा उठाये जाने वाले कदम का विरोध करना है, चाहे वह कदम देश हित में या जनहित में ही क्यों न हो. अतः आरक्षण का मुद्दा लोकतंत्र के दल दल में फंस चुका है जिससे निकल पाने की कोई सम्भावना नहीं दीखती.      


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  लेखक———–बागड़ी बाबा और इंसानियत का धर्म
                            जीवन संध्या  
 
   

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