• April 27, 2018

आधारभूत दलीलें– शैलेश कुमार

आधारभूत दलीलें– शैलेश कुमार

जब मैं बीए (इतिहास ) में था। कालेज कम्पस में एक स्नातकोत्तर के छात्र से भारत की विदेश नीति पर वहस चली —
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मैंने कहा भारत से पीछे या समकालिक गुलाम राष्ट्र चाँद पर चला गया और ये हरामी नेता (कांग्रेस ) पाकिस्तान -और कश्मीर- कश्मीर चिल्ला रहा है।

स्नातकोत्तर का छात्र ने कहा –क्या ये कम है की जो पैदल चल रहे थे आज साईकिल पर चल रहे है , धोती ,कुर्ता के बदले पेंट शर्ट पहन रहे है।

मैंने कहा — सर ! ब्राह्मणों का डीएनए भीख मांगना है और पत्थर को पूजा करना है तो स्नातकोत्तर करने की जरुरत क्या है ? पढ़ाई -लिखाई और सोचने समझने का काम कायस्थों का है,क्या वे गलती नही कर रहे हैं ???

बेचारा चुप हो गया !!!

मैंने उसे कहा — सर ! आप थोड़ा प्रयास करें तो कुशल नेता बन सकते है , आप में लोगों को मूर्ख और बेबकूफ बनाने की असीम शक्ति है। ओजस्वी प्रवक्ता भी है।

कुछ वर्षों के बाद पता चला की वह फुलपरास (मधुबनी जिला ) से विधायक बन चुके है।

आज विदेशियों के साथ प्रतिस्पर्धा का अघोर समय है , जिसके लिए मैकेनिज़्म और इंटरनेट आधारित ऑनलाइन आवश्यक है।

पांच प्रगतिशील राष्ट्र में चैनल के जगह पर इंटरनेट वेब मीडिया की प्रमुखता है। लेकिन भारत में 24 घंटा देर छपे समाचारपत्र पढ़ने की आदत है ,एक ही समाचार 24 घंटे तक सुनने की आदत पर चुकी है।

क्यों , क्योंकी यहाँ आधारभूत ढांचा के बदले आधारभूत दलीलें है।

फ़िल्मी हीरो और हीरोइनों की तरह विज्ञापित होने के लिए होड़ है। सिर्फ होड़।
विदेश गए , वहां का गाना शुरू , स्वदेश आये भूल गए। दिवास्वपन के नेतागण है।

केवल तिकड़मबाजी। तिकड़मबाजी के अतिरिक्त कुछ है ही नहीं।

भैंस मतदाता है तो राजा गदहा ।

इसीलिए तो देश के बेबकुफ नेता आगे के बदले पीछे ले जाने की षडयंत्र रच रहे है , बैलेट से वोट होगा ,अरे मूर्ख ! जब बैलेट से वोट का रिवाज था तो मुस्टंडे के सिवाय कोई आम और सभ्य व्यक्ति मतदान करते थे क्या ??

आज जो बैलेट ! बैलेट चिल्ला रहे हैं उनमें से कितने के बाप -दादाओं ने बैलेट देखें हैं.

चुनाव को लोकतांत्रिकरण करने के क्षेत्र में माननीय टीएन शेषन की असीम योगदान है. अगर वे नही होते तो स्थिति वर्णातीत होता.

बैलेट अपहरण सत्ता रूढ़ दलों का बपौती प्रथा था। सत्त्तारुढ कौन था –वही कांग्रेस और उसके चेहेते !!!

ईवीएम से तो कम से कम कमजोर भी वोट डालने बूथ पर तो जाते हैं, इसमें संशय है तो सुधार भी संभव है न !!!

ऑनलाइन काम नहीं करूंगा। कागज़ पर करूंगा। जब ऑनलाइन की व्यवस्था नहीं था तो सरकारी कर्मचारियों पर घुस लेने का धड़ल्ले से आरोप लगाया जाता था , आरोप जायज भी था। लेकिन अब स्वयं काम करने की व्यवस्था की गई है ,फिर भी वही राग।

अब चैनल और प्रिंट मीडिया का विकल्प इंटरनेट आधारित वेब मीडिया ले रहा है। जिसका कोई सीमित क्षेत्र नहीं है। लेकिन राज्य के प्रशासन इसे अपने -अपने राज्यों तक सीमित करने की चक्कर में हैं जो संभव ही नहीं है कुछ राज्यों में तो इसके लिए कोई नियम ही नहीं है –बिहार , हरियाणा ,राजस्थान,हिमाचलप्रदेश आदि।

जिस राज्य में वेब की मान्यता है, वे वेब आधारित मीडिया को अपने राज्य तक सीमित करने की जुगाड़ में है। सिर्फ उन्ही के राज्यों के लोग वेब मीडिया पढ़े-देखे। लेकिन इसके लिए राज्यों के जनता साक्षर नहीं है अर्थात जनता जानती ही नहीं है की वेब मीडिया क्या है ? क्योंकि राज्य सरकार की जो चाहत है उसके लिए गांव -गांव तक इंटरनेट पहुँच नहीं है ।

घरों में मोबाइल है लेकिन इस मोबाइल को लफंडगिरि में उपयोग करते है ,सरकार क्या करती है उससे क्या लेना देना है।

पांच प्रगतिशील राष्ट्र की समाचार हम राज्य के किसी कोने में बहादुरगढ़ ,या पीलीभीत में बैठकर पढ़ और सुन सकते है। इस राष्ट्र के पास भी इसे सीमित करने का साधन नहीं है। इसलिए वे इसे सोशल मीडिया के नाम से प्रचारित कर पैसा कमा रहे है। वहीँ भारत में इसका कोई स्थान नहीं है , होगा भी कैसे आज तक इंटरनेट की व्यवस्था कुछ बड़े शहरों को छोड़ कर व्यवस्थित नहीं हो सका है।

इंटरनेट का प्रयोग मोदी प्रशासन में खुले तौर पर हो रहा है। 2014 से पहले राज्य के सचिव स्तर का मेल फेल होता था। आज कम से कम भेजने का परिणाम जो भी हो कम से कम मेल फेल नहीं हो रहा है।

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