म.प्र. में कांग्रेस :: युद्ध में पराजित सेना आपस में ही लड़ती है : विजय सिंह

म.प्र. में कांग्रेस  :: युद्ध में पराजित सेना आपस में ही लड़ती है :  विजय सिंह

विश्व प्रसिद्ध फ्रांसीसी सेनापति नेपालियन बोनापार्ट द्वारा कहे गये वाक्य ‘‘ युद्ध में पराजित सेना आपस में ही लड़ कटकर मर जाती है’’, मध्य प्रदे्श में कांग्रेस की हालत कुछ ऐसी ही हो गई है। प्रदेश में पिछले 12 सालों से सत्ता सुख से वंचित कांग्रेस के सेनानायक ही लड़ रहे हैं तो उनके सिपाहीं (कार्यकर्ता) भाजपा के खिलाफ युद्ध में कब तक टिके रहेंगे ? और फिर मध्य प्रदे्श के तीनों क्षत्रप सार्वजनिक रूप से मौन होकर आपसी मार काट के मूक दर्शक की भूमिका में हैं।

Vijay Singh1984 में श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुये आम चुनाव में कांग्रेस को अप्रत्यासित जीत मिली थी। मध्य प्रदेश की 40 लोक सभा सीटों में 39 सीटें कांग्रेस के चुनाव चिन्ह से उतरे प्रत्याशियों ने जीतीं थीं। रीवा संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस समर्थित महाराजा मार्तण्ड सिंह विजई हुये थे। स्व. माधवराव सिंधिया को पहले शिवपुरी से टिकट दिया गया था। नामांकन के आखिरी दिन उन्हें तत्काल ग्वालियर से पर्चा दाखिल कराया गया। जनप्रिय नेता अटल बिहारी बाजपेयी का ग्वालियर में इस तरह घेराबंदी की गई कि वह बाहर नहीं निकल पाये। श्री बाजपेयी को डर-पराजय का नहीं था, वह सिंधिया परिवार के प्रति असीम सम्मान की वजह से उनके खिलाफ चुनाव नही लड़ना चाहते थे।

स्मरण कराना चाहूंगा कि लोक सभा चुनाव के दौरान ही भोपाल में यूनियन कार्बाइड से एम.आई.सी. गैस का रिसाव हुआ था। इस अप्रत्यासित घटना में हुई मौतों ने विष्व को रासायनिक युद्ध के दुष्परिणामों की ओर इशारा किया। राजनैतिक समीक्षकों ने मध्य प्रदेश में कांग्रेस उम्मीदवारों के जीतने पर शंका व्यक्त की। इस नाजुक घड़ी में म.प्र. के तत्कालीन मुख्यमंत्री कुंअर अर्जुन सिंह ने अपना संयम नहीं खोया। कार्बाइड प्लांट में शेष बचे रसायन को निष्क्रिय करने की प्रक्रिया के दौरान वह स्वयं मौजूद रहे और चुनाव परिणाम में भोपाल सीट पर भी कांग्रेस ही जीती। यह उद्धरण मैं इसलिये दे रहा हूॅ कि तब भी म.प्र. में जन संघ (अब भ.ज.पा.) की स्थिति कमजोर नहीं थी।वह 1969 में सरकार (संविदा सरकार) बना चुकी थी।
1985 में विधान सभा चुनाव हुये, कांग्रेस को पुनः बहुमत मिला और अर्जुन सिंह को फिर से एक दिन का मुख्यमंत्री बनाया गया। हाईकमान ने उन्हें आतंकवाद से जूझ रहे पंजाब का राज्यपाल बना दिया। कुंअर साहब की राजनैतिक सूझ-बूझ का नतीजा था कि लोगोवाल समझौता हुआ और उन्हें वापस बुला कर केन्द्र में मंत्री व दक्षिण दिल्ली से लोकसभा का प्रत्यासी बना दिया गया। आज जिस गुटबाजी का जिक्र होता है, वह तब भी थी। स्व. राजीव गांधी के सिपहसलारों ने तत्कालीन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कार्यवाहक अध्यक्ष स्व. कमलापति त्रिपाठी का कद छोटा करने कांग्रेस के इतिहास में पहली मर्तबा उपाध्यक्ष का पद सृजित कर अर्जुन सिंह को उपाध्यक्ष बना दियागया।

उपरोक्त तथ्यों से (अपने-अपने नजरिये से) सब वाकिफ हैं, विशेष कर मुझसे श्रेष्ठ राजनैतिक समालोचक। उपरोक्त का जिक्र मैं महज इसलिये कर रहा हूं कि देश व प्रदे्शों में कांग्रेस की बहुमत वाली सरकारें थीं। बावजूद इस के भी 1987 में सीधी में आयोजित क्रियाशील कार्यकर्ता सम्मेलन में कुंअर अर्जुन सिंह ने कांग्रेस के भविष्य के प्रतिचेतावनी दे दी थी। उन्होने कहा था ‘‘ कांग्रेस का हांथ, जनता की नब्ज से धीरे-धीरे उठ रहा है। यही वजह है कि धर्म और जाति के नाम पर हमारे (यानि जनता में) कान में मीठा-मीठा जहर घोला जा रहा है और जब इसके परिणाम आयेंगे तो आश्चर्यकारी होंगे और उसके बाद ही भारतीय जनता पार्टी और बहुजन समाज पार्टियां बनीं। तत्कालीन (स्व.राजीव गांधी के इर्द-गिर्द) राजनीति में संगठन के पदाधिकारी की हैसियत से अर्जुन सिंह के उद्बोधन स कांग्रेस तो नहीं चेती, उन्हें स्वयं ही प्रताड़ित होना पड़ा और उसके परिणाम आज सामने है।

स्व. अर्जुन सिंह के बाद प्रदेश में कोई ऐसा नेता नहीं आया जिसकी पहचान आम जनता तक हो। गरीबों के लिये एक बत्ती बिजली कनेक्शन, झुग्गी-झोपड़ी का पट्टा, पिछड़े वर्ग के छात्रों को छात्रवृत्ति, तेंदू पत्ता का सहकारीकरण जैसे निर्णय से वह सर्वहारा वर्ग के हितैषी बन गये। और आज मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी आम आदमी का चेहरा हैं, मध्य प्रदेश की जनता उन्हें अपने नजदीक पा रही है। सड़क, बिजली, पानी के बदौलत सुश्री उमा भारती ने दिग्विजय सिंह की 10 साला सरकार को ढेर कर दिया। लेकिन शिवराज सिंह ने अपने बूते (जनता में जन हितैषी, स्वच्छ छवि ) प्रदेश में लगातार तीसरी बार भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनाई है, इस तथ्य को कोई भी नजर अंदाज नहीं कर सकता।

भाजपा के स्थानीय नेताओं की बदौलत बेलगाम नौकरशाही के भ्रष्टाचार से त्रस्त लोग, कांग्रेस को व्यापक समर्थन नहीं दे पा रहे हैं क्योंकि मध्य प्रदेश में वर्तमान में ऐसा कोई सर्वमान्य नेता नहीं है, जिसको आमजन मानस जानता हो और उससे जुड़ सके। तीन छत्रप् अवश्य चर्चा में रहते हैं, लेकिन विगत् विधानसभा चुनाव के परिणामों ने उनकी सर्वमान्यता पर सवालिया निशान खड़ा किया है। एकता की बात करते करते ऐसे बिखरते हैं जैसे हवा के हल्के झोंके से ताश के महल बिखर जाते हैं।

नगरीय निकाय चुनाव में टिकट वितरण को लेकर विद्रोह या असहमति तो भा.ज.पा. में भी है। किन्तु प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में 12 नवम्बर को हुआ घमासान और उसके बाद चले शब्द वाणों से आहत् वह मतदाता हुआ है जो अभी भी कांग्रेस के पक्ष में अपना वोट डालता है। कांग्रेस के प्रतिमाणक अग्रवाल जैसे निष्ठावान व्यक्ति को टिकट वितरण में अहमियत न दिया जाना, मौजूदा नेतृत्व की नीयत पर ही संदेह पैदा करता है।

इस समय दृष्टिदोष के कारण म.प्र. में प्रतिपक्ष के नेता सत्यदेव कटारे उपचारार्थ मुंबई में हैं,  वहीं से एक टी.वी. चैनल में दिये इंटरव्यू में उन्होने इस मामले में बीच-बचाव न कर लगे हांथ अपने ही अंचल के एक वरिष्ठ विधायक डा. गोविन्द सिंह को कटघरेमें खड़ा कर दिया।

विधानसभा-लोकसभा चुनाव में बुरी तरह पराजित, निकाय चुनाव में मतदान (युद्ध) के पहले ही हार मान चुके कांग्रेसी नेपालियन बोनापार्ट के कथन ‘‘ पराजित सेना, आपस में ही लड़ती है ’’ को चरितार्थ कर रहे हैं।

विजय सिंह
स्वतंत्र पत्रकार
राज्य स्तरीय अधिमान्य
19, अर्जुननगर, सीधी

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