- November 17, 2022
बढ़ती जनसंख्याः क्या-क्या करें :डॉ वेद प्रताप वैदिक
संयुक्त राष्ट्र संघ की ताजा रपट के मुताबिक दुनिया की आबादी 8 अरब से भी ज्यादा हो गई है। पिछले 50 साल में दुनिया की जनसंख्या जितनी तेजी से बढ़ी है, पहले कभी नहीं बढ़ी। अभी तक यही समझा जा रहा था कि चीन दुनिया का सबसे बड़ी आबादी वाला देश है लेकिन भारत उसको भी मात करने वाला है। भारत में इधर बढ़े 17 करोड़ लोग उसे दुनिया का सबसे बड़ा देश बना देंगे।
ऐसा नहीं है कि भारत जनसंख्या के हिसाब से ही बहुत आगे बढ़ गया है। इस देश ने कई मामलों में सारी दुनिया से बेहतर उपलब्धियां भी हासिल की हैं। इस समय डिजिटल व्यवहार में वह दुनिया में सबसे आगे हैं। जहां तक प्रवासी भारतीयों का सवाल है, दुनिया के जितने अन्य देशों में भारतीय मूल के लेाग शीर्ष स्थानों पर पहुंचे हैं, दुनिया के किसी मुल्क के लोग नहीं पहुंच सके हैं। भारतीय मूल के लोग जिस देश में भी जाकर बसते हैं, वे हर क्षेत्र में आगे निकल जाते हैं।
वे अपने सभ्य और सुसंस्कृत आचरण के लिए सारे विश्व में जाने जाते हैं लेकिन दुनिया की बढ़ती हुई आबादी कई देशों के लिए तो खतरनाक सिद्ध हो ही रही है, वह भारत के लिए भी चिंता का विषय है। यदि आपके देश की या परिवार की आबादी बढ़ती चली जाए और उसकी जरूरतों की पूर्ति भी होती चली जाए तो कोई बात नहीं है लेकिन आबादी के साथ-साथ गरीबी और असमानता भी बढ़ती चली जाए तो वह समाज के लिए बोझ बन जाती है।
यों तो भारत में जनसंख्या की रफ्तार पिछले दशकों के मुकाबले थोड़ी कम हुई है लेकिन हमारे देश में अभी भी लगभग 100 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिनके लिए हम पर्याप्त भोजन, निवास, वस्त्र, शिक्षा, चिकित्सा और मनोरंजन की व्यवस्था नहीं कर पाए हैं। हमारी जनसंख्या-बढ़ोतरी का यह अच्छा पहलू है कि भारत में युवा लोगों का अनुपात वृद्धों के मुकाबले बेहतर है। दुनिया के मालदार देशों में दीर्घायु की सुविधाओं के कारण वृद्धों की संख्या कहीं ज्यादा है।
जनसंख्या के खतरे से निपटने के लिए भारत सरकार को दो बच्चोंवाले प्रतिबंध पर भी तुरंत विचार करना होगा। जनसंख्या की दृष्टि से भारत का फायदा उसके इस तेवर में भी है कि भारत से पढ़े-लिखे युवक बढ़िया आमदनी की तलाश में विदेशों में जाकर अपना ठिकाना बना लेते हैं। लेकिन भारत चाहे तो अपने दक्षिण और मध्य एशिया के देशों में विकास का इतना बड़ा अभियान चला सकता है कि देश के कई करोड़ लोगों को वहां रोजगार मिल सकता है और वे वहां बस भी सकते हैं।
मध्य एशिया के पांचों देशों का क्षेत्रफल भारत से डेढ़ गुना है और उनकी आबादी मुश्किल से साढ़े सात करोड़ है। भारतीय लोगों को अगर उचित मार्गदर्शन और सुविधा मिले तो वे न केवल भारत की बढ़ती आबादी की समस्या हल कर सकते हैं बल्कि प्राचीन आर्यावर्त्त की अकूत संपदा का दोहन करके एशिया को यूरोप से भी आगे ले जा सकते हैं।