कोरोना रेल गाडी — अपने- अपने मकसद में कामयाब– शैलेश कुमार

कोरोना रेल गाडी — अपने- अपने मकसद में कामयाब– शैलेश कुमार

कोबाईंड या कोरोना जहां महामारी का स्तम्भ है वहीं उसने देश के जनप्रतिनिधियों कि हकिकत सामने मे ला खडा किया है. अर्थात जनप्रतिनिधि या कर्णधार जैसे शब्दो को बखिया उधेड दिया है.

आज देश या प्रांत को दो तथ्यों से लडना है — कोबाईंड या कोरोना और दूसरा — आर्थिक लिबाला.

कोरोना का ईलाज — बचाव — वैक्सिन देर ही सही आयेगा ही लेकिन इस इलाज के लिये खर्च का वहन कौन करेगा —

सरकार —कैसे करती है ?

अस्पताल मे डाक्टरों या कर्मियो की प्रधम प्राथमिक्ता है — पहुंच वाले का. आज भी डंगू या चिकनगुनिया का दवा गरिबों को नही मिलता है. पहुंच वाले को तो सुविधा है लेकिन जिसका कोई पहुंच नही है उसे मार्केट से खरीदना पडता है .

अब कोबाईंड या कोरोना से सभी के हाथ पैर बंध गये है , आमदनी बद. फैक्ट्री बंद. आय का सभी साधन बंद हो चुके है.

तीस-तीस वर्ष तक राज्य सरकारों ने जनता की भलाई नही सोची.

जनता जिंदा रहने के लिये राज्य से बाहर धक्के खाते रहे. प्रदेश मे भटकते रहे. आज कोबाईंड या कोरोना के कारण उन्हें वापस आना पर रहा है.

वे लोग कर्मशील है. कितने दिन बैठेंगे,पेट के ज्वाला को शांत करने के लिये बाहर आना ही होगा.
परंतु बाहर आकर करेंगे क्या ?

निराश ! शाम को घर आयेंगे और खाली पेट सोना होगा. कितने दिन. खाना ही तो नही है.

नगदी खरीददारी भी होती है.

किसी भी राज्य सरकार को यह समझना चाहिये की प्रवासी सिर्फ मनरेगा वाले ही नही होते है ?
फैक्ट्री संभालने के लिये आफिस स्टाफ भी होता है.

टंकक, चपरासी, एकाउंटेंट ,मनेजर. फैक्ट्री के अंदर, सुपरवाईजर ,आई टी आई, कारीगर,(फैक्ट्री के आवश्यक्ता के अनुसार) हेल्पर आदि होते है.

आखिर पढे लिखे लोगों के लिये सरकार क्या करेगी,

जो सरकार पंद्रह वर्ष में कुछ नही कर पाई क्या वह एक दो महिनें मे कर लेगी.

बिहार के प्रवासी की वापसी से सभी राज्य खुश है उसे तो कोरोना का बहाना मिल गया. उसके मकसद को कोरोना ने पूरा कर दिया क्योंकी खुले रुप से तो भगा नही सकते थे अव कानूनी और मरने के भय दिखा कर वापस कर रहे हैं.

अगर राजा दूरदर्शी न हो, अकर्मण्य सलाहकार और चापलूसों कि मंडली से घिरें हो तो उस राज्य और राजा का पतन निश्चित है —– शायद हम इसी ओर बढ रहे हैं.

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