- August 19, 2018
डॉक्टरेट शंकर दयाल शर्मा नैतिकता के मिसाल और बौद्धिकता के प्रतिविंब थे
शुभम शर्मा——- शंकर दयाल शर्मा एक ऐसी शख्सियत जो राजनीति में आये नहीं लाए गए थे, मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में वीआईपी रोड पर एक बड़ी सी मूर्ति मुख्य मार्ग पर थी, बचपन से वह मूर्ति दिखा करती थी, कई प्रश्न जहन में थे, कि शहर की सबसे बड़ी मूर्ति किसकी है, उनके एक हाथ में किताब को देखकर यह जरूर समझ में आता था, कि वह मां सरस्वती के उपासक रहे होगे, धीरे-धीरे समझ विकसित हुई तो पता चला यह मूर्ति भारत के नवें राष्ट्रपति रहे डॉ शंकरदयाल शर्मा की है, मध्यप्रदेश की धरा से निकला एक मात्र व्यक्ति जिन्होंने भारत के सबसे बड़े पद को धारण किया, भोपाल के गुलिया दाई के मोहल्ले में 19 अगस्त 1918 को जन्मे शंकर नबाव भोपाल के वजीफे पर केंब्रिज विश्वविद्यालय में पढ़े और फिर वहां छात्रों को पढ़ाया भी|
कैंब्रिज विश्वविद्यालय का इतिहास 700 वर्ष पुराना है जब राष्ट्रपति शर्मा को वहां से मानद डॉक्टरेट मिली तो उनके साथ- साथ पूरे देश की ख्याति बढ़ी थी| जब वह मध्यप्रदेश के शिक्षा मंत्री बने तो उन्होंने स्कूलों में ग से गणेश की जगह, ग से गधा पढ़ाना प्रारंभ करवाया पर अचरच जब हुआ जब ऐसे सेकुलर नेता का नाम राष्ट्रपति पद के 1992 में प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव ने उठाया तो पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह ने यह कहकर उनका विरोध किया कि वह ब्राह्मण है|
जब 1996 के आम चुनाव में देश की जनता ने खण्डित जनादेश दिया, तो शर्मा ही वह व्यक्ति थे, जिन्होने भाजपा नेता अटल बिहारी बाजपेई को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया साथ में ज्योतिषों से पूछकर शपथग्रहण का टाइम भी सुनिश्चित किया, कितना सौभाग्य शाली घड़ी थी वो जब मध्यप्रदेश के भोपाल में जन्में राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने उसी प्रदेश के ग्वालियर में जन्में अटल बिहारी बाजपेई को प्रधानमंत्री की शपथ दिलाई, वाजपेई सिर्फ 13 दिन सरकार में रहे पर शंकर दयाल शर्मा के आदर्श एक दल और एक वर्ग से बढ़कर थे, वह कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के बनने के लिए सिहोर जिले के अधीन आने वाली छोटी सी रियासत भोपाल के पहले कांग्रेस जिलाध्यक्ष बनने का लंबा सफर तय करके आये थे|
जिस नबाव के वजीफे पर उन्होंने उच्च शिक्षा ली उसी नबाव को जेल में भी ढूंस गए वह इलाहाबाद में प्रोफेसर थे और अपने गृह जिले आए हुए थे, उनके पिता खुशीदयाल शर्मा वहां सुप्रसिद्ध वैद्य और नामचीन हस्ती थे, भारत आजाद हो चूका था, पर भोपाल अभी भी नबाव हमीदुल्ला की हठधर्मिता के कारण भारत में विलय नहीं हुआ था, डॉक्टर साहब से मिलने नबाव के विरुद्ध आंदोलन चला रहे लोग आए और सबसे पढ़ें लिखे व्यक्ति होने के नाते आंदोलन का नेतृत्व करने की विनती की. डॉक्टर साहब ने विनती मान ली और जुलूस के रूप में नजदीकी चौक तक पहुंचे ही थे, कि उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, यहां से क्रांतिकारी कदम जो उनके जीवन में जारी हुआ तो सीधे राष्ट्रपति की कुर्सी पर जाकर खत्म हुआ|
आज भोपाल में उनके पिता जी पंडित खुशीदयाल शर्मा के नाम पर और पुत्री गीतांजलि माकन के नाम पर आयुर्वेदिक एवं महिला कॉलेज स्थापित है,कुलपति का ख्याब देखने
वाले देश के सर्वोच्च पद तक पहुंचे|वह उपराष्ट्रपति थे राज्यसभा में उनके दल कांग्रेस के सांसदों की संख्या सर्वाधिक थी,इंदिरा गांधी जी की मौत के बाद देश के साथ – साथ राज्यों में भी कांग्रेस की बंपर सीटे आई थी,राज्यों से प्रतिनिधि जब राज्यसभा पहुंचे तो संसदीय आचरण को भूला दिया करते,शर्मा जी पदेन सभापति थे,उन्होंने अपने सांसदों को शिष्टाचार का पाठ भी पढ़ाया|यही डॉक्टर शर्मा का उदार और विराट व्यक्तित्व था, वह कड़ाई से बात मनवाना भी जानते है और नैतिक मूल्यों को बचाना भी| जब राजीव गांधी की मौत हुई तो सोनिया गांधी ने उनका नाम कांग्रेसी बुजुर्ग नेताओं से सलाह मशविरा कर प्रधानमंत्री के लिए तय किया पर वह अपनी अधिक आयु का हवाला देकर प्रधानमंत्री पद से मनाही कर बैठे| यह अलग बात है, उन्होने उसके बाद राष्ट्रपति का पद स्वीकारा पर उनकी नैतिकता उनके जीवन में एक ऐसी मिसाल है, जो बौद्धिक जमात और राजनीतिक तबके के लिए स्मरणीय है|
(ई०टी०वी, भारत)