• July 19, 2018

श्रद्धांजलि–सिनेमाघर की दुकान से लेकर -मेरा नाम जोकर तक का सफर — पद्म श्री , पद्म भूषण- गोपल दास नीरज

श्रद्धांजलि–सिनेमाघर की  दुकान से लेकर -मेरा नाम जोकर तक का सफर  —  पद्म श्री , पद्म भूषण- गोपल दास नीरज

गोपालदास नीरज (जन्म: 4 जनवरी 1925)(मृत्यु:19 जुलाई 2018), हिन्दी साहित्यकार, शिक्षक, एवं कवि सम्मेलनों के मंचों पर काव्य वाचक एवं फ़िल्मों के गीत लेखक हैं।

वे पहले व्यक्ति हैं जिन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार ने दो-दो बार सम्मानित किया, पहले पद्म श्री से, उसके बाद पद्म भूषण से।

फ़िल्मों में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिये उन्हें लगातार तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला।

गोपालदास सक्सेना ‘नीरज’ का जन्म 4 जनवरी 1925 को ब्रिटिश भारत के संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध, जिसे अब उत्तर प्रदेश के नाम से जाना जाता है, में इटावा जिले के एशिया के प्रथम ब्लॉक महेवा के निकट पुरावली गाँव में बाबू ब्रजकिशोर सक्सेना के यहाँ हुआ था।

मात्र 6 वर्ष की आयु में पिता गुजर गये।

1942 में एटा से हाई स्कूल परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। शुरुआत में इटावा की कचहरी में कुछ समय टाइपिस्ट का काम किया उसके बाद सिनेमाघर की एक दुकान पर नौकरी की।

लम्बी बेकारी के बाद दिल्ली जाकर सफाई विभाग में टाइपिस्ट की नौकरी की। वहाँ से नौकरी छूट जाने पर कानपुर के डी०ए०वी कॉलेज में क्लर्की की।

बाल्कट ब्रदर्स नाम की एक प्राइवेट कम्पनी में पाँच वर्ष तक टाइपिस्ट का काम किया।

नौकरी करने के साथ प्राइवेट परीक्षाएँ देकर 1949 में इण्टरमीडिएट, 1951 में बी०ए० और 1953 में प्रथम श्रेणी में हिन्दी साहित्य से एम०ए० किया।

मेरठ कॉलेज मेरठ में हिन्दी प्रवक्ता के पद पर कुछ समय तक अध्यापन कार्य भी किया किन्तु कॉलेज प्रशासन द्वारा उन पर कक्षाएँ न लेने व रोमांस करने के आरोप लगाये गये जिससे कुपित होकर नीरज ने स्वयं ही नौकरी से त्यागपत्र दे दिया।

उसके बाद वे अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक नियुक्त हो गये और मैरिस रोड जनकपुरी अलीगढ़ में स्थायी आवास बनाकर रहने लगे।

कवि सम्मेलनों में अपार लोकप्रियता के चलते नीरज को बम्बई के फिल्म जगत ने गीतकार के रूप में नई उमर की नई फसल के गीत लिखने का निमन्त्रण दिया जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया।

पहली ही फ़िल्म में उनके लिखे कुछ गीत जैसे कारवाँ गुजर गया गुबार देखते रहे और देखती ही रहो आज दर्पण न तुम, प्यार का यह मुहूरत निकल जायेगा बेहद लोकप्रिय हुए जिसका परिणाम यह हुआ कि वे बम्बई में रहकर फ़िल्मों के लिये गीत लिखने लगे।

फिल्मों में गीत लेखन का सिलसिला मेरा नाम जोकर, शर्मीली और प्रेम पुजारी जैसी अनेक चर्चित फिल्मों में कई वर्षों तक जारी रहा।

किन्तु बम्बई की ज़िन्दगी से भी उनका जी बहुत जल्द उचट गया और वे फिल्म नगरी को अलविदा कहकर फिर अलीगढ़ वापस लौट आये। तब से आज तक वहीं रहकर स्वतन्त्र रूप से मुक्ताकाशी जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

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दर्द दिया है, अश्रु स्नेह है, बाती बैरिन श्वास है,
जल-जलकर बुझ जाऊँ, मेरा बस इतना इतिहास है !

मैं ज्वाला का ज्योति-काव्य
चिनगारी जिसकी भाषा,
किसी निठुर की एक फूँक का
हूँ बस खेल-तमाशा

पग-तल लेटी निशा, भाल पर
बैठी ऊषा गोरी,
एक जलन से बाँध रखी है
साँझ-सुबह की डोरी

सोये चाँद-सितारे, भू-नभ, दिशि-दिशि स्वप्न-मगन है
पी-पीकर निज आग जग रही केवल मेरी प्यास है !
जल-जलकर बुझ जाऊँ, मेरा बस इतना इतिहास है !!

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छिप-छिप अश्रु बहाने वालो !
मोती व्यर्थ बहाने वालो !
कुछ सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है।

सपना क्या है? नयन सेज पर
सोया हुआ आँख का पानी,
और टूटना है उसका ज्यों
जागे कच्ची नींद जवानी
गीली उमर बनाने वालो।
डूबे बिना नहाने वालो !
कुछ पानी के बह जाने से सावन नहीं मरा करता है।

माला बिखर गयी तो क्या है
ख़ुद ही हल हो गई समस्या,
आँसू गर नीलाम हुए तो
समझो पूरी हुई तपस्या,
रूठे दिवस मनाने वालो !
फटी कमीज़ सिलाने वालो !
कुछ दीपों के बुझ जाने से आँगन नहीं मरा करता है।

खोता कुछ भी नहीं यहाँ पर
केवल जिल्द बदलती पोथी ।
जैसे रात उतार चाँदनी
पहने सुबह धूप की धोती
वस्त्र बदलकर आने वालो !
चाल बदलकर जाने वालो !
चन्द खिलौनों के खोने से बचपन नहीं मरा करता है।

लाखों बार गगरियाँ फूटीं
शिकन न आई पनघट पर
लाखों बार किश्तियाँ डूबीं
चहल-पहल वो ही है तट पर
तम की उमर बढ़ाने वालो
लौ की आयु घटाने वालो
लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है।

लूट लिया माली ने उपवन
लुटी न लेकिन गन्ध फूल की,
तूफ़ानों तक ने छेड़ा पर
खिड़की बन्द न हुई धूल की,
नफ़रत गले लगाने वालो !
सब पर धूल उड़ाने वालो !
कुछ मुखड़ों की नाराज़ी से दर्पन नहीं मरा करता है।

– गोपालदास नीरज

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