कस्टम हायरिंग सेंटर –महिला स्वंय सहायता द्वारा संचालित

कस्टम हायरिंग सेंटर –महिला स्वंय सहायता द्वारा संचालित

भोपाल :(रायसेन, दमोह, अनूपपुर, छिंदवाड़ा )/ प्रलय श्रीवास्तव———-भोपाल संभाग में रायसेन जिले की गैरतगंज जनपद के आदर्श ग्राम हरदौट में महिला स्व-सहायता समूह की महिलायें कृषि विभाग के सहयोग से कस्टम हायरिंग सेंटर चला रही हैं।
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यह प्रदेश का पहला ऐसा कस्टम हायरिंग सेंटर है जिसे महिला स्व-सहायता समूह द्वारा चलाया जा रहा है। इस समूह में 12 महिला सदस्य हैं।

समूह के पास ट्रेक्टर, थ्रेसर, कल्टीवेटर, सीड ड्रील मशीन, हैरो, रोटावेटर,प्लाऊ तथा सीड ड्रील उपकरण हैं। इन उपकरणों को स्व-सहायता समूह की महिलाएं किराए पर चला रही हैं। यह कस्टम हायरिंग सेंटर जून 2017 में शुरू हुआ। पिछले सीजन में समूह को इस सेंटर से 70 हजार रूपए की आमदानी हुई।

महिला स्व.सहायता समूह की रक्षा बाई, भागवती बाई, ममता बाई, ललिता बाई तथा शांति बाई सहित अन्य महिलाओं ने बताया कि आमदानी का एक अतिरिक्त साधन प्राप्त होने से उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी हो गई है। इनकी सफलता को देखते हुए जिला प्रशासन द्वारा जिले के अन्य कस्टम हायरिंग केन्द्रों को भी महिला स्व-सहायता समूह द्वारा संचालित कराने पर विचार किया जा रहा है।

महिला स्व-सहायता समूह के बनाये टेडी-बियर हुए लोकप्रिय : दमोह जिले की तहसील बटियागढ़ के ग्राम बकायन की आरती पौराणिक ने गाँव की लगभग 250 महिलाओं को आजीविका मिशन अंतर्गत करीब 19 स्व-सहायता समूहों से जोड़ लिया है। आरती यहाँ पर सीआरपी के पद पर है और समूहों की देखरेख के साथ मदद भी करती है।

आजीविका मिशन अंतर्गत टेडी-बियर बनाने का काम ज्यादा हो रहा है। ग्राम बकायन में समूह की महिलाओं को इस काम से बहुत फायदा हो रहा है क्योंकि जिले में इसका निर्माण अभी कहीं और नहीं हो रहा है। बटियागढ़, नरसिंहगढ़, दमोह में इन महिलाओं के बनाये टेडी-बियर ज्यादा बिकते हैं।

आरती स्व-सहायता समूह ने 11 हजार रुपये की लागत से टेडी-बियर बनाने का काम शुरू किया था, दिल्ली से निर्माण सामग्री बुलवाकर सरकार से 20 हजार रुपये की मदद भी ली थी। अब टेडी-बियर बनाने का काम अच्छा चल निकला है।

विमला मानिकपुरी स्वावलम्बी बनी, 12वीं की परीक्षा भी पास की : अनूपपुर जिले के ग्राम बहपुरी में विमला मानिकपुरी विवाह के बाद लक्ष्मी आजीविका स्व-सहायता समूह से जुड़ी। समूह से ऋण लेकर अपने लिये सिलाई मशीन ली और पति को फर्नीचर बनाने का सामान दिलवाया। धीरे-धीरे दोनों का काम अच्छा चल निकला।

आज विमला सिलाई के साथ पीको और फाल का काम भी करने लगी है। पति के साथ सब्जी उत्पादन और कारपेंटर के काम में भी मदद कर रही है। पति-पत्नी मिलकर कम से कम 14 हजार रुपये मासिक कमा रहे हैं।

विमला मानिकपुरी ने समूह से 7 बार 73 हजार 500 रुपये ऋण लिया। नियमित ऋण वापसी करते हुए 38 हजार रुपये समूह को वापस कर चुकी है। अब विमला अपने ग्राम संगठन गुरुकृपा में बुक-कीपर के रूप में कार्य कर रही है। समूह से जुड़ने के बाद विमला ने 12वीं कक्षा की परीक्षा भी पास कर ली है।

जैविक हल्दी उत्पादन बना समूह की ताकत : जैविक एवं उन्नत खेती अपनाने के कारण छिन्दवाड़ा जिले में सौंसर विकासखण्ड के ग्राम भुम्मा निवासी मटरू लाल डोंगरे को नई पहचान मिल गई है। इनके पास 0.840 हेक्टेयर जमीन है जिस पर मक्का, मूंगफली, तुअर, संतरा एवं हल्दी की खेती प्रमुखता से करते थे।

जैविक उत्पाद की कोई पहचान नहीं होने के कारण उत्पाद को सामान्य अनाज की तरह ही बेचते थे। वर्ष 2015-16 में आत्मा परियोजना अंतर्गत इन्हें परम्परागत कृषि विकास योजना अंतर्गत समूह बनाकर जैविक खेती करने की सलाह मिली और समूह के उत्पाद की ब्रॉडिंग एवं पैकिंग भी संभव हो गई।

इस समूह का नाम भुम्मा जैविक समूह रखा गया जिसमें गाँव के जैविक खेती में रुचि रखने वाले 50 कृषक शामिल हैं जिन्हें प्रशिक्षण भी दिलवाया गया। समूह के लीडर द्वारा खेती के सम्पूर्ण रिकार्ड का संधारण किया गया जिसकी ऑनलाइन फीडिंग भी पीजीएस इण्डिया की वेबसाइट पर की गई। वर्ष 2016-17 के अंत में समूह के कृषकों को अंडर कनवर्जन का स्कोप सर्टिफिकेट भी जारी किया जा चुका है।

आत्मा परियोजना के सहयोग से बाजार की माँग के अनुसार कृषकों ने स्वयं ही प्रोसेसिंग कर पैकिंग का कार्य प्रारंभ कर दिया है। आत्मा परियोजना द्वारा विपणन में भी मदद की जा रही है। समूह द्वारा जैविक हल्दी 300 रुपये प्रति किलो के भाव से बेची जा रही है जिससे लाभ दोगुना तक मिल रहा है।

राष्ट्रीय स्तर के एग्रोविजन मेला, नागपुर में इनकी जैविक हल्दी की अच्छी माँग रही। कुछ प्रायवेट कम्पनियों द्वारा भी इस जैविक हल्दी की माँग की जा रही है। अब समूह के सदस्य मूंगफली, तुअर, मूंग, उड़द, धनिया एवं संतरा की ब्रांडिंग कर विपणन प्रारंभ करने की कार्य-योजना भी बना रहे हैं।

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