• November 18, 2017

शिक्षा स्वच्छन्दता रूप में नहीं

शिक्षा  स्वच्छन्दता रूप में नहीं

जयपुर, 18 नवम्बर। शिक्षा राज्य मंत्री श्री वासुदेव देवनानी ने कहा है कि शिक्षा में स्वायत्ता जरूरी है पर वह स्वच्छन्दता के रूप में नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर स्वायत्ता के लिए शिक्षा में नियामक आयोग बने।

श्री देवनानी आज यहां शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा मानसरोवर स्थित परिष्कार कॉलेज में ‘शिक्षा की स्वायत्ता-चुनौतियां एवं संभावनाएं’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी में संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि इस संबंध मेें व्यापक स्तर पर विचारे जाने की जरूरत है कि शिक्षा में स्वायत्ता अगर हो तो वह किस रूप में हो। उन्होंने स्वायत्ता के साथ कत्र्तव्य और दायित्व बोध पर भी चिंतन किए जाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि स्वायत्ता से शिक्षा के शुद्धीकरण की ओर हम यदि आगे बढ़ते हैं, तभी उसकी सार्थकता है। शिक्षा राज्य मंत्री ने शिक्षा क्षेत्र में राजस्थान में किए प्रयासों की चर्चा करते हुए कहा कि विद्यार्थियों के व्यापक हित को दृष्टिगत रखते हुए बहुत सारे निर्णय शिक्षा स्वायत्ता के तहत लिए गए और उनके अच्छे परिणाम आ रहे हैं।

उन्होंने शिक्षण संस्थाओं में स्वायत्ता की हिमायत की परन्तु साथ ही मर्यादा का निर्वहन भी सभी स्तरों किए जाने पर जोर दिया। संगोष्ठी के मुख्य वक्ता डॉ. अतुल कोठारी ने शिक्षा क्षेत्र में स्वायत्ता के विभिन्न आयामों की चर्चा की तथा कहा कि अकादमिक क्षेत्र में स्वायत्ता होनी चाहिए परन्तु विद्यार्थियों में इससे अनुशासनहीनता नहीं पनपे, इस पर भी ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने स्वायत्ता के नाम पर बाजार के पोषण की परम्परा और खतरों को भी ध्यान में रखे जाने पर जोर दिया।

पैसेफिक विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. भगवती प्रसाद शर्मा ने शिक्षण संस्थाओं में स्वायत्ता से जुड़े प्रश्नों पर विशद् चर्चा की। परिष्कार के डॉ. राघव प्रकाश ने कहा कि स्वायत्ता यदि शिक्षण के क्षेतर्् में हो तो उससे विद्यार्थियों के व्यक्तित्व विकास में बहुत मदद मिल सकती है। इस मौके पर कोटा विश्वद्यिालय के कुलपति प्रो. पी.के. दशोरा, अधिनस्थ चयन बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. नंद सिंह नरूका, डॉ. दिलीप गोयल ने भी विचार रखे।

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