बेटा-बेटी के प्रति बराबर का भाव पैदा करने वाले पाठ, पाठयक्रमों में शामिल

बेटा-बेटी के प्रति बराबर का भाव पैदा करने वाले पाठ, पाठयक्रमों में शामिल

मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि मध्यप्रदेश में बेटा-बेटी के प्रति बराबर का भाव पैदा करने वाले पाठ, पाठयक्रमों में शामिल किये जाएंगे। विज्ञापनों में स्त्रियों को वस्तु के रूप में प्रस्तुत करने पर रोक लगाने का कानून बनाया जायेगा। स्त्री-पुरुष को समान कार्य-समान वेतन देने का प्रावधान किया जायेगा।

मुख्यमंत्री आज उज्जैन के निनोरा में अंतर्राष्ट्रीय विचार महाकुंभ के शक्ति कुंभ में बोल रहे थे। अध्यक्षता गोवा की राज्यपाल श्रीमती मृदुला सिन्हा ने की। इस अवसर पर साध्वी सुश्री ऋतम्भरा, साध्वी भगवती, विवेकानंद केन्द्र कन्याकुमारी की उपाध्यक्ष सुश्री निवेदिता भिड़े, चिन्मय मिशन कोयम्बटूर की स्वामिनी विमलानंदा, ऑल इंडिया महिला समन्वय मुंबई की प्रमुख सुश्री गीता गुंडे ने भी महिला शक्ति पर अपने विचार व्यक्त किये।

मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि भारतीय संस्कृति में नारियों को सदैव सम्मान की दृष्टि से देखा गया है। कालान्तर में बेटा-बेटी के बीच समाज में भेदभाव की स्थिति निर्मित हुई। इसे समाज के सहयोग से दूर करने के मध्यप्रदेश में व्यापक प्रयास किये गये। राज्य शासन ने बेटियों के जन्म से शिक्षा-दीक्षा, विवाह आदि में सहयोग के ठोस प्रबंध किये हैं। साथ ही सत्ता के सूत्र महिलाओं के हाथ में देने के लिए स्थानीय निकायों में 50 प्रतिशत स्थान तथा नौकरियों में 33 फीसदी स्थान आरक्षित किये हैं। उन्होंने कहा कि नशामुक्ति का अभियान भी समाज के सहयोग से चलाया जायेगा। शासन द्वारा निर्णय लिया गया है कि प्रदेश में कोई भी शराब की नई दुकान एवं डिस्टलरी नहीं खोली जाएगी।

 गोवा की राज्यपाल श्रीमती मृदुला सिन्हा ने कहा कि संविधान में महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार दिये गये हैं। महिलाओं की समस्याओं का समाधान पुरुष और महिलाएँ मिलकर कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि महिलाओं के प्रति समाज की मानसिकता बदलने की आवश्यकता है। श्रीमती सिन्हा ने कहा कि महिलाओं को पुरुष या कठपुतली बनने की आवश्यकता नहीं है, उसे नारी बनकर ही अपना सम्मान हासिल करना चाहिये।

इस अवसर पर साध्वी सुश्री ऋतम्भरा ने कहा कि स्त्री की सबसे बड़ी सृजनता उसकी संतान है। माँ अपने बच्चों को स्वाभिमान देती है। सारी समस्याओं का समाधान प्रेम, समर्पण, ममता और वात्सल्य से किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि नारी निकेतन, बाल निकेतन और वृद्धाश्रम कोई समाधान नहीं है। हमें अपनी संस्कृति की ओर लौटना होगा।

सुश्री गीता गुंडे ने कहा कि शास्त्रों में महिला को देवताओं के समान पूज्य बताया गया है। आज नारी को पूजा नहीं मनुष्य के समान सम्मान और व्यवहार की आवश्यकता है। नारी को विज्ञापनों में उपभोग की वस्तु दिखाने से समाज में हिंसा की प्रवृत्ति बढ़ी है। मनु-स्मृति में विषम से विषम परिस्थिति में भी नारी को पुरुष के घर में रहने का अधिकार दिया गया है।

साध्वी भगवती ने कहा भारत ऐसा देश है जहाँ धरती, नदी, गौ आदि को माता का दर्जा दिया गया है। भगवान के नाम में भी पहले शक्ति को प्राथमिकता दी जाती है। जैसे गौरी-शंकर, सीता-राम, राधे-श्याम आदि। साध्वी ने कहा कि वह बीस वर्ष पूर्व अमेरिका से आईं थीं और उन्होंने पाया कि सम्पूर्ण सम्पन्नता के बावजूद अमेरिका में वह विशालता और बड़प्पन नहीं है, जो यहाँ के फक्कड़ से फक्कड़ व्यक्ति के पास है। उन्होंने कहा भारत में आकर जाना कि बड़ा होना नहीं बल्कि बढ़िया होना जरूरी है। यहाँ के संस्कार और त्याग में बड़ी शक्ति है।

श्रीमती निवेदिता भिड़े ने कहा सही जीवन अस्तित्व के सत्य पर आधारित होता है। जीवन में संयम और त्याग का विस्तारित स्वरूप ही मानवता की रक्षा कर सकता है। कोयम्बटूर की स्वामिनी विमलानंदा ने कहा कि माँ के गर्भ में पहले हफ्ते से ही शिशु के व्यक्तित्व का निर्माण प्रारंभ हो जाता है, जो सात वर्ष की उम्र में पूर्ण होकर जीवन भर चलता है। उन्होंने कहा कि महिला को सम्मान दिलाने के लिए समाज में महिलाओं को नहीं अपितु पुरुषों को शिक्षित करने की आवश्यकता है।

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