प्राइवेट स्कूल संचालक अभिभावकों की जेबों पर डाका डाल रहे

प्राइवेट स्कूल संचालक अभिभावकों की जेबों पर डाका डाल रहे

फिरोजाबाद (विकास पालीवाल)—————- यूपी सरकार जहाँ शिक्षा व्यवस्था में गुणवत्ता लाने के लिए कार्य कर रही है, वहीँ प्राइवेट स्कूल संचालक योगी के इस मिशन को पलीता लगाने का कार्य कर रहे है। शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बाद प्राइवेट स्कूलों की मनमानी पर फीस के मामले में भले ही काफी हद तक अभिभावकों को राहत मिली हो मगर किताबों, ड्रेस के कारोबार में लूट का रास्ता अब भी खुला है।

जनपद के ज्यादातर स्कूल संचालक विना किसी डर के धड़ल्ले से मनमाफिक फीस बसूल रहे हैं तथा अपने यहाँ से ही कॉपी किताबें एवं अन्य सारी चीजें दे रहे है। इससे अभिभावकों पर काफी बोझ पड़ रहा है। शासन प्रशासन को इस ओर ध्यान देकर प्राइवेट स्कूूलों पर नकेल लगाने का कदम उठाना चाहिए।

निजी स्कूलों में अभिभावक अपने बच्चों के लिए किताबों आदि की खरीद में जुटे हैं। फीस के बाद अब अभिभावकों पर स्कूल से अथवा उनके निर्देश पर ही किताबें खरीदने का दबाव रहता है। बाजार में सस्ते दामों पर उपलब्ध किताबों की बजाय निजी स्कूल संचालक प्राइवेट पब्लिकेशन की महंगी बुक कोर्स में लगाकर चांदी कूट रहे है और अभिभावक अच्छी शिक्षा की आस में लुट रहा है।

आज प्रदेश की योगी सरकार पढाई में सुधार लाने व कान्वेंट स्कूलों की मनमानी पर अंकुश लगाने के लिए कदम उठा रही है। लेकिन उनके इन कदमों का असर जिले के प्राइवेट संचालकों पर नही दिख रहा है। ये लोग अपनी मनमानी से बाज नही आ रहे हैं। इन कान्वेंट स्कूलों में बच्चों के अभिभावकों पर फीस आदि ने नाम पर हजारों बसूले जा रहे हैं।

इन प्राइवेट कान्वेंट स्कूलों की बात की जाय, तो संचालकों द्वारा कॉपी-कितावों , ड्रेस आदि को भी अपने यहाँ से दे रहे हैं। और इस सबके नाम पर अभिभावकों से मोती रकम बसूली जा रही है। शिकोहाबाद, फिरोजाबाद, टूंडला, सिरसागंज आदि में ये कान्वेंट स्कूल संचालक मोटी रकम चीरने पर लगे है।

शिकोहाबाद में रोडवेज बस स्टैंड के निकट संचालित एक इंग्लिशमीडियम के स्कूल में एक्सीड पद्धति के नाम पर अभिभावकों की जेब खूब ढीली की जा रही है। एडमिशन फीस के नाम पर हर साल मोटी रकम बसूली जा रही है। इसके अलावा स्कूल कैंपस में ही स्थित बिल्डिंग में से अभिभावकों को किताबें , ड्रेस आदि दी जा रही है। वही एक वार तो कवरेज कर रहे एक चैनल के मीडियाकर्मी को कवरेज करने से रोकने का प्रयास किया गया, जिससे उनकी पोल न खुल जाये।

जब इस सम्बन्ध में स्कूल के डायरेक्टर राजीव जैन से बात की तो उनका कहना था कि जो कितावें दी जा रही हैं, वो अलग फार्म के माध्यम से दी जा रही हैं। इसका प्रोसिस अलग है। यह बिल्डिंग व्यवसाय की बिल्डिंग है। अब सवाल उठता है कि क्या स्कूल कैंपस के निकट ये सब सही है ?

ये कहानी केवल एक स्कूल की नहीं है बल्कि शहर व जिले के दर्जनों कान्वेंट स्कूलों की है। शिकोहाबाद में हाई वे पर, स्टेशन रोड पर, मैनपुरी रोड पर, फिरोजाबाद में, सिरसागंज में इन स्कूलों में यदि छापेमार कारवाही की जाये तो हकीकत सामने आ जाएगी। जहाँ पढाई के नाम पर लूट की जा रही है। कक्षा पहली से कक्षा बारहवी तक के कोर्स का औसत करीब दो हजार रुपए है।

अप्रैल माह में ही किताबों की बिक्री सात-आठ करोड़ से अधिक की हो जाती है। बुक डिपो, बुक सेलर व स्कूल संचालक में बीच तीस से पचपन प्रतिशत तक कमीशन का खेल चलता है। एडमिशन फीस के नाम पर हर साल 5 से 8 हजार, कॉपी कितावों के नाम पर 4- 5 हजार, महीनेदारी की फीस 1200 से 1500 रूपये ली जा रही है। ऐसे में गरीब व मध्यम वर्ग कैसे अपने बच्चों को पढ़ा पायेगा ?

इस संबंध में समाजसेवी डॉ अजय कुमार अहा का कहना है कि फीस लिमिट होनी चहिये, इसके लिए सरकार को कदम उठाना होगा। बुक्स, ड्रेस आदि को स्कूलों को बच्चों से अपनी मनमर्जी से लेने की छूट देने की जरुरत है।

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