नमन करें उन्हें जो परिश्रम करते हैं – डॉ. दीपक आचार्य

नमन करें उन्हें  जो परिश्रम करते हैं  – डॉ. दीपक आचार्य

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 इंसान के रूप में जगत को आगे बढ़ाने, सेवा करने और सृजन में हाथ बंटाने वाले उन लोगों को नमन करें जिनके परिश्रम से सब कुछ हो रहा है। जिनके पसीने से सारा संसार अपने आपको पाता है। जिनकी हाड़-तोड़ मेहनत पर हम लोग मौज उड़ा रहे हैं।

 हम सारे के सारे लोग जिस उन्मुक्त और मुफतिया भोग-विलास, आरामतलबी और मौज-मस्ती की बुनियाद पर आनंद मना रहे हैं उस बुनियाद को जानने, उसके समर्पित योगदान और समाज तथा विश्व को उसके अवदान के बारे में चिंतन करने का दिवस है आज। यानि की श्रम दिवस।

 असल में देश में कोई परिश्रमी तबका है तो वही है जो कड़ी धूप में लू के थपेड़ों, बरसात और कड़ाके की शीत के बावजूद अपना और परिवार का पेट पालने की जद्दोजहद में जो जुटा रहता है, सड़कों-फुटपाथों, निर्माण कार्यों, सड़क कार्यों से लेकर जी तोड़ मेहनत वाले सारे कामों में जुड़ा रहकर जो काम करता है वही श्रमिक हमारे लिए पूज्य होना चाहिए।

दुर्भाग्य से हम सूट-बूट और टाई वाले, एयरकण्डीशण्ड में धंसे रहने वाले, औरों की सेवा-चाकरी और पैसों पर मौज उड़ाने वाले, छोटे-छोटे कामों के लिए मुफतिया सुविधाएं तलाशने वाले, अपने अहंकार को परिपुष्ट करने वाले और दूसरों के पेट पर लात मारकर भी अपने आपको सर्वश्रेष्ठ मनवाने और जताने वाले तथा खुद को स्वयंभू ईश्वर की तरह मानकर दूसरों से सेवा पाने वाले सारे के सारे लोग क्या जानें मेहनत क्या होती है।

माउस पर उंगलियां चलाने वाले, दिन में दो चार आड़ी-तिरछी लकीरें बनाकर औरों का भाग्य सँवारने का दंभ भरने वाले,  मोटी-मोटी तनख्वाहें लेकर भी ड्यूटी नहीं निभाने वाले, वीआईपी और वीवीआईपी बनकर अपने आपको शेष दुनिया से पृथक और खुदा मानने वाले, एक्स्ट्रा इंकम के चक्कर में पूरी बेईमानी के साथ भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी को निर्लज्ज होकर अपनाने वाले  और मुफतिया गाड़ी-घोड़े और संसाधन तलाशने वाले लोगों को मरते दम तक यह पता नहीं चल पाता कि गरीबी और परिश्रम किस चिड़िया का नाम है।

वे लोग गरीबों का दर्द क्या जानें जो दिन में कई-कई बार किसी न किसी मुर्गे को फाँस कर चाय-नाश्ते से लेकर लंच-डीनर और दूसरे सारे भोगदायी इंतजाम जुटाने के आदी हो गए हैं। चाय-काफी, काली चाय, लेमन टी और नीबू-पानी से लेकर हर काम दूसरों के पैसों से करने-कराने वाले पशुबुद्धि लोगों में इतनी संवेदनशीलता कहां हैं कि वे एक श्रमिक का दर्द समझ पाएं।

आज इस मामले में पूरी दुनिया दो तरह के लोगों में बंट गई है। एक वे हैं जो मेहनतकश हैं और जिनके लिए मेहनत करना ही विवशता है और परिश्रम पर ही वे जिन्दा हैं। इन लोगों के भाग्य में किसी तरह का सुख भले न लिखा हो, अभावों भरी जिन्दगी भले जी रहे हों, मगर ये तमाम लोग पक्के तौर पर स्वाभिमानी, ईमानदार और निष्ठावान हैं।

कम से कम उन लोगों की तरह तो बिल्कुल नहीं हैं जो पराये धन पर मौज उड़ाते हैं, हरामखोरी करते हैं और अपने कर्तव्य को गौण समझते हुए भिखारियों और श्वानों की तरह लपकते रहने के आदी हो गए हैंं, अपने स्वार्थ और कामों को लेकर किसी के भी आगे पसर जाया करते हैं, किसी भी तरह की याचना से गुरेज नहीं करते और स्वाभिमान को भुला कर इंसानियत तक गिरवी रख दिया करते हैं।

बंद एसी कक्षों में व्हील चेयर्स में धंसे रहने वाले, फाईलों के जंगल में तरह-तरह की फसलें उगा लेने का तिलस्म रखने वाले और बिना किसी मेहनत के पूरी की पूरी झोली भरने वाले लोगों से इनका मुकाबला नहीं हो सकता।

श्रमेय जयते का उद्घोष केवल वे ही लोग कर सकते हैं जो प्रकृति के बीच रहते हुए दिन-रात कर्म करते हैं। उन जैसा कर्म हम लोग नहीं कर सकते जो दिमागी घोड़े ही दौड़ा सकते हैंं। हम लोग कुछ भी नहीं कर सकते। थोड़ा सा परिश्रम कभी-कभार करना पड़ जाए तो पसीना निकल आता है, थक कर चूर हो जाते हैं और हायतौबा मचाने लगते हैं।

कितना अच्छा हो कि जो लोग अपने आपको महान और नियंता समझ बैठे हैं उन लोगों के एयरकण्डीशण्ड एक-दो दिन के लिए बंद कर इन सभी को चंद फीट के दायरों से बाहर धकेल कर उस परिश्रम से जोड़ा जाए जो कि दूसरे लोग करते हैं।

हम सभी लोगों को एक दिन के लिए सरे राह उन कामों में लगा दिया जो आम मजदूर करते हैं, तो सबको मौत ही आ जाए। पांच मिनट धूप में खड़े नहीं रह सकते, नानी याद आ जाए। साल में एक बार श्रम दिवस पर कम से कम ऎसा होना ही चाहिए कि सभी को बंधे-बंधाये परिसरों से सायास बाहर धकेल कर दिन भर के लिए उन कामों में लगाया जाए जो मेहनतकश लोगों के काम हैं। अपने आप हमारी धारणाएं बदल जाएंगी।

आज श्रम दिवस है। आज के दिन श्रमिकों के त्याग, समर्पण और सेवा को जानने और उनके महत्व को पहचानने की आवश्यकता है।

 

 

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