• July 11, 2018

बुराडी घटना —- एहसास या आभास– शैलेश कुमार

बुराडी घटना —- एहसास या आभास– शैलेश कुमार

एहसास या आभास

जब आशा की सभी किरणें बंद हो जाती है।

सांसारिक उत्पात और आंतरिक विक्षुब्धता आशाहीनों के लिए बाबा और धार्मिक मठ अंतिम शरण बन जाता है। अपने आप को अदृश्य या बाबा के सामने समर्पित कर देता है। इसके बाद उसके पास आशाओं की सभी किरणें बुझ जाती हैं यही वह अवस्था है जहां से आत्महत्याओं की सोच प्रबल हो जाती है तथा व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है। इस घटना को मूर्ख लोग या धार्मिक गुरु मोक्ष या भाग्य जैसे मूर्ख बनाने वाले शब्दों से महिमामंडित करते हैं ।

भौगिक वस्तु की पर्याप्ता इच्छापूर्ति का साधन नहीं है क्योंकि इच्छा वह तत्व है जिसकी पूर्ति असंभव है।

उदाहरण –एक व्यक्ति धनवान है ,पत्नी काफी सुन्दर और सांस्कारिक है। लेकिन वह जोड़ी भी असंतुष्ट है क्यों ?

क्योंकि –धन से भौगिक वस्तु का संचय करता तो है लेकिन दोनों की इच्छाओं में मत विभिन्नता है। यही मत विभिन्नता आपसी विक्षोभ का कारण बन जाता है। यहां से शुरु होता है – निराशावाद। निराशावाद के कारण जिज्ञासा कि पूर्ति में मन भटकने लग जाता है।- यह भटकाव पन ही है जिसके कारण आत्महत्या जैसी विचार उत्पन्न होता है.विषमयता का अंतिम चरण में यह घटनायें घटती है।

यहाँ धन और सम्भोग दोनों है।

धन वस्तु है- उसे गिना जाता है ,उसमे भार है , आकारयुक्त हैं।

सम्भोग –इच्छा है , इसमें भार है ,न आकार ही । लेकिन स्पर्शता है। स्पर्शता से जिज्ञासा ही बढ़ती है , पूर्ति नहीं होती । पिपाशा है , मृगतृष्णा है।

इसे सिर्फ एहसास किया जाता है। जब तक दोनों सामने है। ठीक है। लेकिन पृथक होने पर मन फिर एक दूसरों के लिए भटकने लगता है। सम्भोग से इच्छा की पूर्ति नहीं होती है। आभास (एहसास ) होता है।

हर पल साथ रहते हुए भी अगर कुछेक घंटो के लिए अलग होने का समय आता है तो मन व्याकुल हो जाता है इसलिए ऑफिस में रहने के वाबजूद भी पति -पत्नी फोन पर संपर्क में रहते हुए इच्छाओं को दिलासा , आभास दिलाते हैं।

पुलिस रिपोर्ट के अनुसार बुराड़ी (नई दिल्ली ) की घटनायें भी एहसास ही है।

अगर दिल और दिमाग अदृश्य शक्ति पर केंद्रित हो जाता है तो एहसास होता है की वह तत्व सामने ही नहीं है उसमें हर आंतरिक और बाह्य क्रियायें होने लग जाती है — जैसे -आवाज और गति।

इस अवस्था में व्यक्ति का भौतिक दुनिया से संपर्क कट जाता है। जिसे ध्यान की द्वितीय स्तर कह सकते हैं। इसी अवस्था में अपने पूर्वजों के साथ संपर्क होता है। यह सही है की पूर्वज, व्यक्ति को अपने साथ चलने को कहता है। यह आवाज आती है।

यही वह अवस्था है जिसके कारण वह व्यक्ति अपने को भगवान् समझने लग जाता है। लेकिन यही पर वह भूल कर बैठता है और सर्वश्व समझने लग जाता है । यहीं गलतियां भाटिया परिवार ,संतनगर , बुराड़ी , नई दिल्ली में हुआ।

जबकि ललित को यहाँ धैर्य रखना चाहिए और आगे बढ़ना चाहिए , ललित ही नहीं कोई भी नहीं धैर्य रख सकता है क्योंकि यह अवस्था एक अनुपम और मनोरम होता है और व्यक्ति आत्म संयम खो बैठता है। ।

जहाँ तक मैं समझता हूँ ध्यान की चतुर्थ श्रेणी में जाने लायक इस पृथ्वी पर आज के तिथि में कोई नहीं है।

ध्यान की द्वितीय श्रेणी में विरक्तता है — विरक्त का कई श्रेणी है– जैसे किसी को अन्न से घृणा,किसी को व्यक्ति से घृणा , किसी को सांसारिक तत्व से घृणा. जब सांसारिक तत्व से घृणा होने लग जाता है तो एंकातवास होने की सोच प्रबल हो जाती है तथा वह व्यक्ति एक सन्यास धारण कर लेता है.लेकिन इस अवस्था में आने के बाद भी वह सफल नही हो पाता है क्योंकि तृष्णा या इच्छाएं या जिज्ञासा पर विजय प्राप्त करने में सफल नहीं हो रहा होता है.

जब तक हम तृष्णा या इच्छाएं या जिज्ञासाओं के बीच में रहकर उस पर विजय प्राप्त नही कर लेते ध्यान का द्वितीय स्तर भी प्राप्त नही कर सक्ते हैं. जब ह्म उस वस्तु पर तुल पडे, अर्थात पल-पल हम वही काम करें.उदाहरण– दूध या दही का सेवन.24 घंटा में 18 घंटा इसी का सेवन करें तो कभी न कभी वह वक्त आयेगा इसे देखते ही मन घृणा से भर उठेगा। यह घृणा विरक्त का रुप है। मोह भंग होना यहां से शुरु हो जाता है।

सन्यास या किसी मठ में रह कर यह प्राप्त नही कर सकते हैं क्योंकि यहां वही है जो घर और समाज में व्याप्त होने के कारण लोग बाग इस पथ पर चलने हेतु कदम उठाते है।

उज्जैन महाकुंभ में 4000 पुरुष घर से गायब हो गये. वे कहां गये. किसी मठ में गये होगें,नागा समूह में गये होगें. कुछ दिनों के बाद घर के बारे में सोचें होगें इस अवस्था मे उन लोगों की हालात घर के न घाट का रह गया। पारिवारिक रहे न सन्यासी। इसलिये भ्रमित व्यक्ति ईश्वरीय तत्व को पाने में असफल रहा है और रहेगा।

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