जब ब्याज दरें बढ़ती हैं तो बॉन्ड प्रतिफल बढ़ता है और उनकी कीमतों में गिरावट होती है

जब ब्याज दरें बढ़ती हैं तो बॉन्ड प्रतिफल बढ़ता है और उनकी कीमतों में गिरावट होती है

बिजनेस स्टैंडर्ड : भारतीय बैंकों के लिए मौद्रिक सख्ती बहुत चुनौतीपूर्ण स्थिति पैदा कर रही है। भारतीय रिजर्व बैंक नीतिगत दरों में बढ़ोतरी कर रहा है। नियामकीय जरूरतों के मुताबिक बैंकों को इस बढ़ोतरी से बचने की कवायद करनी पड़ रही है। लेकिन बढ़ती ब्याज दरों के मौजूदा चक्र में घरेलू बैंक पहले की मौद्रिक सख्ती के दौर की तुलना में बहुत बेहतर स्थिति में हैं, भले ही कुछ समय के लिए सरकारी प्रतिभूतियों पर प्रतिफल कई वर्षों के शीर्ष पर पहुंच गया था।

जब ब्याज दरें बढ़ती हैं तो बॉन्ड प्रतिफल बढ़ता है और उनकी कीमतों में गिरावट होती है। बैंकों को एक बड़ी धनराशि बॉन्डों में लगाना जरूरी है, ऐसे में बॉन्ड की कीमतों से अतिरिक्त बोझ पड़ सकता है। पिछले कुछ साल में बैंकों के मुनाफे में कमी आई, जब रिजर्व बैंक ने दरों में बढ़ोतरी शुरू की, जिसमें खजाने में कमी की वजह से वित्तीय स्थिरता को लेकर जोखिम भी बढ़ा।

4 मई को शुरू हुए ब्याज दरों में बढ़ोतरी के मौजूदा चक्र के बाद रिजर्व बैंक ने रीपो रेट में कुल 140 आधार अंक बढ़ोतरी की है। अप्रैल-जून तिमाही में 90 आधार अंक की बढ़ोतरी हुई। इसकी वजह से 10 साल के बेंचमार्क सरकारी बॉन्ड का प्रतिफल 61 आधार अंक बढ़ गया। विश्लेषकों का अनुमान है कि प्रतिफल में बढ़ोतरी से 11,800 करोड़ रुपये के करीब का असर पड़ा है, जिसमें से करीब 8,600 करोड़ रुपये की चपत सार्वजनिक बैंकों को लगी है। बैंकों में सरकारी बैंकों के पास सरकार की प्रतिभूतियों का बड़ा हिस्सा होता है। ट्रेजरी का कामकाज भी प्रभावित हुआ है, लेकिन पहली तिमाही के परिणाम से पता चलता है कि बैंकों के मुनाफे पर बॉन्ड से नुकसान का असर मामूली है। ज्यादातर बैंकों के शुद्ध मुनाफे में बेहतर बढ़ोतरी हुई है।

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