• October 28, 2014

जनजाति उपयोजना के प्रावधानों को और अधिक प्रासंगिक बनाया जाए -जनजाति क्षेत्रीय विकास मंंत्री

जनजाति उपयोजना के प्रावधानों को और अधिक प्रासंगिक बनाया जाए  -जनजाति क्षेत्रीय विकास मंंत्री

जयपुर, 28 अक्टूबर। जनजाति क्षेत्रीय विकास मंत्री श्री नन्दलाल मीणा ने केन्द्र सरकार से मांग की है कि जनजाति उपयोजना के प्रावधानों को और अधिक प्रासंगिक बनाया जाये। साथ ही राजस्थान में ल बे समय से की जा रही अनुसूचित क्षेत्र के विस्तार की मांग को भी स्वीकार किया जाये तथा प्रदेश में अनुसूचित जनजाति की जनसं या के प्रतिशत को मद्देनजर रखते हुए आदिवासियों के आरक्षण को और अधिक व्यवहारिक बनाया जाये।

श्री मीणा मंगलवार को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में राज्यों के जनजाति विकास मंत्रियों की बैठक को स बोधित कर रहे थे । बैठक की अध्यक्षता केन्द्रीय जनजाति मामलों के केबिनेट मंत्री श्री जुएल उरांव ने की । बैठक में केन्द्रीय जनजाति मामलों के राज्य मंत्री श्री मनसुखभाई डी.वसावा भी उपस्थित थे।

 बैठक में श्री मीणा ने सुझाव दिया कि केन्द्र सरकार की ओर से सभी राज्यों को स्पष्ट निर्देश जारी किए जाने चाहिए, जिसमे महाराष्ट्र पैटर्न की तरह जनजाति उपयोजना के अन्तर्गत किए गए प्रावधानों में जनजाति क्षेत्रीय विकास विभाग का पूर्णत: नियंत्रण हो सके। उल्लेखनीय है कि जनजाति समुदाय एवं जनजाति क्षेत्रों को सामान्य समुदाय एवं अन्य क्षेत्रों के विकास के स्तर तक विकास की सुनिश्चितता हेतु महाराष्ट्र पैटर्न के आधार पर प्रत्येक विभाग को अपनी वार्षिक योजना से उस प्रदेश की अनुसूचित जनजाति की जनसं या के अनुपात में राशि का आवंटन जनजाति उपयोजना के अन्तर्गत किए जाने का प्रावधान है।

श्री मीणा  ने बताया कि राजस्थान में जनजाति समुदाय की जनसं या 13.5 प्रतिशत है। अत: महाराष्ट्र की तर्ज पर प्रत्येक विभाग को अपनी वार्षिक योजना में से 13.5 प्रतिशत राशि जनजाति उपयोजना हेतु प्रावधान वास्तविक रूप में करने के लिए पाबंद किया जाना चाहिए।

श्री मीणा ने केन्द्र सरकार को राजस्थान में आदिवासियों के आरक्षण को और अधिक व्यवहारिक बनाने का सुझाव भी दिया। उन्होंने बताया कि 2011 की जनगणना के अनुसार राजस्थान में कुल जनसं या का 13.5 प्रतिशत भाग अनुसूचित जनजातियों का है और वर्तमान में आरक्षण प्रावधानों के अन्तर्गत उन्हें केवल 12 प्रतिशत ही आरक्षण दिया जा रहा है। जिन्हें बढ़ाकर 13 प्रतिशत किया जाना प्रासंगिक होगा। उन्होंने बताया कि वर्तमान में राज्य में अनुसूचित जाति, जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग को मिलाते हुए कुल 49 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया हुआ है, अत: अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण में एक प्रतिशत की वृद्घि से कोई संवैधानिक बाधा उत्पन्न नहीं होगी।

उन्होंने राजस्थान में अनुसूचित क्षेत्र के विस्तार की मांग करते हुए कहा कि प्रदेश की नई सरकार आदिवासियों की इस मांग को मानते हुए जनगणना 2011 के आधार पर अनुसूचित क्षेत्र, माडा क्षेत्र एवं माडा कलस्टर क्षेत्र में विस्तार के प्रस्ताव तैयार करवा रही है तथा मु यमंत्री की अनुशंषा के साथ अनुसूचित क्षेत्र के विस्तार के प्रस्ताव यथा शीघ्र भारत सरकार को भिजवाए जा रहे है। उन्होंने भारत सरकार से इस पर सकारात्मक कदम उठाने का आग्रह किया। साथ ही कहा कि लगातार विस्तृत 50 प्रतिशत से अधिक आदिवासी जनसं या वाले क्षेत्रों की “ग्राम पंचायत” के स्थान पर “राजस्व ग्राम” को आधार माना जाए, ताकि क्षेत्रों के विस्तार को और व्यवहारिक बनाया जा सके।

श्री मीणा ने राजस्थान में आदिवासियों की शिक्षा में गुणात्मक विकास के लिए अधिकाधिक शैक्षणिक संस्थाओं को खोलने हेतु पर्याप्त वित्तीय संसाधन उपलब्ध करवाने की मांग रखते हुए केन्द्र सरकार से आग्रह किया कि, भारत सरकार की शिक्षा से संबंधित ‘अ ब्रेला-स्कीम’ के अन्तर्गत आने वाली योजनाओं में कुल राशि का राज्य की जनसं या के अनुरूप आवंटन कर स्थानीय आवश्यकता के अनुरूप योजनाओं एवं कार्यक्रमों के चयन की स्वतंत्रता राज्य सरकार को प्रदान की जानी चाहिए।

श्री मीणा  ने विशेष केन्द्रीय सहायता एवं संविधान की धारा 275(1) के अन्तर्गत अनुदान  के नियमों में रियायत की मांग करते हुए कहा कि इन नियमों के अधिक व्यवहारिक बनाते हुए विगत वित्तीय वर्ष की स्वीकृत राशि के 60 प्रतिशत व्यय राशि के उपयोगिता प्रमाण-पत्र के आधार पर चालू वित्तीय वर्ष हेतु राशि स्वीकृत करने के लिए नियमों में आवश्यक संशोधन किया जाए। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में भारत सरकार द्वारा चालू वित्तीय वर्ष के लिए विशेष केन्द्रीय सहायता एवं संविधान की धारा 275(1) के अन्तर्गत अनुदान हेतु विगत वित्तीय वर्ष की 100 प्रतिशत राशि के उपयोगिता प्रमाण-पत्र चाहे जाते है।

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