• April 14, 2016

खेतों में पैदा हुए कूए बुझा रहे हैं प्यास – कल्पना डिण्डोर

खेतों में पैदा हुए कूए बुझा रहे हैं प्यास – कल्पना डिण्डोर

बांसवाड़ा (जि०सू०ज०अधिकारी) –ख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान के मकसद को पूरा करने में आदिवासी बहुल बांसवाड़ा जिला आगे ही आगे है। पानी की दृष्टि से आत्मनिर्भरता पाने के लिए मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे की पहल पर जारी यह अभियान आदिवासी क्षेत्रों में बरसात से पहले ही सार्थक होकर चमत्कार दिखाने लगा है।Pushpa

जिले में इस अभियान के तहत ग्राम्यांचलों में परंपरागत जलाशयों को गहरा कराने व साफ-सफाई और नवीन जल संरचनाओं के निर्माण की गतिविधियां परवान पर हैं। इन्हीं के साथ ग्रामीणों के समूहों को लाभान्वित करने के लिए काश्तकारों के खेतों में व्यक्तिगत कूओं के निर्माण का काम भी व्यापक स्तर पर चलाया जा रहा है।

ग्रामीणों में पसरा हर्ष 

इन कूओं का निर्माण ग्रामीणों को खूब रास आ रहा है और वे पूरी मेहनत के साथ इस काम में जुटे हुए हैं।  कई क्षेत्रों में इन कूओं का निर्माण पूरा हो चुका है और इसके आशातीत परिणाम सामने आए हैं।  भरी गर्मियों के बावजूद इन नए कूओं में पानी आ गया है। ग्रामीण इसे सरकार के मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान का चमत्कार ही मानते हैं। अपने खेतों में अपने कूओं में पानी आ जाने का अपार हर्ष इन ग्रामीणों के चेहरों से आसानी से पढ़ा जा सकता है।

ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ-जहाँ नए बने कूओं में पानी आ गया है वहाँ के ग्रामीण जश्न मना रहे हैं। इसकी खास वजह यह है कि पहाड़ी क्षेत्र में बसे ये गाँव काफी ऊँचाई पर हैं और इस कारण से वहां पेयजल स्रोत या सिंचाई का कोई साधन नहीं है।

असिंचित क्षेत्र होने की वजह से यहाँ जलाभाव में कई प्रकार की समस्याओं का सामना जनजीवन को करना पड़ता रहा है। जल संकट को जीवन की नियति मान चुके इन ग्रामीणों ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उनके अपने खेतों में कूओं में पानी भरने लगेगा और खुशहाली का नया दौर शुरू होगा। लेकिन मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान की बदौलत इन गांवों में चमत्कार ही हो गया है।

अभियान की वजह से पानी का वरदान पाने वाले गांवों में बांसवाड़ा जिले का बगायचा गांव भी प्रमुख है।  मध्यप्रदेश की सीमा पर राजस्थान के अंतिम छोर पर पहाड़ियों में बसा यह गांव जल समस्या का परंपरागत गढ़ रहा है। ग्रामीण बताते हैं कि यहां पानी की समस्या हमेशा रही है। पीने का पानी दो से तीन किलोमीटर दूर से लाना पड़ता रहा है। मवेशी पालन और खेती-बाड़ी भी बरसात पर ही निर्भर है लेकिन पहाड़ी इलाका होने से सारा का सारा पानी बहकर चला जाता है और अपने पीछे छोड़ जाता है जल संकट।

मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान में जिला प्रशासन ने कुशलगढ़ उपखण्ड क्षेत्र अन्तर्गत आने वाले इस सरहदी गांव में जल संरक्षण का काम हाथ में लिया। इस गांव में ग्रामीणों के समूहों के बीच व्यक्तिगत कूप निर्माण के काम स्वीकृत किए गए।

 अपने खेत में अपना कूआ बनाने का उत्साह ऎसा रंग लाया कि ग्रामीणों में इस बात की हौड़ मच गई कि अपने खेत में जल्द से जल्द कूआ बने। पहले तो सभी को आशंका थी कि पहाड़ी पर बसे इस क्षेत्र में इतनी ऊँचाई पर पानी कैसे आएगा। लेकिन अभियान की पवित्र मंशा और बरसात के बाद कूओं में पानी भर जाने की आशा ने इन कूओं के काम में लगे ग्रामीणों को सम्बल दिया। देखते ही देखते कई कूए खुद गए। गांव के लोगों की खुशियों का पार नहीं रहा जब उनकी आँखों के सामने ही इन नए कूओं में भीषण गर्मी के मौसम में भी शीतल एवं मीठा जल निकल आया और कूओं में पानी की आवक बन गई।

घर बैठे आयी गंगा

हर्षाएं ग्रामीण कहते हैं कि यह उनके लिए गंगा मैया ही है जो उनकी बरसों पुरानी समस्या को समाप्त कर खुशहाली देने आयी है। ग्रामीणों ने श्रीफल वधेर कर पानी के देवता का स्वागत किया, कूओं से निकला शीतल जल सभी को पिलाया। सब ने मिलकर मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे और सरकार का आभार व्यक्त किया जिनकी खातिर आज ग्रामीणों की जिन्दगी में समस्याओं का खात्मा होकर नया सूरज उग आया। ग्रामीणों के अनुसार सरकार ने घर बैठे उनकी दशकों की समस्या दो-तीन माह में ही खत्म कर दी। ये कूए परिवार की धरोहर के रूप में पीढ़ियों तक को खुशहाली देते रहेंगे।

खुशहाल होगा ग्राम्य जनजीवन

कूप निर्माण में जुटी श्रमिक बगायचा गांव की ही आदिवासी महिला कमला खूब खुश होकर वागड़ी लहजे में कहती हैं-  कूआ मएं ताजु-ताजु,टाडू-टाडू पाणी घणू आवी ग्यू है, पीवा नो मजो आवे। आ त गंगा मैया अमारे घेरे आवी गई है। पाणी पीवा भी काम आवेगा, नै मकी, कपा ने बीजू धान,शाक-भाजी भी करंगा। कमाई हारू बाण्णे नी जावू पड़े। घोर-खेतर कमाई आलेंगा।

अर्थात कूए में शुद्ध और ठण्डा पानी खूब आ गया है, पीने में मजा आता है। यह तो गंगा मैया ही हमारे घर आ गई है।  पानी पीने के काम भी आएगा और इससे मक्का, कपास और धान, सब्जियां, फल-फूल आदि करेंगे। अब कमाने के लिए बाहर नहीं जाना पड़ेगा। घर और खेतों से ही आमदनी हो जाएगी।

राज और राजे की सौगात

बगायचा के ग्रामीण बताते हैं कि गांव में पानी की समस्या सबसे बड़ी थी। पानी के अभाव में खेती-बाड़ी भी नहीं हो पाती इसलिए गांव के लोग रोजगार के लिए शहरों में जाते रहे हैं। मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान की वजह से हो रहे जल संरक्षण कार्यों और कूओं के निर्माण ने अब हालात बदले हैं। अब लोग अपने गांव में यहीं रूक कर खेती-बाड़ी पर ध्यान देंगे और अपने पशुओं की देखभाल भी करेंगे। पानी आ जाने से कई सारी समस्याओं का खात्मा होने लगा है और ग्रामीणों को जीवनयापन में सुविधा होगी।

ग्रामीण कूप निर्माण और जल संरक्षण गतिविधियों को मुख्यमंत्री श्रीमती राजे और राज्य सरकार की सौगात मानते हैं और कहते हैं इससे पलायन रुकेगा और कमाने के लिए अन्यत्र जाने की विवशता खत्म हो जाएगी।

कौतूहल जगा रहे हैं कूए

क्षेत्र में नए बने कूओं में पानी का आ जाना सरहद पार के गांवों में रहने वाले के लिए भी कौतूहल बना हुआ है। गांव में मेहमान आने वाले सरहदी ग्रामीण इस पर आश्चर्य जताते हैं। बगायचा के जिन खेतों में कूओं में पानी आ गया है वे काश्तकार जो भी आता है उसे उत्साह के साथ अपना कूआ दिखाते हैं और इसका पानी पिलाना नहीं भूलते। ग्रामीण श्रमिक पुष्पा कहती हैं कि इसका सबसे बड़ा फायदा गांव की महिलाओं को हुआ है जिन्हें दो-तीन किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ता था।

अभियान की मंशा सार्थक

जिला कलक्टर श्री प्रकाश राजपुरोहित बताते हैं कि मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान के अन्तर्गत जनजाति बहुल बांसवाड़ा जिले में कूप निर्माण की गतिविधियां जोरों पर चलायी जा रही हैं और सुखद बात यह है कि इनमें पानी आने लगा है। इससे ग्रामीणों को इस अभियान का लाभ बरसात से पहले मिलने लगा है। यह योजना बांसवाड़ा जिले के पहाड़ी और आदिवासी क्षेत्रों के लिए वरदान साबित हो रही है और ग्रामीणों को जल के मामले में स्वावलम्बी बनाने का स्वप्न साकार होता जा रहा है।

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