मलीन और मनहूस हैं ये – डॉ. दीपक आचार्य

मलीन और मनहूस हैं ये  –  डॉ. दीपक आचार्य

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स्वच्छता का सीधा संबंध मन और मस्तिष्क से होता है। बाहर से देखने पर किसी भी इंसान को परखा नहीं जा सकता क्योंकि इंसान जब संसार के सामने आता है तब बन-ठन के आता है और उसका एकमेव उद्देश्य यही होता है कि जमाने भर में उसके हुलिये की तारीफ हो, लोग पसंद करें।

इसके लिए वह सम सामयिक फैशन, इत्र-फुलैल और दूसरे सारे सौन्दर्य-हथियारों को अपनाने के बाद ही बाहर की दुनिया में आता है।

यह इंसान का वह चेहरा है जिसे मुखौटा कहा जा सकता है। इसके आधार पर उसके व्यक्तित्व का पूर्ण एवं सटीक मूल्यांकन नहीं किया जा सकता। पर इतना जरूर है कि इंसान की वाणी, व्यवहार और कर्म को देखकर उसकी थाह अच्छी तरह पायी जा सकती है।

इंसान और स्वच्छता के संबंधों पर ही चर्चा करें तो हम पाते हैं कि हर इंसान की स्वच्छता विषयक गतिविधियों को लेकर उसके दिल और दिमाग तथा शरीर के स्वास्थ्य एवं व्यवहार तथा इनके भूत, भविष्य एवं वर्तमान को टटोला जा सकता है।

जैसा आदमी का मन होता है वैसा ही उसका स्वभाव होता है। जैसा दिमाग होता है उसी के अनुरूप व्यवहार करता है। इस मामले में पारिवारिक और वंशानुगत संस्कारों का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है।

जो इंसान बाहर से गंदा और गंदगी पसंद होता है वह भीतर से भी उतना ही गंदगी भरा होता है। इस किस्म के लोगों का मन-मस्तिष्क और शरीर सब कुछ मैला और मलीन होता है। और जिसका दिल और दिमाग गंदा है वह इंसान बाहरी साफ-सफाई को भी पसंद नहीं करता।

बहुत सारे लोग हमारे संपर्क में आते हैं जिनकी हरकतों को देख कर साफ-साफ कहा जा सकता है कि ये लोग गंदे हैं और इन्हें अधिकांश लोग नापसंद करते हैं। किसी मजबूरी में साथ रहना, साथ काम करना और सम्पर्क रखना अलग बात है लेकिन ऎसे लोगों को कोई भी स्वेच्छा या प्रसन्नता के साथ कभी स्वीकार नहीं करता।

इस मामले में अपने घर के बाथरूम और शौचालयों की स्थिति आरंभिक पैमाना या संकेतक है। जिनके घरों या कार्यस्थलों के शौचालय और स्नानघर बदबूदार रहते हैं, जो लोग लघुशंका या दीर्घशंका के बाद पर्याप्त पानी प्रवाहित नहीं करते, हाथ-पाँव नहीं धोते, जिनकी वजह से बाद में इनका सुविधालयों का उपयोग करने वालों को घृणा होती है, वे सारे के सारे लोग अपने मन और मस्तिष्क से भी गंदे होते हैं।

खूब सारे लोग हैं जो न तो पानी फ्लश करते हैं, न अपने सुविधालयों में साफ-सफाई के प्रति गंभीर रहते हैं। हम सभी के संपर्क में ऎसे छोटे-बड़े कद, पद और मद वाले खूब लोग आते हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि इन्हें सुविधालयों का ठीक से उपयोग करना तक नहीं आता, साफ-सफाई के प्रति लापरवाह हैं और खुद भी गंदे रहते हैं।

बहुत सारे घरों, कार्यालयों, सार्वजनिक स्थलों आदि में शौचालय एवं स्नानघर गंदे होते हैं वहीं अधिकांशतया दोनों एक ही जगह एक साथ होते हैं। यह अपने आप में सबसे बड़ा वास्तु दोष और शुचिता भंग है जिसके कारण से उन स्थानों पर हमेशा कोई न कोई मलीनता या काले साये का असर बना रहता है क्योंकि गंदी आत्माएँ इसी प्रकार के स्थलों को तलाशती हैं जहाँ  बदबू और गंदगी के कतरे हों। इसका सीधा असर इन स्थलों में रहने वाले सभी लोगों पर पड़ता है जो कि अक्सर बीमारी से घिरे रहते हैं।

इसी प्रकार बहुत सारे लोग हमारे संपर्क में आते हैं जो चाहे जहाँ पान-गुटके की पीक कर दिया करते हैं, थूंकते रहने की आदत से लाचार हैं और गंदगी फैलाने में इनका कोई जवाब नहीं।

जो लोग ऎसा करते हैं वे सारे के सारे खुराफाती होते हैं। इनके दिमाग में हमेशा षड़यंत्र और गंदगी पसरी रहती है। इनके मन काले और मैले होते हैं। यकीन न हो तो इन लोगों के स्वभाव और व्यवहार, रोजमर्रा के काम-काज और चरित्र को देख लीजिये। बहुत से लोग हैं जिन्हें हम बड़ा,प्रभावशाली और अनुकरणीय मानते हैं लेकिन ये लोग भी साफ-सफाई के मामले में उपेक्षा ही बरतते हैं।

बड़े से बड़े लोगों के चाल, चलन और चरित्र की थाह पानी हो तो उनके बाथरूम्स और शौचालय के हालात अपने आप में काफी हैं। इनकी स्थिति देखकर किसी की भी मानसिक और शारीरिक स्थिति तथा मानवीय संवेदनशीलता का पता किया जा सकता है।

इन मलीन लोगों का साथ भी घातक है और इनका साया पड़ना भी दूसरों के आभामण्डल को कालिख से भर देने वाला है। अपने आस-पास के लोगों का परीक्षण करें और जानें कि कौन किस मानसिकता का है और इस हिसाब से उनके साथ व्यवहार रखें। दूरी बनाए रखने और उपेक्षित कर देने से बढ़ कर इन बीमारियों का कोई ईलाज नहीं है। बाहरी स्वच्छता के लिए जितने सारे जतन हो रहे हैं उससे कहीं अधिक जरूरत है आंतरिक स्वच्छता की।

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