- June 25, 2015
मांग :: गुलेल को राष्ट्रीय खेल घोषित करें :- लवकुमार जाधव, (सेक्रेटरी जनरल)
भारतीय गुलेल संघ एक ऐसा प्रतिभाषाली खेल है जिससे निषानेबाजी का कौषल, निरिक्षण क्षमता, एकाग्रता आदि अंगभूत कौशलों का विकास होता है, सदियों से यह खेल भारत वर्ष में खेला जा रहा है। खेल के अलावा यह गुलेल, युद्ध कौषल और अनेक युद्ध प्रसंगो में आत्मसंरक्षण के लिए भी कारगर साबित हुआ है।
‘गुलेल’ को भारत का राष्ट्रीय खेल का दर्जा मिलने की आवश्यकता है और इस खेल को हर मायने में विकसित और अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए हम हर प्रयास करने के लिए सदा तत्पर है। इसी दिशा में भारतीय आॅलम्पिक असोसिएषन के खेल की सूची में इस गुलेल खेल का नाम निर्देषन होना आवष्यक है।
आज भी भारत के ग्रामीण क्षेत्र तथा अनेक शहरों में भी इसका काफी प्रचलन हैं। प्राचीन काल में युद्ध कला में भी इसका प्रषिक्षण दिया जाता था और इसके लिए खास गुलेल के संघ भी सेना में होते थे। कई लोग गुलेलबाजी में महारत हासिल करने के लिए इसका उपयोग एक खेल की तरह करते है। इससे निषानेबाजी का कौषल बहुत ही अच्छे और महत्वपूर्ण ढंग से विकसित होता है।
पुराने जमाने मे शिकारी गुलेल से पक्षियों और प्राणीयों की हत्या करते थे और अपना पेट पालने की कोषिष करते थे। हालांकी अभी भी भारत के कई इलाकों जैसे आदिवासी और ग्रामीण या जंगली क्षेत्रो में गुलेल का उपयोग होता है। लेकिन अगर हम इस को एक खेल के तौर पर विकसीत करते है तो बेवजह पक्षी और प्राणी की हत्या का प्रमाण कम हो सकता हैं और इस खेल का समावेष हम अगर राष्ट्रीय खेल में करते है तो अच्छे निषानेबाज विकसित हो सकते है। अगर सही मायने में इसे सराहा जाये और इस खेल को सही ढंग से विकसित किया जाये तो राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रिय स्तर पर अनेक निषानेबाज खिलाडी उभर सकते है और भारत का नाम वैष्विक स्तर पर उँचा कर सकते है।
संप्रेषक- लवकुमार जाधव, (सेक्रेटरी जनरल)
भारतीय गुलेल संघ
मो० 09403204353