वर्षांत समीक्षा : वर्ष 2015 के दौरान अंतरिक्ष विभाग की उपलब्धियां

वर्षांत समीक्षा : वर्ष 2015 के दौरान अंतरिक्ष विभाग की उपलब्धियां

1.    मंगल यान मिशन:

पेसूका *****************  भारत के मंगल ग्रह की परिक्रमा यान ने योजना के अनुरूप सफलतापूर्वक अपने मिशन के उद्देश्य को पूरा कर लिया है और 24 सितंबर, 2015 को मंगल ग्रह की कक्षा के चारों ओर एक वर्ष पूरा कर लिया है। इसे सफलतापूर्वक 24 सितंबर 2014 को मंगल ग्रह के चारों ओर के अंडाकार कक्ष में पहुंचाया गया था। सफलतापूर्वक अंतरिक्ष यान में निर्मित ऑटोनोमी का इस्‍तेमाल करते हुए जुलाई 2015 में मंगल यान सौर संयोजन (संचार ब्‍लैकआउट के एक चरण) से बाहर लाया गया था। अभी यह अंतरिक्ष यान बेहतरीन स्थिति में है और सभी पांच वैज्ञानिक पेलोड मंगल ग्रह की सतह की विशेषताओं और मंगल ग्रह के वातावरण के बारे में महत्वपूर्ण डेटा प्रदान कर रहे हैं। मंगल ग्रह के रंगीन कैमरे द्वारा ली गई मंगल ग्रह की तस्‍वीरें बहुत अच्छी गुणवत्ता वाली हैं। मंगलयान अंतरिक्ष यान के प्रक्षेपण की दूसरी वर्षगांठ पर 5 नवंबर, 2015 को इसरो ने भारत की अंतरिक्ष यात्रा पर लेखों का संग्रह ‘फ्रॉम फिशिंग हैम्‍लेट टू रेड प्‍लेनेट’ शीर्षक से एक पुस्तक जारी की थी।

इसरो मंगल ग्रह की कक्षा में सफलतापूर्वक मंगल यान भेजने वाली चौथी अंतरिक्ष एजेंसी बन गया है और भारत अपने पहले ही प्रयास में ऐसा करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है। मिशन द्वारा देश को मुख्‍यत: इस प्रकार लाभ हुआ है : ऑटोनोमी के जरिए, लघु रूपांतरण, जहाज पर संसाधनों के अनुकूलन के लिए जहाज सहित अंतरिक्ष यान के डिजाइन में तकनीकी क्षमताओं का उन्नयन (ii) वैज्ञानिकों के लिए ग्रह अनुसंधान के क्षेत्र में उत्कृष्ट अवसर उपलब्ध कराना और (iii) विज्ञान और प्रौद्योगिकी की दिशा में देश के युवाओं में रुचि पैदा करना।

मंगल यान मिशन को अमेरिका स्थित नेशनल स्पेस सोसाइटी द्वारा वर्ष 2015 के लिए विज्ञान और इंजीनियरिंग श्रेणी के लिए “स्‍पेस पाओनीयर अवार्ड” से सम्मानित किया गया है। इसरो को उसकी पथ-प्रदर्शक भूमिका के लिए शांति, निरस्त्रीकरण और विकास के लिए इंदिरा गांधी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।

2. स्‍वदेशी क्रायोजेनिक चरण के साथ जीएसएलवी के सफल प्रक्षेपण:

27 अगस्त 2015 को स्वदेशी क्रायोजेनिक अपर स्टेज (सीयूएस) से लैस भू-समकालिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी-डी 6) ने भू-समकालिक स्थानांतरण कक्षा (जीटीओ) में देश के उन्नत संचार उपग्रह जीसैट-6 का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया। यह स्वदेशी सीयूएस वाली जीएसएलवी की लगातार दूसरी सफल उड़ान थी, जो अत्यधिक जटिल क्रायोजेनिक रॉकेट प्रणोदन प्रौद्योगिकी में माहिर होने की इसरो की क्षमता और सफलता को रेखांकित करती है। यह प्रक्षेपण जीटीओ में 2 टन की श्रेणी वाले संचार उपग्रहों को प्रक्षेपित करने में आत्म निर्भरता प्राप्त करने की दिशा में बढ़े हुए कदम का प्रतीक भी है।

3. अगली पी‍ढ़ी के जियो-सिंक्रोनस (भू-समकालिक) उपग्रह प्रक्षेपण यान एमके III का विकास:

भारी उठान वाले अगली पीढ़ी के प्रक्षेपण यान जीएसएलवी-एमके III की श्रीहरिकोटा से 18 दिसंबर 2014 को सफलतापूर्वक पहली प्रायोगिक उड़ान भरी गई। इस उड़ान ने उड़ान के दौरान जटिल वायुमंडलीय कक्षा में टिकने और जीएसएलवी एमके III के डिजाइन की प्रामाणिकता की पुष्टि की है।

​जीएसएलवी एमके III की प्रायोगिक उड़ान के दौरान मानवरहित क्रू मॉड्यूल वायुमंडलीय पुनः प्रवेश प्रयोग (केयर) का भी सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया है। क्रू मॉड्यूल अपने पैराशूट की मदद से अंडमान सागर के ऊपर मंडराया और मिशन योजना के अनुसार भारतीय तटरक्षक बल की मदद से समुद्र से बरामद किया गया।

20 जुलाई 2015 को जीएसएलवी-एमके III के उच्‍च दाब वाले क्रायोजेनिक इंजन (सीई20) की ताप को सहने की शक्ति का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया। उड़ान के दौरान 635सेकंड की अपनी अंकित दाह अवधि की तुलना में 800 संकेड के लिए परीक्षण किया गया। इस इंजन को जीएसएलवी एमके III के प्रक्षेपण वाहन की क्रायोजेनिक चरण (सी25) को शक्ति प्रदान करने के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। 10 अगस्त 2015 को उड़ान में टैंक पर दबाव पड़ने की अवस्‍थाओं में इंजन के सफलतापूर्वक जलने को दर्शाने वाला एक और छोटी अवधि (5.7 सेकंड) का सीई20 इंजन पर ताप को सहने की शक्ति का परीक्षण किया गया।

जीएसएलवी एमके III भू-समकालिक स्थानांतरण कक्षा के लिए 3.5 से 4 टन श्रेणी के संचार उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए बनाया गया है।

4.  नौवहन उपग्रह प्रणाली:

भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (आईआरएनएसएस) को देश में उपग्रह आधारित नौवहन सेवाएं प्रदान करने के लिए सात उपग्रहों के समूह के रूप में बनाया गया है।

16 अक्टूबर 2014 को ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान पीएसएलवी-सी26 के जरिए भारत के तीसरे नौवहन उपग्रह आईआरएनएसएस-1सी का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया गया। 28 मार्च 2015 को पीएसएलवी-सी27 के जरिए इसी श्रृंखला से भारत के चौथे नौवहन उपग्रह आईआरएनएसएस-आईडी का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया गया। पहले दो उपग्रह –आईआरएनएसएस 1ए और 1बी का क्रमश: 1 जुलाई 2013 और 4 अप्रैल 2014 को पीएसएलवी के जरिए प्रक्षेपित किए गए थे।

 कक्षा में चार नौवहन उपग्रहों के परिचालन के साथ अब स्थिति, नेविगेशन और समय सेवाएं प्रदान करना संभव हो गया है। सात उपग्रहों का आईआरएनएसएस नक्षत्र के 2016 तक पूरा हो जाने की संभावना है।

आईआरएनएसएस प्रणाली भारतीय भूभाग और भारत के चारों ओर लगभग 1500 किलोमीटर के दायरे की स्थिति सेवाएं प्रदान करके देश को लाभांवित कर रहा है। आने वाले वर्षों में संचार के अभिसरण, पृथ्वी अवलोकन और नेविगेशन उपग्रह प्रौद्योगिकी से स्थान आधारित सेवाओं के लिए एक वरदान साबित होगा।

गगन (भू संवर्धित नेविगेशन सहायता प्राप्त जीपीएस), जोकि मुख्य रूप से सटीक स्थिति की जानकारी सेवाओं के लिए विमानन क्षेत्र में इस्तेमाल की जा रही है, भारत पर ऊर्ध्वाधर मार्गदर्शन (एपीवी-1) वाली अप्रोच के नेविगेशन प्रदर्शन के स्तर के लिए डीजीसीए द्वारा प्रमाणित है। इसके साथ, भारत नागरिक उड्डयन क्षेत्र के लिए वैश्विक नौवहन उपग्रह प्रणाली (जीएनएसएस) आधारित सटीक अपरोच वाली सेवाएं देने वाला अमेरिका और यूरोपीय संघ के बाद विश्‍व का तीसरा देश बन गया है। इसरो और आईआईए द्वारा संयुक्‍त रूप से विकसित की गई गगन प्रणाली भारत में जीएनएसएस सेवाओं के विकास में भरी गई अग्रणी छलांग है और जो विमानन और गैर-विमानन अनुप्रयोग (एप्‍लीकेशन) के क्षेत्रों में आवागमन को फिर से परिभाषित करेगा।

5. उपग्रह संचार के बुनियादी ढांचे का विस्‍तार:

3 टन श्रेणी वाला संचार उपग्रह जीसैट-15 (24 केयू बैंड ट्रांसपोंडर और गगन पेलोड वाहक) का 11 नवंबर 2015 को 3.04 बजे सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया गया। जीसैट-15 से डीटीएच, टीवी प्रसारण, डिजिटल उपग्रह समाचार संग्रहण और वीएसएटी सेवाओं और अन्य सामाजिक विकास के लिए इनसैट/जीसैट प्रणाली की क्षमता में वृद्धि होगी।

देश के उन्नत संचार उपग्रह जीसैट-6 (5 स्‍पॉट बीम और एक बीम वाली सी-बैंड पेलोड वाली एस-बैंड पेलोड) का 27 अगस्त 2015 को भू-समकालिक स्थानांतरण कक्षा में सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया गया था। 6 मीटर व्यास की एस-बैंड अनफर्लेबल एंटीना को 30 अगस्त 2015 को सफलतापूर्वक तैनात किया गया था। उपग्रह को अब 83 डिग्री पूर्वी देशांतर के उसके नामित कक्षीय स्लॉट में तैनात किया गया है। जीसैट-6 का सामरिक अनुप्रयोगों के लिए दस्‍ती टर्मिनलों के साथ उपग्रह आधारित मोबाइल संचार के लिए इस्तेमाल किए जाने का इरादा है।

6. अंतरिक्ष में भारत का पहला बहु-तरंगीय दैर्ध्य वेधशाला:

 भारत का पहला समर्पित खगोल विज्ञान उपग्रह, एस्ट्रोसैट उपग्रह, का 28 सितंबर 2015 को पीएसएलवी-सी30 के जरिए सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया गया था। एस्ट्रोसैट सितारों और आकाशगंगाओं का अध्ययन करने के लिए एक्स-रे प्रेक्षणों को तत्‍क्षण पराबैंगनी के लिए सक्षम बनाता है। यह भी वैज्ञानिकों के लिए प्रेक्षणीय कार्य करने का अवसर प्रदान करेगा।

एस्ट्रोसैट अल्ट्रा वायलेट, बहु-तरंग दैर्ध्य प्रेक्षणों के लिए दूर की अल्ट्रा वायलेट और एक्स-रे बैंड को कवर करने के लिए वैज्ञानिक उपकरणों के संयोजन वाला एक अद्वितीय मिशन है। एस्ट्रोसैट की अल्ट्रा वायलेट इमेजिंग दूरबीन विस्‍तृत फलक वाले दृश्‍य के साथ 1.8 आर्क सेकंड युक्‍त बेहतरीन रेसोल्‍यूशन वाली है। एस्ट्रोसैट खगोल विज्ञान के क्षेत्र में वैश्विक अनुसंधान समुदाय के लिए भारत का एक महत्वपूर्ण योगदान है।

7. पीएसएलवी का वाणिज्यिक प्रक्षेपण:

भारत के ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान ने वर्ष 2015 के दौरान सात देशों (कनाडा, इंडोनेशिया, सिंगापुर, ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका) के 17 विदेशी उपग्रहों का प्रक्षेपण किया है, जो इस प्रकार है :

(क) भारत के ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान पीएसएलवी-सी28 ने 10 जुलाई 2015 को श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र – एसएचएआर, श्रीहरिकोटा से ब्रिटेन के 5 उपग्रहों का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया। ये हैं : डीएमसी3-1, डीएमसी3-2, डीएमसी3-3, सीबीएनटी-1 और डि-ओर्बिटसेल।

(ख)  पीएसएलवी-सी30 ने एस्‍ट्रोसैट के साथ, 28 सितंबर 2015 को छ: सहायक उपग्रह, 4 एलईएमयूआर उपग्रह (अमेरिका), लापान-ए2 (इंडोनेशिया); एनएलएस-14 (कनाडा) का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया।

(ग)  पीएसएलवी-सी29 ने सिंगापुर के छ: उपग्रहों का सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया। इन छ: उपग्रहों में टीइएलइओएस-1 प्राथमिक उपग्रह है ज‍बकि पांच सहायक उपग्रह हैं, जिनमें दो माइक्रो उपग्रह (वीइएलओएक्‍स-सीआई, केंट रिज-1) और तीन नैनो उपग्रहों (वीइएलओएक्‍स-II, एथेनोक्‍सैट-1, गैलैसिआ) शामिल हैं।

 वर्ष 2015 के दौरान 17 विदेशी उपग्रहों का भारत से सफलतापूर्वक प्रक्षेपण किया गया, जिनके साथ प्रक्षेपित विदेशी उपग्रहों की कुल संख्या 57 हो गई है।

 8. प्रशासन एवं विकास के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी आधारित उपकरणों और अनुप्रयोगों को बढ़ावा देने पर राष्ट्रीय बैठक:

 7 सितंबर 2015 को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में प्रशासन एवं विकास के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी आधारित उपकरणों और अनुप्रयोगों को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न मंत्रालयों/विभागों की कार्य योजना पर विचार-विमर्श के लिए एक दिवसीय राष्ट्रीय बैठक का आयोजन किया गया। इस राष्ट्रीय बैठक को 60 केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों, 28 राज्यों और 5 केंद्र शासित प्रदेशों के 1200 से अधिक प्रतिनिधियों की भागीदारी ने जबरदस्त प्रोत्‍साहन मिला। इस बैठक में भारत सरकार के सचिवों, अपर सचिवों, संयुक्त सचिवों, राज्‍यों के मुख्य सचिवों, प्रमुख सचिवों और केन्द्र और राज्य सरकारों के वरिष्ठ पदाधिकारियों, प्रधानमंत्री कार्यालय और कैबिनेट सचिवालय के अधिकारियों, युवा प्रशासकों (2013 आईएएस अधिकारियों की नए बैच),शिक्षा और संस्थानों से विशेषज्ञों ने सक्रिय रूप से भाग लिया है।

सम्‍मेलन के दौरान विभिन्‍न विषयों पर नौ सत्र आयोजित किए गए जिनमें कृषि, ऊर्जा एवं पर्यावरण, बुनियादी ढांचा योजना, जल संसाधन, प्रौद्योगिकी प्रसार, विकास योजना,संचार एवं नौवहन, मौसम तथा आपदा प्रबंधन और स्‍वास्‍थ्‍य एवं शिक्षा शामिल हैं। प्रभावी कार्य योजना तैयार करने और निर्णय क्षमता को बढ़ाने के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के प्रभावी इस्‍तेमाल पर केंद्रीय मंत्रालयों/विभागों के सचिवों ने संयुक्‍त कार्रवाई के लिए योजना प्रस्‍तुत की।

 प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की मौजूदगी में एक विशेष सत्र का आयोजित किया गया। प्रधानमंत्री ने अपनी टिप्पणी में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और अनुप्रयोगों का इस्‍तेमाल कर प्रशासन के सभी क्षेत्रों में नई पहल की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने दावा किया कि सरकार के सुशासन, पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए प्रौद्योगिकी का इस्‍तेमाल सबसे शक्तिशाली माध्यम है।

9. सार्क क्षेत्र के लिए सैटेलाइट पर पहल:

22 जून 2015 को नई दिल्‍ली में विदेश मंत्रालय (एमईए) के सक्रिय सहयोग से इसरो/डॉस ने ‘’सैटेलाइट फोर द सार्क रीजन एंड स्‍पेस टेक्‍नोलॉजी एप्‍लीकेशंस’’ पर एक सम्‍मेलन का आयोजन किया। सम्मेलन में प्रस्तावित ‘सैटेलाइट फोर द सार्क रीजन’ के साथ ही अन्य अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी अनुप्रयोगों के लिए प्रारूप और बुनियादी ढांचे संबंधी सुविधाओं की आवश्यकताओं पर विचार-विमर्श किया गया। सार्क के सभी सदस्य देशों के प्रतिनिधियों ने इसमें भाग लिया।

10.    आपदा प्रबंधन सहायता:

 पूरा देश इस बात का गवाह है कि भारतीय सुदूर संवेदन, मौसम विज्ञान और संचार उपग्रहों ने आपदाओं की हाल की घटनाओं के प्रबंधन में बहुत मदद की है, जैसेकि जम्मू-कश्मीर में बाढ़, हुदहुद चक्रवात और जम्मू-कश्मीर में भूस्खलन। इन उपग्रहों ने पूर्व चेतावनी, नुकसान का आकलन, आपातकालीन संचार के मामले में लगभग वास्तविक समय (रीयल टाइम) में सहायता उपलब्ध कराई है। अगस्त 2014 में उत्तरी नेपाल में सनकोशी नदी को रोकने वाले भारी भूस्खलन और जनवरी-मार्च 2015 में जम्मू-कश्मीर के जांस्कर क्षेत्र में फुत्‍कल नदी पर नियमित रूप से भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रहों से निगरानी की गई। बाढ़ के मौजूदा हालातों पर नक्शे और जानकारियां संबंधित एजेंसियों द्वारा प्रतिदिन प्रसारित किए गए।

 नेपाल में हाल ही में आए भूकंप के दौरान भारतीय और विदेशी उपग्रहों से प्राप्त रिमोट सेंसिंग डाटा (आंकड़ों) ने लगभग रीयल टाइम में ध्वस्त इमारतों और नेपाल के कुछ हिस्सों में भूकंप के कारण नए भूस्खलन आदि की पहचान और विश्लेषण पेश किया। एकीकृत प्रयासों और बचाव कार्यों के लिए आपसी तालमेल के लिए गृह मंत्रालय (एमएचए), राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) जैसी राष्ट्रीय एजेंसियों को और ब्रिटिश सेना, ब्रिटेन; नेपाल के इंटरनेशनल सेंटर फोर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (आईसीआईएमओडी); अमेरिका की राष्ट्रीय खुफिया एजेंसी, और यूएनओएसएटी और नेपाल, कोरिया, रूस, फ्रांस, जर्मनी आदि की अन्य राहत टीमों को उपग्रह डेटा से प्राप्त जानकारी प्रदान की गई थी।

नवोन्मेषी कार्यक्रमों का शुभारंभ और आम जनता पर इनके सकारात्मक प्रभाव की उम्मीद:

 1. आदिवासी बहुल जिलों में जल निकायों की पहचान करना, जहां परंपरागत तरीके से मछली पालन को बढ़ावा दिया जा सके  

आदिवासी निवासियों को केवल आवधिक संसाधनों की अपेक्षा नियमित आय के साधनों की जरूरत है। मौजूदा और संभावित जल संग्रह स्‍थलों की पहचान के लिए जनजातीय मामलों के मंत्रालय का यह कार्यक्रम है। ऐसे स्‍थल जिन्‍हें महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा) के तहत मछली पालन के लिए विकसित किया जा सकता है। यह योजना 24 राज्यों/संघ शासित प्रदेशों में 168 आदिवासी बहुल जिलों (25% से अधिक आदिवासी आबादी) के लिए है।

 इसरो द्वारा उपग्रह डेटा का इस्‍तेमाल करके पैदा होने वाले छोटे जल निकायों के लिए नक्शे उपलब्ध कराए गए। राज्य स्तर के अधिकारियों को ज्‍यादा सक्षम बनाने के लिए  ओडिशा, पश्चिम बंगाल, उत्तर-पूर्व, गुजरात और झारखंड में उपग्रहों पर आधारित इन नक्शों का इस्‍तेमाल किया गया। ये मौजूदा जल निकायों और नए स्थलों की पहचान करने में सक्षम बनाते हैं, जिससे पानी का अपवाह परंपरागत खेती के साथ-साथ मछली पालन के लिए भी किया जा सकता है।

 जल निकाय के डेटाबेस का आदिवासी क्षेत्रों में आजीविका के वैकल्पिक या आजीविका संवर्धन के रूप में मछली पालन की वृद्धि की योजना के लिए इस्तेमाल किया जाएगा। छोटे जल निकायों पर आधारित मछली पालन नियमित पोषण के साथ-साथ आय प्राप्त करने के लिए आदिवासी निवासियों की मदद कर सकते हैं।

 2. जलोत्सारण (वाटरशेड) में विकासात्मक गतिविधियों की निगरानी और मूल्यांकन

 ​भूमि संसाधन कार्यक्रम विभाग का एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम (आईडब्ल्यूएमपी) मिट्टी, वनस्पति और जल जैसे अवक्रमित प्राकृतिक संसाधनों के दोहन, संरक्षण और विकास के द्वारा पारिस्थितिक संतुलन को बहाल करने के लिए है।

 ​इसरो 10 राज्यों में करीब 52,000 छोटे जलोत्सारण और देश भर में 50 जिलों के लिए वाटरशेड विकास गतिविधियों की निगरानी के लिए भुवन जिओपोर्टल के माध्यम से ऑनलाइन उपग्रह डेटा, उपकरण और मोबाइल एप्‍लीकेशन प्रदान कर रहा है। उपग्रह डेटा, जीआईएस और मोबाइल एप्‍लीकेशन के लिए भुवन उपकरणों के इस्‍तेमाल में डीओएलआर के अधिकारियों की क्षमता भी विकसित की जा रही है। आईडब्ल्यूएमपी के प्रभावी कार्यान्वयन के कारण जल संसाधन खेती के लिए अनुकूलतम मिट्टी एवं फसल की सिंचाई के लिए जल संरक्षण सुनिश्चित करेगा, जिससे जलोत्‍सारण क्षेत्र में रहने वाले लोगों के लिए टिकाऊ आजीविका प्रदान करने के लिए मदद मिलती है।

 बायोमास सुधार के कारण भी किसान को स्थायी आधार पर आजीविका मिलती है। टैंकों से गाद निकालने और अन्य जलोत्‍सारण गतिविधियां जो मनरेगा के तहत रोजगार देती हैं, उनका भी सैटेलाइट डेटा का इस्‍तेमाल करके मूल्यांकन किया जा रहा है।

 3. विकेंद्रित नियोजन के लिए अंतरिक्ष आधारित जानकारी का सहयोग:

​1:10000 पैमाने का उच्च रेज्‍योलूशन उपग्रह डेटा का इस्‍तेमाल कर राज्यवार प्राकृतिक संसाधन डेटाबेस पूरे देश के लिए तैयार किया जा रहा है। जमीनी स्तर की सूचना और पारंपरिक ज्ञान से लैस यह स्थानिक डेटाबेस उनके इलाके के विकास के लिए भूमि और जल प्रबंधन के लिए स्थान-विशेष के लिए कार्य योजना की तैयारी में मदद करता है। जमीनी स्तर पर इस तरह की जानकारी की उपलब्धता विकेंद्रित नियोजन का सशक्‍त और पंचायतों को निर्णय लेने में सक्षम बनाता है।

 ​भुवन पंचायत पोर्टल जमीनी स्तर पर विकेंद्रीकृत नियोजन प्रक्रिया को लागू करने के लिए आवश्यक कार्यक्षमताएं प्रदान करता है। आम नागरिक और विशेष रूप से पंचायती राज संस्थाओं (पीआरआई) के तीन संस्‍तर (ग्राम पंचायत, ब्लॉक पंचायत और जिला पंचायत) इस पोर्टल के उपयोगकर्ता हैं। इससे विभिन्न योजनाओं के तहत नागरिकों द्वारा किए गए काम की प्रगति पर नज़र रखने में पीआरआई को मदद मिलती है।

4.  धरोहरों का संरक्षण

विश्व धरोहर स्थलों, प्राचीन स्मारकों और पुरातात्विक स्थलों का संरक्षण राष्ट्रीय महत्व की चीजें हैं और आर्थिक विकास के प्रमुख इंजनों में से एक है जो पर्यटन के विकास और संवर्धन में मदद करता है। अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का इस्‍तेमाल करके धरोहर स्थलों और साइट प्रबंधन योजनाओं के व्यवस्थित डेटाबेस से स्थल के संरक्षण और निगरानी गतिविधियों से फैसले लेने में मदद मिलेगी।

      अंतरिक्ष आधारित प्रौद्योगिकी उपकरण भी मानचित्रण और पर्यावरण या मौसम परिवर्तन को कम करने और प्रत्येक स्मारक के जोखिम की पहचान और योजनाओं की तैयारी पर नज़र रखने के लिए योजना बनाई जा रही है, जिनका कमजोर स्मारकों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

5. मानव रहित क्रॉसिंग पर स्वचालित चेतावनियां

मानव रहित क्रॉसिंग पर स्वचालित चेतावनी के लिए गगन, रेल-नेविगेटर उपकरण; एमएसएस पर आधारित ट्रैकिंग प्रणाली और भुवन का इस्‍तेमाल करके पायलट अध्ययन किया गया है। इसमें मानव रहित क्रॉसिंग वाले सटीक स्थानों (भौगोलिक निर्देशांक) और ट्रेन के इंजन पर लगे सक्षम उपकरण गगन का एक भू-स्थानिक डेटाबेस समूह है। ट्रेन पर लगे इस उपकरण से मानवरहित क्रोसिंग का पता चलेगा और ट्रेन उस क्रोसिंग से पहले और उसको पार करते वक्‍त स्‍वत: ही सीटी बजाना शुरू कर देगी। विशेषज्ञ समितियां/परिषदें रेलवे से विचार-विमर्श करके इसके कार्यान्वयन के तौर तरीकों को अंतिम रूप देने में लगी हैं।

6.  मौसम और जलवायु

​निरंतर अंतराल पर चक्रवातों की उत्पत्ति, उनका पता लगाने और भूस्खलन संबंधी भविष्यवाणी सहित बेहतर मौसम की भविष्यवाणी में सहायता करने के लिए भारतीय मौसम उपग्रह बादल गति वैक्टर, बादल शीर्ष तापमान, पानी वाष्प, आर्द्रता, वर्षा आदि के सामान्‍य अवलोकन और विभिन्न मौसम मापदंडों को प्रदान करता है।

डेटा उत्पादों को देश में वैज्ञानिकों की जरूरतों के लिए वेब आधारित सेवाओं के माध्यम से प्रसारित किया जाता है। इसके अलावा, प्रत्‍येक 3 घंटे में मौसम के पूर्वानुमान को देखने के लिए एंड्रोयड एप्‍लीकेशन भी बनाया गया है।

7. भुवन जिओपोर्टल

यह आपदामौसमभूमि और समुद्र के क्षेत्रों में सेवाओं के साथ-साथ भारतीय भूमिक्षेत्र की विषयगत परती ओवरले के लिए तस्‍वीरें, इलाके के आंकड़े और सीमलेस उच्‍च रेजोल्‍यूशन रिमोट सेंसिंग डाटा (2.5 मीटर करने के लिए 1 मी) प्रदान कर रहा है। इसके 51,000 पंजीकृत उपयोगकर्ता हैं और 2.8 लाख से ज्‍यादा डाउनलोड की सेवाएं उपलब्‍ध हैं।

12 अगस्त 2015 को केंद्रीय राज्य मंत्री उत्तर-पूर्वी क्षेत्र विकास (स्वतंत्र प्रभार), पीएमओ, कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष केंद्रीय मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह, ने भुवन की नई सेवाओं का शुभारंभ किया। नए अनुप्रयोग की सेवाओं में देश के 300 से अधिक शहरों की 1 मीटर तक की छवियां और आम आदमी के लिए दृश्य अनुप्रयोगों की होस्टिंग शामिल हैं।

8. ग्रामीण भारत के लिए डेटा कनेक्टिविटी

 ​डॉस/इसरो संचार उपग्रह जीसैट-11 की अनुभूतियों और प्रक्षेपणों पर फास्‍ट-ट्रेक नज़र रखता है। जीसैट-11 एक उन्नत संचार उपग्रह है जो कू और का बैंड संचार पेलोड वाला 10 जीबीपीएस तक उपलब्ध कराने में सक्षम है। इतनी क्षमता वाले, इस उपग्रह से डिजिटल भारत के अंतर्गत परिकल्पित ग्रामीण भारत के लिए उच्च बैंडविड्थ डेटा कनेक्टिविटी प्रदान करने की संभावना है। सैटेलाइट संरचना पहले से ही तैयार है और पेलोड निर्माण प्रगति पर है। उपग्रह की अन्य महत्वपूर्ण उप-प्रणालियों में तेजी लाने के लिए कदम उठाए गए हैं। वर्ष 2017 में उपग्रह लांच करने का लक्ष्य है।

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