महिला बाल विकास में महिला कर्मियों के साथ ही अन्याय जारी है – विजय सिंह

महिला बाल विकास में महिला कर्मियों के साथ ही अन्याय जारी है –  विजय सिंह

सीधी (म०प्र०)  – महिला एवं बाल विकास विभाग में 1983 से पदस्थ पर्यवेक्षकों को पदोन्नति नहीं प्रदान की गई है। 1983-1985 के बीच नियुक्त इन महिला कर्मचारियों की नियुक्ति मिनी पी.एस.सी. से हुई थी।जबकि दूसरी ओर 2003 तक नियुक्त सहायक सांख्यिकी अधिकारियों को परियोजना अधिकारी बना दिया गया, यही नहीं दूसरे विभागों से प्रतिनियुक्ति में आये कर्मचारियों का संविलियन कर उन्हें भी नियमित भर्ती मानकर पदोन्नति दी गई है और 1983 से जारी वरीयता को नजर अंदाज किया  जा रहा है।

पर्यवेक्षकों के प्रतिनिधि मंडल ने पूर्व प्रमुख सचिव श्री नायडू साहब से विगत् 30 वर्षों से एक ही पद पर्यवेक्षकों की पदोन्नति के सम्बंध में ज्ञापन दिया था। नायडू साहब का जवाब था कि  पर्यवेक्षकों की पुनः परीक्षा ली जावेगी। यहां सवाल उठता है कि परीक्षा लेने सम्बंधी कथन के बाद  जिन सहायक सांख्यिकी अधिकारी और प्रतिनियुक्ति पर आये कर्मचारियों को परियोजना अधिकारी बनाया गया है, क्या उनकी परीक्षा ली गई है ? 30 वर्ष से अधिक की विभाग में निरंतर सेवा के बाद भी महिला पर्यवेक्षकों की परीक्षा और जिन्हें फील्ड का एक दिन का भी अनुभव नहीं,उन्हें पदोन्नति ? यह दोहरा माप दण्ड क्यों ?

महिला एवं बाल विकास विभाग में दो संचालनालय बनाये गये हैं। महिला बाल विकास सेवा एवं महिला सषक्तीकरण विभाग। नये बने विभाग में परियोजना अधिकारी से उच्च पद पर पदोन्नति देनेे का व्यापार चला, धड़ाधड़ पदोन्नति देकर उच्च पद भर लिये गये। इसके लिये 50 प्रतिषत पद पी.एस.सी. और 50 प्रतिषत पद पदोन्नति से भरने की बाध्यता समाप्त कर दी गई। और रिक्त हुये परियोजना अधिकारियों के पदों की पूर्ति 1983 से सेवारत् पर्यवेक्षकों की वरिष्ठता को दरकिनार करते  हुये विभाग में आये कनिष्ठ कर्मचारियों को पदोन्नति देने का खेल चल रहा है।

महिला सषक्तीकरण विभाग में विकास खंड स्तर पर 312 परियोजना अधिकारियों के पद  कैबिनेट से स्वीकृत कराये गये। इसमें 50 प्रतिषत पद पी.एस.सी. से तथा 50 प्रतिषत पद पदोन्नति  से भरे जाने का प्रावधान रखा गया। पी.एस.सी. से पद तो भरे जा रहे हैं, लेकिन पदोन्नति नहीं दी  जा रही है। एक साथ स्वीकृत पदों पर पी.एस.सी. से आये लोग वरिष्ठ हो जायेंगे और पदोन्नति वाले पुनः कनिष्ठ होते चले जायेंगे।

सामान्य प्रशासन विभाग ने निर्देष दिया था कि प्रति वर्ष दो बार पदोन्नति समिति की बैठक कर पदोन्नति दी जाय, लेकिन महिला एवं बाल विकास विभाग में यदि पदोन्नति समिति की बैठक हुई होगी तो उसमें महिला पर्यवेक्षकों की पदोन्नति के सम्बंध में विचार नहीं किया गया होगा। क्योंकि   हाल में जो भी पदोन्नति आदेष जारी हुये हैं, उनमें से एक भी पर्यवेक्षक को पदोन्नति नहीं दी गई  है।

इस सम्बंध में माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर में पर्यवेक्षकों की ओर से याचिका दायर की गई थी W.P. No. 9684 Of 2013 9684 व 2013 को पारित निर्णय दिनांक 19.08.2014 में न्यायालय ने निर्देष दिया  है कि 4 माह के भीतर पर्यवेक्षकों की पदोन्नति सम्बंधी कार्यवाही करे। यह समय सीमा भी व्यतीत होरही है। वहीं दूसरी ओर कनिष्ठ कर्मचारियों की धड़ल्ले से पदोन्नति देकर रिक्त पद भरे जा रहे हैं,  ताकि महिला पर्यवेक्षकों को पदोन्नति न देना पड़े और जवाब दिया जा सके कि पद रिक्त होने पर नियमानुसार पदोन्नति दी जावेगी।

महिला पर्यवेक्षकों का इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि जिस पद पर वह भर्ती हुई उसी  पद से वह सेवा निवृत्त हो जायेंगी। 1984 में पंचायत एवं समाज सेवा विभाग से अलग कर महिलाओं  एवं बच्चों के लिये इस विभाग के गठन के समय तय किया गया था कि फील्ड में तैनात कर्मचारी  महिलायें ही होंगी, पर यह हो नहीं सका।

10 वर्ष पूर्व विभाग में व्यापम द्वारा संविदा पर्यवेक्षकों की नियुक्ति की गई थी, घोषणा के बाद भी उन्हें नियमित नहीं किया गया और अब व्यापम द्वारा ही नियमित पर्यवेक्षकों की भती्र हेतु विज्ञापन     जारी किया गया है। इसके साथ ही संविदा पर्यवेक्षकों को नियमित भी किया जा सकता है ?

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