फिर भी गांव में खुशियां होती हैं :: घूंघट बनी ज़ंज़ीर

फिर भी गांव में खुशियां होती हैं  :: घूंघट बनी ज़ंज़ीर

फिर भी गांव में खुशियां होती हैं — चांदनी बघरी

बघर, कपकोट
बागेश्वर, उत्तराखंड

ग्रामीण जीवन में समस्याएं होती हैं।
फिर भी जीवन में खुशियां होती हैं।।

न शोर शराबा होता है।
न मिलावटी जीवन है।

गम में भी खुशियां बेशुमार होती हैं।।
बिजली की समस्या है।

और सड़कें भी टूटी हैं।
सरकारी योजनाओं से ही।

खुशियां बेशुमार होती हैं।।
वर्षा अधिक हो तो समस्या होती है।

न हो तो वह भी समस्या है।
सूखे की स्थिति में जुबान बोलती है।।

हां, ग्रामीण जीवन में समस्या होती है।
फिर भी जीवन में खुशियां होती हैं।।

बच्चों को पढ़ाने के प्रति जागरूक तुम रहो।
स्कूलों की न अब कोई समस्या होती है।।

खेती दिना-दिन कम होती है।
ग्रामीणों की स्थिति कमजोर होती है।

फिर भी जीवन में खुशियां होती है।।
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घूंघट बनी ज़ंज़ीर —— पूजा गोस्वामी
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रौलियाना, उत्तराखंड


घूंघट प्रथा के पर्दो में।
लिपटी है सभी औरतें।।

घूंघट न उठा पाती।
समाज के डर से।।

सुंदर दृश्य न देख पाती।
घूंघट के अंधकार से।।

इस अभिशाप से डरे।
समाज की नारी।

घूंघट को क्यों माना जाता नारी सम्मान?
क्यों लोगों ने बना दिया इसे प्रथा?

घूंघट के परदों से लिपट कर।
भूल जाती अपने सभी सपने।।

समाज की इस प्रथा ने।
नारी को दिया असम्मान।।

जकड़ लिया उसकी आजादी को।
घूंघट प्रथा की जंजीरों ने।।

(चरखा फीचर)

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