• December 31, 2015

पर्यावरण संरक्षण : वन विकास : विकास के स्वर्णिम इन्द्रधनुष : – डॉ. दीपक आचार्य उप निदेशक

पर्यावरण संरक्षण : वन विकास : विकास के स्वर्णिम इन्द्रधनुष : – डॉ. दीपक आचार्य  उप निदेशक

सू०ज०वि०(उदयपुर) –  प्रकृति उदयपुर जिले पर भरपूर मेहरबान है। नदी-नालों-नहराेंजलाशयोंझीलोंहरीतिमा से लक-दक पर्वतीय क्षेत्रों,विभिन्न प्रजातियों के पादपोंवन्य जीवों की अठखेलियाेंविभिन्न पक्षियों की नभ-जल क्रीड़ाओं के सुनहरे दृश्यों और परिवेशीय मनमोहक सौन्दर्य से भरे-पूरे आसमान ने उदयपुर को दुनिया भर में विशिष्ट एवं अन्यतम पहचान दी है। वन विभाग और इससे जुड़े विभिन्न आयामों ने उदयपुर जिले में वन विकास एवं विस्तार गतिविधियों को खासा सम्बल प्रदान किया है।Forest UDR  (2)

उदयपुर जिले में वन विभागीय गतिविधियों ने बहुआयामी विकास के सुनहरे परिदृश्यों से साक्षात कराया है। उदयपुर के समग्र पर्यटन विकास में वन विभाग की उल्लेखनीय एवं ऎतिहासिक भागीदारी रही है।  वानिकी पर्यटन विकास के मामले में उदयपुर निरन्तर रफ्तार पर है।

उदयपुर में देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण जगाने वाले विभिन्न वन क्षेत्रीय पर्यटन स्थलों के विकास में वन विभाग की समर्पित एवं प्रगतिशील भागीदारी अनुकरणीय है।

वन विकास से आत्मनिर्भरता

वन विभाग द्वारा विगत वर्षाें में विभिन्न परियोजनाआें के तहत वन क्षेत्रों में वृक्षारोपण के साथ-साथ लघु वन उपज के पौधों का रोपण एवं उनका संरक्षण स्थानीय वन सुरक्षा एवं प्रबंध समितियों के माध्यम से करवाया जा रहा है। इसके फलस्वरूप वन क्षेत्रों में उनकी उत्पादकता बढ़ी है जिससे प्राप्त ऎसे उत्पादों का मूल्य संवर्धन किया जाकर स्थानीय निवासियों को रोजगार के अवसर उपलब्ध कराये जा रहे हैं।

युवाआें विशेषकर महिलाआें के स्वयं सहायता समूह बनाये जाकर, कौशल प्रशिक्षण दिया जाकर वनाें पर निर्भरता को कम करने हेतु विशेष प्रयास प्रारम्भ किये गये हैं।

आदिवासी क्षेत्रों में वन उपज का बेहतर उपयोग एवं मूल्य संवर्धन के माध्यम से अति पिछडे़, गरीब वनवासियों को एक ओर जहाँ आजीविका के संसाधन उपलब्ध करवाये जा रहे हैं वहीं यह भी प्रयास किये जा रहे हैं कि आदिवासी अपनी आजीविका स्वयं अर्जित करने का प्रयास करते हुए आत्मनिर्भर बनें।

वानस्पतिक उत्पादों ने दिया आर्थिक विकास

वन मण्डल उदयपुर (उत्तर) द्वारा मनरेगा व अन्य विभागीय योजनाआें में वृहद स्तर पर वृक्षारोपण क्षेत्रों मे ग्वार पाठा का पौधारोपण किया गया है। इन ग्वार पाठा पौधों से प्रायोगिक तौर पर ग्वार पाठा ज्युस, जेल व शेम्पू निर्माण का कार्य कोटड़ा क्षेत्र की वन सुरक्षा समिति कलीम रेंज देवला, सुलाव रेंज कूकावास, द्वारा करवाया जा रहा है, जो अत्यन्त सफल व लाभदायक रहा है। संभाग की अन्य कई समितियां भी इससे प्रेरित होकर कार्य करने हेतु प्रयासरत हैं।

गृह उद्योगों ने दिया संबल

वन व गैर वन भूमि पर बाँस प्रचुरता से उपलब्ध हैं। इस उपज के मूल्य संवर्धन कर स्थानीय ग्रामीणाें को गृह उद्योग से जोड़ा जा रहा है। इसी अवधारणा के अनुरूप वर्तमान में वन मण्डल उदयपुर, उदयपुर (उत्तर) की कई वन सुरक्षा एवं प्रबन्ध समितियों द्वारा अगरबत्ती  उत्पादन किया जा रहा है। यह कार्य अब व्यापकता पाता जा रहा है।

हर्बल उत्पादों पर जोर

वन क्षेत्रों में पाये जाने वाले विभिन्न पौधों के फूल, पत्तियों, छाल आदि में प्राकृतिक रूप से अनेक रंगों के भण्डार हैं। इनका रंग निकालकर इनके उपयोग से त्वचा पर खुजली, जलन व एलर्जी, आँखों के रोग व श्वास संबंधी रोगों से बचा जा सकता है। वन सुरक्षा एवं प्रबंध समितियों द्वारा स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से पलाश के फूलाें से रंग बनाने की पुरानी परम्परा को ध्यान में रखते हुए वृहद् मात्रा में विभिन्न प्राकृतिक रंगों से हर्बल गुलाल निर्माण करवाया जा रहा है।

सीताफल पल्प संरक्षण

तकनीकी रूप से सीताफल के मूल्य संवर्धन से दर में वृद्धि के साथ अतिरिक्त रूप से रोजगार के अवसर भी जुटाये जा रहे हैं। सीताफल प्रसंस्करण में सीताफल के गूदे (पल्प) को लम्बे समय तक संरक्षित रखने के सम्बंध में महाराणा प्रताप कृषि प्रौद्यौगिकी विश्वविद्यालय ने काफी शोध के बाद तकनीक का ईजाद किया है।

वन क्षेत्रों में आँवला, आम, तेन्दू, करोंदा, सीताफल, बिलपत्र व बैर जैसे विभिन्न प्रकार के फलों के वृक्ष पाये जाते हैं जिनके फलों से पल्प निकालकर शर्बत बनाये जाने का कार्य प्रायोगिक रूप से प्रारंभ किया गया है।

वनोपज का विपणन

 वन क्षेत्रों में स्थानीय निवासी परम्परागत रूप से शहद व मोम एकत्रित कर अपना रोजगार अर्जित करते आ रहे हैं। इनका मूल्य संवर्धन उसे छानकर शहद की शुद्धता बनाये रखते हुए बोटलिंग व लेबलिंग कर बाजार में विक्रय हेतु भिजवाया जा रहा है।Forest UDR  (3)

विभाग द्वारा गायों की बहुतायत वाले क्षेत्रों में उनके गोबर के गमले बनाकर बाजार में बेचकर स्थानीय लोगों को आय के अतिरिक्त रोजगार उपलब्ध कराये जाने का कार्य प्रारंभ किया गया है।

सौर ऊर्जा से रोशन हुए गांव

विभाग के प्रयासों से विद्युतीकरण से वंचित  सुदूर आदिवासी क्षेत्रों में ईको सोल्यूशन ट्रस्ट, मुम्बई के सहयोग से अभी तक 2 हजार 200 सौलर लैम्पस का वितरण किया जाकर उन गाँवों को रोशन करने का प्रयास किया गया है।

इस वर्ष वन विभाग द्वारा राजस संघ के सहयोग से स्थानीय वनवासियों को अपनी वन उपज की बिक्री अपने स्तर से करने के अनुभव के लिए ग्राम वन सुरक्षा एवं प्रबंध समिति काडा के अध्यक्ष एवं सहयोगी सदस्यों को सीताफल क्रय कर उनकी ग्रेडिंग करने के पश्चात् पैकेजिंग के कार्य एवं वन उपज बेचने के लिए उन्हें जयपुर, उदयपुर, भीलवाड़ा, सिरोही, अहमदाबाद,डूँगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ आदि स्थानों पर भेजा गया।

उन्हें राजस संघ  के सहयोग से 300 प्लास्टिक के कैरेट भी निःशुल्क उपलब्ध कराये गये तथा परिवहन एवं अन्य खर्च राशि भी उपलब्ध करवाई गई। उदयपुर वन मण्डल द्वारा विगत दो वर्ष में विभागीय गतिविधियों के साथ ही विभिन्न प्रकार की रचनात्मक प्रवृत्तियों के माध्यम से ऎतिहासिक उपलब्धियां हासिल की गई हैं।

इको ट्यूरिज्म में नवाचार

उदयपुर शहर के बीच गोवर्धन सागर पर एक हैक्टर वन क्षेत्र में 50 लाखरुपये लागत से स्मृति वन विकसित किया गया है। इसी प्रकार  इको-ट्यूरिज्म, नाल साण्डोल, झाड़ोल  पर अब तक 40  लाखरुपये खर्च किये जा चुके हैं। पिछोला झील के पीछे के किनारे पर सीसारमा वन क्षेत्र में जंगल सफारी पार्क विकसित किया गया है। उदयपुर जिले के सुनहरे विकास में वन विभागीय गतिविधियों की अहम भागीदारी उल्लेखनीय एवं अनुकरणीय रही है।

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