- September 2, 2018
न्याय मिलने में देरी भारतीय न्यायिक प्रणाली के लिए अभिशाप — गुस्से में राष्ट्रपति
नई दिल्ली : लगातार एक के बाद एक हाईकोर्ट,सुप्रीम कोर्ट के फैसलों ने राष्ट्रपति कोविंद को भी सोचने पर मज़बूर कर दिया है. कोर्ट में दिवाली पटाखे को लेकर फैसला तुरंत आता है, शिवलिंग की पूजा पर फैसला तुरंत, जल्लिकट्टु पर फैसला तुरंत आया.
सुप्रीम कोर्ट ने कश्मीर में धारा 35A हटाने को लेकर सुनवाई सीधा अगले साल के जनवरी महीने तक टाल दी है,. तो वहीँ उसके बाद मद्रास हाई कोर्ट जज ने टोल प्लाजा पर अपने लिए VIP लेन बनाने का फरमान सुना दिया और हाल ही में वामपंथी नक्सली समर्थकों को एक दिन की सुनवाई में ही बड़ी राहत दे दी.
ऐसे में जजों के लगातार ऐसे फैसलों पर खुद राष्ट्रपति कोविंद ने जबरदस्त लताड़ लगाई है. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने न्यायपालिका को खरी-खरी सुनाते हुए इन कोर्ट की सारी पोलपट्टी जनता के सामने खोल के रख दी है.
राष्ट्रपति कोविंद ने सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन की ओर से आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन सत्र को सम्बोधित करते हुए भारत की न्याय व्यवस्था वहां मौजूद जज और वकीलों को सख्त लहज़े में जवाब दिया. राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि न्याय मिलने में देरी भारतीय न्यायिक प्रणाली के लिए अभिशाप बन चुकी है.
जिस तरह कश्मीर में धारा 35 A के सुनवाई को सीधा अगले साल के लिए टाल दिया गया. राम मंदिर की हर बार तारिख पर तारिख आगे बढे जा रही है. इस पर भी कोविंद ने कड़े लहज़े में जजों को आइना दिखाया. कोविंद ने आगे कहा कि अदालतों में मामलों के निर्णय में होने वाली देरी की एक वजह ‘नियम के रूप में स्टे चाहने वाले वकीलों और सुनवाई को टालने की एक ‘संस्कृति’ बन चुकी है. हमें इससे बचना चाहिए.
देशभर के कोर्ट की पोल खोलते हुए राष्ट्रपति कोविंद ने कहा देश की विभिन्न अदालतों में करीब तीन करोड़ 30 लाख मुकदमे लंबित हैं, जिनमें से दो करोड़ 84 लाख मुकदमे अधीनस्थ अदालतों में हैं। करीब 43 लाख मुकदमे उच्च न्यायालयों में और 58 हजार उच्चतम न्यायालय में लंबित हैं. ये हमारे देश की न्यायव्यवस्था पर एक बदनुमा दाग सा है. इससे देश का सर शर्म से झुकता है.
राष्ट्रपति कोविंद ने आम लोगों को न्याय मिलने में होने वाली देरी पर गम्भीर चिंता जताते हुए पूरी वकील बिरादरी से अपील की है कि वे ‘तारीख पर तारीख’ लेने की प्रवृत्तियों से बचें.
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश दीपक मिश्रा ने भी कांफ्रेंस संबोधित करते हुए कई बुज़ुर्ग हो चुके वामपंथी वकीलों पर निशाना साधते हुए कहा, ‘समय आ गया है कि बिना किसी कार्यकाल या अभ्यास के युवा वकील कुशलतापूर्वक अदालत को संबोधित कर रहे हैं। जहां तक कानून का संबंध है, यदि तकनीकी रूप से सक्षम होने के बाद युवा वकीलों को अनुमति नहीं दी जाती है तो पुराने लोगों को उनके लिए जगह छोड़ देनी चाहिए।’