- May 14, 2016
जिंदगी के उलझे धागों को सुलझाने में रेशम धागाकरण केन्द्र मददगार
जगदलपुर ——— बस्तर के जिस रेशम की मांग पूरे देश से लेकर विदेश में हो रही है, उस रेशम के धागे को निकालने वाली महिलाएं रेशम धागाकरण केन्द्र में अपनी जिंदगी के उलझे धागों को भी सुलझाने का प्रयास कर रही हैं। यहां काम करने वाली महिलाओं ने विपरीत परिस्थितियों में अपना हौसला कायम रखते हुए अपने सपनों को पूरा किया।
धरमपुरा स्थित धागाकरण केन्द्र में वर्तमान में 20 महिलाएं कोकून से धागा निकालने का काम कर रही हैं। 1997 में स्थापित यह धागाकरण केन्द्र इन महिलाओं के सपनों को भी संवारने का काम कर रहा है।
यहां काम करने वाली अधिकतर महिलाएं गरीब हैं, लेकिन अपने हौसलों से अपने सपनों को पूरा कर रही हैं। उनके सपनों को पूरा करने में मददगार रहे इस केन्द्र में महिलाओं को दिन में महज 4 से 5 घंटे काम करके इतनी आमदनी हो जाती है, कि वे अपने परिवार का भरण पोषण आसानी से कर लेती हैं, वहीं बाकी बचे समय में ये अपने घर के दूसरे काम भी आसानी से कर लेती हैं।
बच्चों को अपने पैरों पर खड़ा किया सावित्री ने
धरमपुरा में धागाकरण केन्द्र खुलने के महज एक साल बाद से यहां काम कर रही श्रीमती सावित्री बाई ने बताया कि पति के नशे की लत की वजह से उनका घर-बार बिखर गया था और तीन बच्चों की पूरी जिम्मेदारी उन पर आ गई थी। उन्होंने बताया कि यहां काम करके वे हर माह 5 से 6 हजार रुपए कमा लेती हैं। सावित्री ने यहां कमाई पूंजी से अपने बेटे दुलाल के लिए किराने की दुकान खोल दी, जिससे वो अपने पैरों पर अब खड़ा हो गया है और इसी पैसे से वे अपने छोटे बेटे को बीएससी की पढ़ाई करवा रही हैं, वहीं बेटी एमए की पढ़ाई कर रही है।
मुश्किल हालात में धागाकरण केन्द्र ने दिया सहारा
यहां धागाकरण का काम कर रही 53 वर्षीय श्रीमती उषा अधिकारी अपने संघर्षपूर्ण जीवन के बारे में बताती हैं कि उनके पति की दूसरी शादी करने के बाद उनके जीवन में समस्याओं का सिलसिला शुरु हुआ। उनका बेटा भी हृदय रोगी है और धरमपुरा में एक सेलून चलाता है। हदय रोगी होने के कारण बेटा कामकाज में थकावट महसूस करता है, जिसके कारण वह ज्यादा देर सेलून नहीं चला पाता। ऐसी स्थिति में इस धागाकरण केन्द्र में काम करके वह अपने घर की जरुरतें पूरी करती हैं। उन्होंने बताया कि वह अपनी बहू को भी यह कार्य सिखाएंगी।
बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाना है मकसद
अपने अधूरे सपनों को पूरा करने के लिए बच्चों को उच्च शिक्षा देने का सपना पूरा कर रही 30 वर्षीय यशोदा दास बताती हैं कि विज्ञान संकाय में 12 वीं की पढ़ाई के बाद उन्होंने विवाह किया, लेकिन पति की आर्थिक स्थिति ठीक नही होने के कारण वे आगे की पढ़ाई नहीं कर सकीं। सम्पन्न परिवार की बेटी होने के बावजूद शादी के बाद गरीबी का जीवन उनके लिए काफी तकलीफदेह था। पढ़ाई अधूरी होने के कारण उसे नौकरी भी नहीं मिली, जिसके कारण भी वह काफी दुखी थीं।
उसने बताया कि अधूरी पढ़ाई के कारण होने वाली परेशानी का सामना उसके बच्चों को न करना पडे, इसलिए उनकी पढ़ाई अच्छे स्कूल में कराने के लिए उसने भी काम करने का फैसला किया। उसने बताया कि वह अब घर के कामकाज के साथ ही हर महीने पांच-छह हजार रुपए कमा लेती हैं, जिससे वे बच्चों के स्कूल की फीस जमा करती हैं। पति भी अब अच्छी कमाई कर लेते हैं, जिससे परिवार का गुजर-बसर बेहतर ढंग से हो रहा है।
खुद की कमाई से की बीए की पढ़ाई और कम्प्यूटर का कोर्स
कालीपुर की रहने वाली कांति पुजारी ने यहां काम करके जो पैसे कमाए, उससे खुद बीए की पढ़ाई की और कम्प्यूटर का प्रशिक्षण भी प्राप्त किया। कांति ने बताया कि उसके पिता बारसूर के थे और माता कालीपुर की। आर्थिक तंगी के कारण कांति ने 12 वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी और यहां धागाकरण का काम करने लगी। अपनी कमाई से उसने न केवल घर खर्च चलाने में मदद की, बल्कि अपनी बहन की शिक्षा पर ध्यान देते हुए एमए की पढ़ाई में भी मदद की।
घर की आर्थिक स्थिति सुधरने के बाद उसने फिर से पढ़ाई शुरु की और न केवल बीए की डिग्री हासिल की, बल्कि कम्प्यूटर का प्रशिक्षण भी प्राप्त किया। आर्थिक आत्मनिर्भरता ने महिलाओं को न केवल आत्मविश्वास प्रदान किया है, बल्कि जीवन में उम्मीद की नई किरण भी जगाई है।