• February 11, 2016

कौन कहे इन्हें संरक्षक – डॉ. दीपक आचार्य

कौन कहे इन्हें संरक्षक – डॉ. दीपक आचार्य

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सामाजिक एवं परिवेशीय समस्याओं का मूल कारण स्वधर्म से पलायन या विमुख होना है। सृष्टि का हर तत्व अपने-अपने धर्म का पालन करता है और उसी के आधार पर अपने विशिष्ट गुणधर्म को अभिव्यक्त करता है।

जड़ तत्वों के बारे में तो यह सटीक कहा जा सकता है लेकिन इंसानों और उनकी संगति में आ गए जानवरों के बारे में साफ-साफ यह कह पाना कठिन ही है कि वे धर्म का परिपालन कर ही रहे हैं।

खासकर इंसानों के बारे में यह कहना एकदम झूठ और भ्रामक ही होगा क्योंकि इंसानों की जो खेप पिछले कुछ दशकों से आ रही वह एकदम विचित्र किस्म की ही है जिसका कोई भरोसा नहीं किया जा सकता।

और अब तो  जो हालात सामने हैं उनमें सौ फीसदी सत्य कहा जा सकता है कि इंसान ने भरोसा तोड़ दिया है और अब वह किसी मामले में भरोसे के काबिल नहीं रहा।

हालांकि मानवता के लिए भयावह और विषमताओं भरे आज के दौर में भी कुछ फीसदी लोग ऎसे जरूर हैं जिन्हें असली इंसान की श्रेणी में रखा जा सकता है लेकिन अधिकांश के बारे में यह कहना सच्चाई के करीब नहीं होता कि वे हर तरह से विश्वास करने के काबिल हैं ही।

कारण स्पष्ट है कि आजकल हम जो कुछ कर रहे हैं उसमें यथार्थ की बजाय दिखावा ही अधिक है और जहाँ दूसरों को दिखाने के लिए कर्म किया जाता है उसमें मिलावट का प्रतिशत अधिक होता ही है।

सब तरफ मिलावटी व्यक्तित्व हैं, आदमी दोहरे-तिहरे ही नहीं बहुआयामी चरित्रों में जी रहा है। मर-मर कर जीने का दंभ भर रहा आदमी बहुरूपियों को भी पीछे पछाड़ देने का सामथ्र्य रखता है।

समाज बड़ी ही अजीब स्थितियों में जीता है जहां जो कुछ अनुकरण होता है वह ऊपर वालों को देख कर होता है।

गंगोत्री से जो धाराएं बहती हैं वह सारे देश में पसरती हुई अपने उस मुकाम पर पहुंचती हैं जहां जाकर वह समुद्र में विलीन हो जाती हैं।

यह प्रकृति की बात है लेकिन सांसारिक क्षेत्र में सब कुछ उल्टा-पुल्टा ही होता रहा है। यहाँ  जनसमुद्र उन्हीं का अनुसरण करता है जो कुछ ऊपर से आता है।

वो जमाना चला गया जब ऊपर से फरिश्ते आते थे और जमीन के लोग निहाल हो उठते थे। आज ऊपर से ही सब कुछ ऎसा चला आ रहा है कि इसके बारे में कुछ कहना आफत को मोल लेना है।

पहले बुजुर्गों, संरक्षकों और अभिभावकों की पूरी जिन्दगी अपने फर्ज निभाने में खर्च होती थी। आजकल ये लोग भी कमाई के फेर में ऎसे पड़े हुए हैं कि इस मामले में उन्होंने युवाओं और प्रौढ़ों की तृष्णाओं और कामनाओं को पीछे छोड़ दिया है।

बहुधा कहा जाता रहा है कि बड़े और बुजुर्ग लोग हमारे मार्गद्रष्टा और संरक्षक हुआ करते हैं लेकिन आज की परिस्थितियों में देखा जाए तो कितने फीसदी बुजुर्ग और संरक्षक ऎसे हैं जो संरक्षण का अपना फर्ज अदा कर रहे हैं।

आजकल बड़प्पन का पैमाना उदारता, सर्वग्राह्यता और माधुर्यपूर्ण व्यवहार के साथ सर्वस्पर्शी व्यक्तित्व नहीं रहा जिससे प्रभावित होकर बच्चों से लेकर प्रौढ़ों तक की पूरी पीढ़ी आदर-सम्मान और श्रद्धा दिया करती थी।

अब बड़े कहे जाने वाले लोगों की नीचे वालों से दूरियां बढ़ती जा रही हैं। बड़ों को लगता है कि उनके अलावा शेष सारे लोग दूसरे ग्रह के हैं  और उनसे नीचे हैं।

आजकल खासकर ये लोग संरक्षण धर्म को लोग भूलते जा रहे हैं। बड़े-बड़े लोगों को भले ही यह भ्रम हो कि वे महान हो गए हैं लेकिन उनके बारे में उनसे जुड़े हुए विभिन्न स्तरों के लोगों को पूछा जाए तो साफ-साफ पता चलता है उनके बारे में यही कहा जाता है कि ये लोग किसी काम के नहीं हैं।

इनसे किसी भी प्रकार से मुखिया या संरक्षक की कोई सी भूमिका निभाने की कल्पना करना एकदम व्यर्थ है। ये लोग अपने ही स्वार्थों को पूरा करने और अपनी चवन्नियां चलाने में इतने ज्यादा व्यस्त रहा करते हैं कि इन्हें दूसरों के बारे में सोचने की फुरसत ही नहीं है।

खूब सारे मुखियाओं और संरक्षकों की आजकल यही हालत है। जो लोग संरक्षण धर्म भूलते जा रहे हैं उन लोगों को भले ही अभी अपनी ऎषणाओं और ठाठ-बाट में मजा आ रहा हो लेकिन इन लोगों का बुढ़ापा या तो आता ही नहीं, उससे पहले ही किसी घातक बीमारी से इनका विकेट उखड़ जाता है अथवा  अंतिम समय में दुर्दिन देखने पड़ते हैं।

कारण यह कि जो लोग अपने संरक्षण धर्म को भुला बैठते हैं उन लोगों को जिन्दगी भर दूसरों की बददुआएं लगती रहती हैं जो इन लोगों से पीड़ित रहा करते हैं और  जिन्हें इनकी वजह से नुकसान उठाना पड़ता है।

जो लोग जहां कहीं अपने संरक्षक बने हुए हैं उन्हें चाहिए कि वे अपने स्वार्थों और अपनी प्रतिष्ठा में ही रमे न रहें बल्कि संरक्षण धर्म का पालन करें।

सच्चा संरक्षक वही है जिसके लिए कोई भी नकारात्मक बात न कहे बल्कि अच्छा ही अच्छा कहे।  संरक्षण धर्म तलवार की धार जैसा होता है इसे अच्छी तरह निभाएं। और इसका माद्दा न हो तो संरक्षक होने का लबादा उतार फेंके, समाज में खूब अच्छे लोग हैं जो यह काम अच्छी तरह कर सकते हैं।

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