• September 1, 2018

केंद्र सरकार से चार आंकड़ों की मांग — राष्ट्रीय महासचिव श्री श्याम रजक ,जद(यू०)

केंद्र सरकार से चार आंकड़ों की मांग   — राष्ट्रीय महासचिव  श्री श्याम रजक ,जद(यू०)

सामान्य वर्ग और अनुसूचित जाति/जनजाति व पिछड़ा समुदाय से संबंधित आंकडे प्रस्तुत करने की मांग-
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जद(यू०) के राष्ट्रीय महासचिव पूर्व मंत्री सह विधायक श्री श्याम रजक ने केंद्र सरकार के समक्ष सामान्य वर्ग और अनुसूचित जाति/जनजाति व पिछड़ा समुदाय से संबंधित कुछ आंकड़े प्रस्तुत करने की मांग की है।

2021 में आम जनगणना के दौरान पिछड़ी जातियों को शामिल करनें के फैसले का स्वागत किया है।

उन्होंने केंद्र सरकार से चार आंकड़ों की मांग की है-

1. उन्होंने कहा कि 2011 में SECC (सामाजिक आर्थिक जातीय जनगणना) हुआ था। पहले उसे प्रकाशित किया जाय।

2. कार्पोरेट एवं निजी क्षेत्रों द्वारा हुए बहाली में कितने सामान्य वर्ग का व कितनी अनुसूचित जाति/जनजाति व पिछड़ा वर्ग की बहाली हुई। इसकी रपट मांगकर प्रकाशित की जाए।

3. बैंक द्वारा दिये गए ऋणों में कितने सामान्य वर्ग को और कितने अनुसूचित जाति/जनजाति व पिछड़ा वर्ग के लोगों को ऋण दिया गया इसे राशि सहित प्रकाशित किया जाए।

4. ऋण लेने के बाद कितने कितने सामान्य वर्ग और कितने अनुसूचित जाति/जनजाति व पिछड़ा वर्ग के लोगों ने ऋण वापस नहीं किया। उन वकायदारों की सूची राशि सहित जारी की जाय।

इन माँगों को लेकर श्री रजक का कहना है कि भारत की आजादी के 70 साल हो गए लेकिन यह भारतीय समाज की विडंबना ही है कि वो अब भी समाज में मौजूद भेदभाव और बराबरी के लिए संघर्ष कर रहा है।

जब हम भारतीय समाज की प्रवृति और उसकी दशा का विश्लेषण करते हैं तो एक तरफ़ यह पाते हैं कि संसाधनों और सत्ता पर कुछ लोगों का एकाधिकार है।

बहुसंख्यक आबादी संसाधनों और सत्ता में हिस्सेदारी से वंचित है।

इस वजह से भारतीय समाज में कई तरह के वंचित तबक़े मौजूद हैं फिर वो चाहे अनुसूचित जाति हो, अनुसूचित जनजाति हो या फिर पिछड़ा समुदाय। समय-समय पर इन जाति समुदायों को लेकर कई आयोगों का गठन हुआ है और इन सभी आयोगों ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सामान्य जाति के लोगों की तुलना में इन वंचित समूहों के लोग समाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और शैक्षणिक मापदंडों पर पिछड़े हुए हैं।

श्री रजक नें केंद्र सरकार से मेरी आग्रह होगी कि जल्द से जल्द इन आंकड़ों को सार्वजनिक करें ताकि पूरे देश को सामाजिक व आर्थिक हिस्सेदारी की वास्तविकता का पता चल सके।

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