- May 9, 2016
कुंभ से लौटें तो अमृतमय होकर – डॉ. दीपक आचार्य
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सबकी भागदौड़ कुंभ की ओर है।
सब चाहते हैं उस अमृत की बूंद का परमाण्वीय अंश उनके भाग में आ जाए और जीवन अमृतमय हो जाए। हिमालय की कंदराओं में अहर्निश तपस्या में लीन रहने वाले नैष्ठिक तपस्वियों, बाबाओं, महामण्डलेश्वरों, श्ांकराचार्यों, महंतों और मठाधीशों से लेकर तमाम प्रकार के साधु-संतों-महात्माओं और सामान्य भक्तों तक की दौड़ इन दिनों उज्जैन की ओर है। अधिकांश के डेरे क्षिप्रा तट पर ही सजे हुए हैं।
एक तरफ धार्मिक और आध्यात्मिक लोगों का प्रवाह उधर हो रहा है वहीं दूसरी ओर देश-दुनिया के सारे धंधेबाज भी उधर ही जमा हैं या रुख किए हुए हैं।
कुंभ केवल श्रद्धा, आस्था और धर्म की परंपराओं के प्रवाह से ही भरा हुआ नहीं है बल्कि पूरा का पूरा मायावी संसार वहां पसरा हुआ है जिसमें वे सभी आयाम हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि यही संसार है। जब संसार है तो सांसारिकों का जमघट भी कोई नई बात नहीं है।
हमारी कुंभ की परंपराएं श्रद्धा और आस्थाओं का ज्वार उमड़ाती रही हैं। सदियों ये यह सनातन धर्मधाराएं हमें आस्था की धाराओं से नहलाती और पावन करती रही हैं।
बहुत से लोग हैं जो कई बार कुंभ जा आए, नहा आए और जाने कितने-कितने बाबाजियों के डेरों में रहकर अपने आपको सिद्ध और महान भक्त मानने-मनवाने की जिद करने लगे हैं।
बावजूद इसके हमारे भीतर, हमारे इलाके और हमारे देश में कितनी शांति, समृद्धि, संतोष और दिव्यता आ पायी है, यह बताने की जरूरत नहीं है। सभी को पता है।
कई कुंभ नहा चुके, पुण्य लाभ ले चुके बाबाओं की भी वही स्थिति है ढाक के पात तीन के तीन, और हम सांसारिकों की भी। न कुछ बदलाव आ पाया है न बदलाव आने की गुंजाईश है।
इसका मूल कारण यह भी है कि हम लोग अपने पापों से छुटकारा नहीं पा सके हैं, पापों में रमे हुए हैं और पुण्य, सेवा और परोपकार से हमारा रिश्ता-नाता टूटता जा रहा है।
बहुत से लोग कुंभ में भी सेवा कर रहे हैं, श्रद्धालुओं को जिमा रहे हैं, आवास से लेकर सारी एयरकण्डीशण्ड सुविधाओं से निहाल कर रहे हैं, पूरा का पूरा सांसारिक वैभव दिखा रहे हैं। लेकिन यह सारा वैभव किन पैसों पर हो रहा है, किनके पैसों पर हो रहा है , यह कोई नहीं जानता।
बड़े-बड़े बाबा हैं और उसी अनुपात में वे लोग भी हैं जो काली कमाई को सफेद करने या कि अपने पापों को पुण्य में परिवर्तित कराने के लिए इन बाबाओं का सहारा ले रहे हैं और अपनी ओर से भण्डारे कर रहे हैं।
सारे खुश हैं। बाबाजी भी खुश हैं, उनका नाम हो रहा है, भक्तों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है। वर्तमान युग लोक तंत्र का है। जिसके पास लोक होगा, उसके पास तंत्र की चाभी होगी ही। फिर संघे शक्ति कलौयुगे की अवधारणा पर चलने वाले सारे लोग लोेक को अपनी परिधियों के मोह पाश में बांधे रखने के सारे तिलस्मों में वाकिफ हैं इसलिए तमाम डेरों पर लोग खिंचे चले आते हैं।
हमारी प्रगाढ़ आस्था और विश्वास है कि कुंभ का लाभ लें, लेना भी चाहिए। इसके लिए यह जरूरी है कि जब कुंभ में जाएं तो अपने -अपने पापों, मलीनताओं और दुराचारों के प्रतीक माने जाने वाले अपने पापों के घड़े को भी साथ ले जाएं और वहीं जाकर फोड़ आएं, क्षिप्रा में नहा लें, अमृत तत्व की आंशिक प्राप्ति का अनुभव करें और यह प्रण लेकर लौटें कि आयन्दा ऎसा कोई मौका न आए कि अपने लिए कोई पाप का घड़ा आकार लेने लगे।
तभी कुंभ का महत्व है वरना कितने सारे कुंभ आए और गए, हम वहीं के वहीं रहे। हमारे पूर्वजों में भी कुछ ही थे जो कुंभ से आने के बाद अमरत्व को पा गए अन्यथा अधिकांश लोग कुंभ को केवल जीवन के कर्मकाण्ड या रस्मों तक ही जान पाए और वैसे ही रहे जैसे कुंभ में जाने से पहले थे।
अबकि बार कुंभ का पूरा फायदा लें और अपने आपको दिव्य बनाएं, अमरत्व की प्राप्ति का अहसास करें अन्यथा आने वाला समय बहुत खराब आ रहा है। इसका संकेत उज्जैन में आए तूफान ने दे ही दिया है।
कुंभ को सांसारिकता, धर्म के नाम पर धंधेबाजी, पाखण्ड और धंधेबाजी से दूर रखें वरना क्षिप्रा मैया और महाकाल अबकि बार बर्दाश्त नहीं करने वाले। अभी तो केवल ट्रेलर ही था, हम नहीं सुधरे तो देखते जाइयें आगे-आगे होता है क्या।