- April 2, 2017
साम्प्रदायिक हिंसा—सरकार से जवाब तलब —इलाहाबाद हाईकोर्ट
लखनऊ ————- रिहाई मंच ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा योगी आदित्यनाथ के खिलाफ साम्प्रदायिक हिंसा फैलाने के आरोंपों की जांच के लिए 153 (ए) के तहत अनुमति नहीं देने पर सरकार को जवाब तलब करने का स्वागत किया है। मंच ने उम्मीद जताई है कि इस संगीन आरोप में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सजा होगी और योगी मुख्यमंत्री के बतौर जेल जाने वाले पहले व्यक्ति होंगे।
रिहाई मंच द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में मंच के महासचिव राजीव यादव ने इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा सामाजिक कार्यकर्ताओं परवेज परवाज और असद हयात की याचिका पर 2007 में गोरखपुर में हुए मुस्लिम विरोधी साम्प्रदायिक हिंसा की जांच मामले पर अदालत द्वारा राज्य सरकार से योगी और अन्य आरोपियों के खिलाफ सीबीसीआईडी जांच के लिए 153 (ए) के तहत अनुमति नहीं दिए जाने पर राज्य सरकार से जवाब तलब करते हुए तीन हफ्तों के अंदर रिपोर्ट रखने के निर्देश का स्वागत किया है।
उन्होंने कहा है कि पिछले दो साल से अखिलेश सरकार का इस मामले में जांच की अनुमति नहीं देना साबित करता है कि अखिलेश अपने पिता मुलायम सिंह यादव की तरह ही संघी तत्वों को अदालती कार्यवाईयांे से बचाने के नक्शे कदम पर चल रहे थे। यहां गौरतलब है कि 153 (ए) आईपीसी के तहत साम्प्रदायिक भड़काऊ भाषण के आरोप में न्यूनतम तीन साल की सजा का प्रावधान है। इसके किसी भी मामले का संज्ञान कोर्ट नहीं लेगी यदि राज्य सरकार या केंद्र सरकार ने इसकी मंजूरी नहीं दी हो।
मुकदमे की पृष्ठभूमि बताते हुए प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया है कि 27 जनवरी 2007 की रात गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर योगी आदित्यनाथ ने विधायक राधामोहन दास अग्रवाल और गोरखपुर की मेयर अंजू चैधरी की मौजूदगी में हिंसा फैलाने वाला भाषण देते हुए ऐलान किया था कि वो मुहर्रम में ताजिया नहीं उठने देंगे और खून की होली खेलेंगे। जिसके लिए उन्होंने आस-पास के जिलों में भी अपने लोगों को कह दिया है।
इस भाषण के बाद भीड़ ‘कटुए काटे जाएंगे, राम राम चिल्लाएंगे’ के नारों के साथ मुसलमानों की दुकानंे फंूकती आगे बढ़ती चली गई थी। इसके साथ ही गोरखपुर, देवरिया, पडरौना, महाराजगंज, बस्ती, संत कबीरनगर और सिद्धार्थनगर में योगी के कहे अनुसार ही मुस्लिम विरोधी हिंसा हुई थी। लेकिन इस पूरे प्रकरण जिसमें मुसलमानों की करोड़ों की सम्पत्ति का नुकसान हुआ था, एफआईआर तक दर्ज नहीं हुआ था।
सामाजिक कार्यकर्ताओं परवेज परवाज और असद हयात द्वारा इलाहाबाद हाई कोर्ट में रिट पेटिशन दायर कर प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की गई लेकिन अदालत ने उसे खारिज करते हुए सेक्शन 156 (3) के तहत कार्रवाई का निर्देश दिया। जिसके बाद सीजेएम गोरखपुर की कोर्ट में एफआईआर दर्ज कराने के लिए गुहार लगाई गई। जिस पर कुल 10 महीने तक सुनवाई चली और अंततः मांग को खारिज कर दिया गया। जिसके खिलाफ फिर हाईकोर्ट में रिवीजन दाखिल हुआ। तब जाकर इस मामले में एफआईआर दर्ज हो पायी थी।
एफआईआर के दर्ज होने के बाद योगी के साथ सहअभियुक्त अंजू चैधरी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर एफआईआर और जांच पर स्टे ले लिया। जिसके बाद 13 दिसम्बर 2012 को सुप्रीम कोर्ट ने अंजू चैधरी की एसएलपी को खारिज कर दिया और जांच के आदेष दे दिए। लेकिन सीबीसीआईडी की इस जांच के लिए अखिलेष यादव सरकार ने अपने जांच अधिकारी को अनुमति ही नहीं दी और मामला वहीं का वहीं पड़ा रहा।
राजीव यादव ने कहा है कि अगर पिछली अखिलेश सरकार ने इन संगीन आरोपों में जांच की अनुमति दे दी होती तो आज योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री आवास में नहीं बल्कि जेल की सलाखों के पीछे अपने पापों की सजा काट रहे होते। उन्होंने कहा कि रिहाई मंच को उम्मीद है कि गोरखपुर दंगे के आरोपी षडयंत्रकर्ता और मास्टरमाइंड योगी आदित्यनाथ के मुकदमे में न्यायपालिका उनके साथ न्याय करते हुए उन्हें सजा सुनाएगी और योगी मुख्यमंत्री रहते हुए जेल जाने वाले पहले व्यक्ति बनेंगे।
रिहाई मंच लखनऊ के प्रवक्ता अनिल यादव ने मुख्यमंत्री के खिलाफ आए अदालत के इस महत्वपूर्ण निर्देश का मीडिया से पूरी तरह गायब रहने को मीडिया की संघ और भाजपा की दलाली का ताजा उदाहरण बताया है। उन्होंने कहा कि मीडिया को समझना चाहिए कि किसी हत्यारे को संत बताने से हत्यारा संत नहीं हो जाएगा।
उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार और संघ परिवार समर्थित हिंदुत्ववादी मीडिया आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री के बजाए योगी और सन्यासी जैसा उत्पाद बताकर न सिर्फ उनके प्रति अपनी भक्तिभावना प्रदर्शित कर रही है बल्कि इस इमेज मेकिंग के बहाने योगी की प्रशासनिक अक्षमताओं पर जनता को सवाल उठाने से रोकने का मनोवैज्ञानिक दबाव भी डाल रही है।
अनिल यादव
प्रवक्ता रिहाई मंच, लखनऊ
8542065846