रोज करें कुछ न कुछ नया -डॉ. दीपक आचार्य

रोज करें  कुछ न कुछ नया  -डॉ. दीपक आचार्य

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समय रोजाना अपनी मुट्ठी से फिसलता चला जा रहा है। बहुत कुछ है जो रोज हमारे हाथ से बाहर छूटता जा रहा है। क्षरण का यह दौर हम भले ही कुछ दिन-महीनों में महसूस नहीं कर पाते हैं लेकिन क्षरण जरूर हो रहा है।
यह क्षरण मानसिक, शारीरिक और हर प्रकार से हो रहा है। सनातन सत्य यही है कि जो आज हमारे पास है वह कल नहीं रहने वाला है। यहां तक कि हमारी भी अपनी कोई गारंटी नहीं है कि कल रहेंगे या नहीं।

बहुत सारे लोग बरसों से ऊपर जा रहे हैं। रोज जा रहे हैंं। हमसे पहले आए वे भी चले जाते हैं और हमारे बाद आने वाले भी ऊपर उठ जा रहे हैं।

किसी के आने के बारे में तो कयास लगाए जा सकते हैं लेकिन जाने के मामले मेें कोई नहीं कह सकता कि कब नम्बर कट जाए, विकेट उड़ जाए और पूरी की पूरी पारी आधे अधूरे अरमानों के साथ अकस्मात समाप्त हो जाए।

रोजाना का यह क्रम हमारी आँखों के सामने बना ही हुआ है।

बावजूद इस सत्य के हम सहजता पूर्वक और विनम्रता के साथ इसे स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। जो इस परम सत्य को झुठला सकता है वह दुनिया में किसी भी सीमा तक झूठ बोल सकता है, झूठन चाट सकता है, झूठा ही झूठा और मक्कार बना रह सकता है।

काल निरन्तर हमारे करीब आता जा रहा है। लेकिन हम हैं कि उसके प्रति उदासीन बने हुए अपने कुकर्मों में रमे हुए हैं। कोई जमा ही जमा कर रहा है। कोई छीना-झपटी के चक्कर में है, कोई लूट-खसोट और हड़पने को ही जन्मसिद्ध अधिकार या मानवाधिकार समझ बैठा है।

बहुत सारे लोग सब कुछ अपने नाम करने को इतने उतावले हैं कि इनमें से कुछ भी अपने पर खर्च नहीं कर पा रहे हैं। बहुत सारे लोग धन-सम्पदा और वैभव होने के बावजूद अपने आपको हमेशा भिखारी कहते हुए सुने जाते हैं और हर प्रकार के व्यवहार में भिखारी ही बने रहते हैं। ऎसे वैभवशाली भिखारियों को क्या कहा जाए जिनके पास सब कुछ है लेकिन रहने और खान-पान का सलीका नहीं है।

खूब सारे ऎसे हैं जो जिनके पास माल-असबाब तो बहुत है लेकिन अपने ही लिए जी रहे हैं। ऎसे ही बहुत से इस किस्म के हैं जिनके पास अपना कुछ नहीं है, औरों की चापलुसी और चरण वन्दना पर ही जिन्दा हैं।

कुल मिलाकर संग्रहण का यह कबाड़िया कल्चर सर्वत्र इतना हावी हो रहा है कि कुछ कहा नहीं जा सकता। अधिकांश लोगों की जिन्दगी कमाई में खर्च हो जाती है और इनकी कमाई पर वे नाकारा और नालायक लोग मौज उड़ाते हैं जो हरामखोर हैं तथा मेहनत से जी चुराते हैं।

इस किस्म के लोगों को ही भाग्यशाली कहा जा सकता है क्योंकि ये ही लोग हैं जिनके लिए कमाने वाले भिखारी और कबाड़ी दूसरे होते हैं और उनकी मेहनत पर ये लोग मौज उड़ाते हैं।

रोजाना आयु और यौवन का क्षय हो रहा है। इसे समझने की कोशिश करें और समाज एवं देश के लिए ऎसा कुछ करें कि जिसे बाद वाले आदरपूर्वक याद करें।

अन्यथा आजकल लोग बहुत कम इंसानों को ही आदर के साथ याद करते हैं क्योंकि इन गुजरे हुए लोगों की ओर से ऎसा कोई काम कभी होता ही नहीं कि इनके प्रति जरा सी भी श्रद्धा अभिव्यक्त की जा सके।

कमाने का काम भले करें लेकिन रोजाना समाज और देश की जरूरतों के प्रति भी गंभीर रहें। रोजाना कोई न कोई नया काम ऎसा करें कि जो समाज हित में हो, अपने कुटुम्बियों को इसका लाभ मिले और देश का भला हो।

हममें से अधिकांश लोगों को हमेशा यह मलाल रहता ही है कि अमुक काम चाहते हुए भी नहीं कर पाए हैं या अधूरे रह गए हैं।

यह अहसास ही हमारे जीवन में दुःख का कारण होता है और हमारे आनंद को छीन लेता है।

इसलिए अपने आपको उपयोगी बनाएं, रोज कुछ न कुछ नया काम करें और अपनी उपयोगिता को पूरी मजबूती एवं प्रामाणिकता के साथ सिद्ध करें।

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