- April 17, 2017
मुस्लिम पर्सनल लॉ ! पुरुष को चार शादीयां करने की इजाजत तो महिलाओं को छूट क्यों नहीं–रुमाना सिद्दिकी
मुस्लिम पर्सनल लॉ अगर पुरुष को चार शादी करने की इजाजत देता है तो पहला सीधा सवाल उठता है कि आखिर महिलाओं को ऐसी छूट क्यों नहीं दी गई है. क्या मुस्लिम पर्सनल लॉ को इस्लाम से पुरुष और महिला में ऐसा भेद करने के लिए कोई सर्टिफिकट मिला हुआ है!
मुस्लिम पर्सनल लॉ महिलाओं के हक के प्रति बेहद उदासीन है जिसे अब समय के साथ बदलने की जरूरत है. इस उदासीनता के लिए मैं मुस्लिम धर्म गुरुओं और मौलवियों को जिम्मेदार ठहराते हुए अपील करती हूँ कि उन्हें अपने भीतर झांकने की जरूरत है. किसी संवेदनशील मामलों पर कोई फैसला करने से पहले ऐसे धर्म गुरुओं को यह सोचना होगा कि क्या वह ऐसा एक तरफा फैसला सुनाने की योग्यता रखते हैं ?
मुसलमानों को भी अपने धर्म गुरुओं की योग्यता परखने की जरूरत है क्योंकि आज के आधुनिक युग में मुस्लिम महिलाओं को बराबरी के वो मूल अधिकार भी मुहैया नहीं है जो धर्म ग्रंथ कुरान में लिखे हैं!
जो गलत है उसको हमको खत्म करना ही होगा, मुस्लिम पर्सनल लॉ में तीन बार तलाक कहने पर तलाक की प्रक्रिया को पूरा मान लेने की परंपरा को खत्म किया जाए. हलाला (पति से तलाक के बाद उससे दोबारा शादी की प्रथा) पर भी प्रतिबंध लगाया जाए. साथ ही पुरुषों द्वारा एक से ज्यादा शादियों पर भी रोक लगाई जाए.
हम पहले सविधान को मानते है और हम भारतीय है! भारतीय नागरिक के लिए संविधान की धारा 14,15, 21 और 25 के तहत अपने मूल अधिकारों के हनन की बात कही है.
गौरतलब है कि संविधान की ये सभी धाराएं देश के सभी नागरिकों को एक समान अधिकार देती हैं और अपने इन अधिकारों की रक्षा के लिए हम मुस्लिम महिलाएं सीधे देश की सर्वोच्च अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं.
मैं रूमाना सिद्दीक़ी इस मामले में मा. पीएम मोदी जी, केन्द्र सरकार के महिला और बाल कल्याण मंत्रालय, कानून मंत्रालय और अल्पसंख्यक मंत्रालय के साथ-साथ राष्ट्रिय महिला आयोग से ये गुजारिश करती हूँ की जल्द ही तीन तलाक, हलाला को खत्म किया जाए और 1 से ज्यादा शादी पर रोक लगाई जाये!
देश में धर्म में कुछ भी गलत हो तो वो सविधान से बाहर नही है, हर बुराई का इलाज सविधान के पास है। जब जब भी इसके खिलाफ आवाज़ बुलन्द होती है पर्सनल लॉ से महिला विरोधी कानून को खत्म करने की बात कही जाती है, तब कुछ मुस्लिम संस्थाए मुल्ले मौलवी उलेमा इसका विरोध जरूर करते है और कहते है की पर्सनल लॉ, सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र से बाहर है!
अब सवाल यह है कि क्या देश का संविधान अपने सभी नागरिकों को जो मूल अधिकार मुहैया करा रहा है उसका फायदा मुस्लिम महिलाओं को नहीं दिया जा सकता ?
क्या महज महिलाओं के प्रति किसी धर्म विशेष की उदासीनता के चलते उन महिलाओं को नागरिकता का पूर्ण दर्जा न देना उचित है ?
वह भी जब मुस्लिम महिलाएं खुद यह दावा कर रही हैं कि उनके धर्म ग्रंथ कुरान में किसी तरह के भादभाव का प्रावधान नहीं है.
लिहाजा, हिन्दू हो या मुस्लिम सब सविधान से ही चलेंगे! आज मेरे हर सवाल का उन सभी धर्म-गुरुओं और मौलवियों को देने की जरूरत है कि क्या इस्लाम मुस्लिम महिलाओं को चार शौहर रखने से मना करता है ? रूमाना सिद्दीक़ी भारतीय मुस्लिम
(श्रोत –रुमाना सिद्दिकी के फेसबूक प्रोफाइल)