मित्र देशों: सेना के लाखों नाजायज बच्चों की जिंदगी

मित्र देशों: सेना के लाखों नाजायज बच्चों की जिंदगी

काफी लंबे समय से चुप्पी के अंधेरे में छुपे एक विषय को उठाने वाली नई किताब चर्चा में है. इसमें द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जर्मनी पर कब्जा करने वाली मित्र देशों सेना के लाखों नाजायज बच्चों की जिंदगी का जिक्र है.jarman

1945 में जर्मनी पर चार देशों की एलाइड टुकड़ियों का नियंत्रण था. सेना के लोगों ने जर्मनी में गुजारे अपने समय के दौरान बहुत से जर्मनों से शारीरिक संबंध बनाए और नतीजतन कई बच्चे पैदा हुए. लंबे समय तक इस विषय पर बात भी नहीं की जाती थी. यह ऐसा अध्याय था जिसकी चर्चा करना एक सामाजिक टैबू था. उस समय पैदा हुए तमाम बच्चे अपने पूरे जीवन तरह तरह के बहिष्कार और भेदभाव झेलते रहे. कईयों ने अपने असली पिता की तलाश भी की. इस विषय पर प्रकाशित हुई एक स्टडी ऐसी कई बातों का खुलासा करती है.

स्टडी में बताया गया है कि युद्ध के ठीक बाद जर्मनी में एलाइड सेना के कम से कम चार लाख बच्चे पैदा हुए. फ्रीडरिष शिलर यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों को पता चला है कि इनमें से करीब तीन लाख बच्चे तो केवल सोवियत संघ की रेड आर्मी के सैनिकों के थे. 70 साल पहले जब सोवियत, अमेरिकी, ब्रिटिश और फ्रेंच सेनाएं जर्मनी के कई इलाकों में रह रही थीं, उस दौरान जर्मन महिलाओं पर बलात्कार और दूसरे कई तरह के जुल्म हुए. जनवरी 2015 में जर्मन भाषा में छपी इस किताब के टाइटल का अर्थ है, “बास्टर्ड – 1945 के बाद जर्मनी में पैदा हुए ऑक्यूपेशन के बच्चे”.

किताब में आंकड़ों के हवाले से बताया गया है कि इन “दुश्मन सेनाओं की संतानों” की सबसे पहली खेप 1945 में क्रिसमस के आसपास पैदा हुई. जर्मनी की येना यूनिवर्सिटी के रायनर ग्रीज बताते हैं, “युद्ध के बाद, ऑक्युपेशन के बच्चों के बारे में लंबे वक्त तक जिक्र भी नहीं किया जाता था.” ग्रीज ने माग्डेबुर्ग युनिवर्सिटी की सिल्के सात्युकोव के साथ मिलकर युद्ध काल के इन बच्चों के भविष्य पर गहरा शोध किया है.

Die Magdeburger Historikerin Silke Satjukow बच्चों ने झेले कई तरह के अपमान: सिल्के सात्युकोव

कोलोन के फ्रित्स थीसेन फाउंडेशन की फंडिंग से संभव हुए इस प्रोजेक्ट में इन्हीं बच्चों की जीवनियां इकट्ठी की गईं. यह किताब युद्ध काल के उन बच्चों के इतिहास, मनोस्थिति और उनसे जुड़ी राजनीति की सच्ची कहानियों का एक संकलन है. रेड आर्मी पर कथित रूप से 20 लाख बलात्कार के आरोप हैं. इसके आधार पर रिसर्चरों ने आंकड़े निकाले हैं कि केवल रेड आर्मी के सैनिक ही कम से कम तीन लाख बच्चों के जन्म के लिए जिम्मेदार हैं.

किताब में जिक्र है कि फ्रेंच और अमेरिकी टुकड़ियों ने भी बड़े पैमाने पर बलात्कार किए, जबकि ब्रिटिश सेना के नाम पर ऐसे बहुत कम आरोप हैं. इनके अलावा कई मामलों में जर्मन महिलाओं के विदेशी सैनिकों के साथ प्रेम संबंधों की भी बात कही गई है, जिसके परिणामस्वरूप भी कई बच्चे पैदा हुए. रिसर्च में पाया गया कि इन बच्चों पर पूरे जीवन कई तरह के मनोवैज्ञानिक दबाव रहे. जर्मनी के लोग और खुद उनके परिवार के लोग भी पूरे जीवन उन्हें बास्टर्ड यानि नाजायज मानते रहे. सात्युकोव बताती है कि इन बच्चों को बचपन से ही कई तरह की उलाहनाएं झेलनी पड़ीं और ये “पाप के बच्चे” कहलाए. जिन महिलाओं ने बच्चे पैदा किए थे, उनका जीवन भी कठिनाइयों से भरा था. पूर्वी या पश्चिमी जर्मनी दोनों ही जगह उन्हें किसी तरह की मदद मुहैया नहीं हुई. फ्रांस इस मामले में एक अपवाद रहा कि उसने फ्रेंच सैनिकों के बच्चों को फ्रेंच नागरिक माने जाने की सुविधा दी. शर्त ये थी कि उन्हें गोद दे दिया जाए. फ्रांस की इस नीति का फायदा करीब 1,500 बच्चों को मिला.

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