नवरात्रि से पाएं आत्म विकास – डॉ. दीपक आचार्य

नवरात्रि से पाएं  आत्म विकास  – डॉ. दीपक आचार्य

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इन दिनों सभी स्थानों पर नवरात्रि की धूम है।  नवरात्रि शक्ति संचय के साथ ही क्षरण हो चुकी दैवीय ऊर्जाओं के पुनर्भरण का काल है। इसके साथ ही मौसमी परिवर्तन के दौर में उत्पन्न प्रदूषण और विषमताओं पर नियंत्रण की दृष्टि से भी अच्छा समय है।

इसमें जो कुछ होता है वह व्यक्ति के परिश्रम से होता है। इस सिद्ध और हर दृष्टि से ऊर्जा प्राप्ति के साथ ही दैवीय शक्ति से अपने आपको सम्पन्न करने का सुअवसर गँवाना अपने आप में किसी मूर्खता से कम नहीं है।

नवरात्रि में सभी प्रकार की दैवीय शक्तियां सिद्ध और जागृत अवस्था में होती हैं। इनका आवाहन कर सकारात्मक सोच और शुचिता के साथ पूजन-अर्चन किया जाए तो इनकी प्रसन्नता पायी जा सकती है।

इन शक्तियों के प्रति उदासीन रहने अथवा नवरात्रि के काल को यों ही गँवा देने वाले लोगों के लिए यह समय प्रतिकूल और नकारात्मक प्रभाव देने वाला भी सिद्ध हो सकता है।

नवरात्रि जैसा काल स्वयंसिद्ध है और इसकी अवहेलना करने वालों को अपेक्षित लाभ की कामना साल भर नहीं करनी चाहिए। नवरात्रि का यह काल सभी प्राणियों के लिए मानसिक, शारीरिक और परिवेशीय दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।

इस काल में दैवी उपासना में प्रवृत्त होना कई संकटों, समस्याओं और व्याधियों से बचाता है। यह शक्ति काल पिण्ड से लेकर ब्रह्माण्ड तक में सूक्ष्म परिवर्तन का समय होता है जिसका पूरा प्रभाव वैज्ञानिक आधारों से भरा है।

इसलिए इस काल में दैवीय ऊर्जा की प्राप्ति का प्रयास वर्तमान और भविष्य सभी के लिए अनुकूलताएं और जीने का सुकून देने वाला है। बिना शक्ति प्राप्ति के कोई कुछ भी नहीं कर सकता है।

नवरात्रि काल में की गई साधना हमारे आभामण्डल को एक दिव्य व अभेद्य कवच प्रदान करती है और भावी अनिष्ट से संरक्षित भी करती है। तभी भगवती की आराधना इस समय में आदिकाल से प्रचलित है।

यह हम पर है कि हम इस काल का कितना लाभ अपने लिए ले पाते हैं, इससे प्राप्त ऊर्जा का कितना उपयोग लोक मंगल और विश्व कल्याण के लिए कर पाते हैं।

जो लोग नवरात्रि की महिमा से परिचित हैं वे इसका भरपूर लाभ ले लिया करते हैं। इस मामले में नवरात्रि में बहुविध साधना करने वालों के कई प्रकार हैं।

 संक्षेप में कहा जाए तो नवरात्रि दिल, दिमाग और सेहत से लेकर व्यक्तित्व विकास, घर-परिवार की खुशहाली और परिवेशीय महामंगल का दाता पर्व है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

बस इसके महत्व को समझने भर की जरूरत है। जो लोग इस रहस्य को जान लेते हैं वे दैवी कृपा पाकर निहाल हो जाते हैं। जो लोग प्रमाद, आलस्य अथवा नास्तिकतावश इस काल मेंं निष्कि्रय बने रहते हैं, उन्हें दिव्यता का लाभ मिलने में संदेह ही बना रहता है।

नवरात्रि पर्व में आत्मिक विकास के लिए सारे प्रयत्नों को अपनाने की अपार संभावनाएं हैं। वस्तुतः नवरात्रि और दैवी उपासना का सीधा संबंध हमारे भीतर और बाहर के शत्रुओं के उन्मूलन से है।

इस मामले में नवरात्रि को आधार बनाकर इनके उन्मूलन का संकल्प लेकर इसे सार्थक किया जाए तो हमारे व्यक्तित्व के नकारात्मक दोषों को हटाकर सकारात्मक चिन्तन की भावभूमि प्राप्त की जा सकती है।

इसी प्रकार असुर बाहरी भी होते हैं और सूक्ष्म रूप में हमारे दिमाग में भी। जो अन्दर-बाहर सभी जगह खुराफात, षड़यंत्र और बुरी सोच में लगे रहते हैं।

नवरात्रि को दिव्यता पाने का माध्यम बनाने पर  दिमागी अंधकार को दूर करने में आशातीत सफलता पायी जा सकती है। इसी प्रकार मौसमी परिवर्तनों से शरीर को बचाए रखने में भी नवरात्रि की अहम् भूमिका को कोई नकार नहीं सकता।

नवरात्रि पर्व के दौरान गरबा नृत्य मनुष्य को सांगीतिक आनंद, दैवीय एवं  स्वस्थ मनोरंजन प्रदान करता है, साथ ही आंगिक संचालन के माध्यम से हमारा शारीरिक सौष्ठव भी बढ़ता है, शरीरस्थ चर्बी गलती है, दूषित वायु बाहर निकल जाती है, स्वेद निकल जाने से शरीर हल्का हो जाता है और पूरा शरीर यौगिक क्रियाओं तथा अंग संचालन के माध्यम से दिव्य तथा ऊर्जाओं से भर उठता है।

इनका उपयोग साल भर तक हमारे लिए अनुकूलताओं और सुकून भरे माहौल का संचरण करता है। इस दृष्टि से हम सभी को चाहिए कि नवरात्रि का भरपूर लाभ लेकर अपने व्यक्तित्व को निखारें, सँवारें और दैवी कृपा का अनुभव करें।

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