- May 3, 2016
आहुति दें वरुण यज्ञ में – डॉ. दीपक आचार्य
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इन दिनों राजस्थान ऎसा अपूर्व इतिहास रच रहा है जिसकी चर्चा सब जगह है। खासकर गांवों में लोग भीषण गर्मी और लू के थपेड़ों के बावजूद ऎसे जुटे हुए हैं जैसे कि उन्हीं के गाँव का अपना कोई उत्सव हो।
आने वाले कल के सुनहरे स्वप्नों को आकार देने के लिए हर तरफ इतना सब कुछ किया जा रहा है कि जिससे पूरे राजस्थान को फायदा होगा, ग्रामीणों को ही नहीं बल्कि मवेशियों को भी लाभ मिलेगा और दरख्तों से लेकर सूखी-प्यासी धरती तक को सुकून मिलेगा।
इसी सुनहरे कल का आगाज करने के लिए आज वर्तमान हर तरफ जबर्दस्त हलचल मचा रहा है। और हलचल भी ऎसी-वैसी नहीं, कोई क्षेत्र ऎसा नहीं है जहाँ कुछ न हो रहा हो। कई इलाके तो अभी से मकसद को पूरा कर चुके हैं।
हर आम और खास की इसमें भागीदारी है। गरीब से लेकर बड़े से बड़े अमीर और वर्चस्वी श्रेष्ठीजनों की भरपूर सहभागिता स्वर्णिम इतिहास का आधार तैयार कर रही है।
यह बात है राजस्थान की सबसे बड़ी पेयजल समस्या को खत्म करने की उस कवायद की जिसे मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान नाम दिया गया है। प्रदेश की बुनियादी समस्याओं की टोह लेकर इनके खात्मे के जो प्रयास हो रहे हैं उन्हीं में यह एक अहम् पहल है जिसे राजस्थान की मुख्यमंत्री श्रीमती वसुन्धरा राजे लेकर आयी हैं।
इसमें हो रहे सभी काम आने वाले समय के लिए खुशहाली के प्रपातों का दिग्दर्शन कराने वाले वे शिलालेख हैं जिनका चमत्कारिक असर कुछ माह बाद ही दिखना शुरू हो जाएगा और सदियों तक सुकून की कई लकीरों से इतिहास रचता चला जाने वाला है।
आज के महा प्रदूषण, भीषण गर्मी, ग्लोबल वार्मिंग के घातक खतरों और दिन-ब-दिन घटते जा रहे नैसर्गिंक सौन्दर्य से अस्त-व्यस्त अनुभव कर रहा जनजीवन इतना सब कुछ होते रहने के बावजूद संवेदनहीन ही बना रहा तो आने वाला समय हमें माफ नहीं करेगा।
इस बार की यह भीषण गर्मी हम सभी के लिए वह संकेत है जो यह समझने के लिए काफी होना चाहिए कि हर इंसान जगे, कुछ करे, और जो लोग कुछ कर गुजरने का माद्दा रखते हुए पूरे ज़ज़्बे के साथ जुटे हुए हैं उन्हें यथाशक्ति हरसंभव सहयोग प्रदान करे।
असल में यह अभियान किसी वरुण यज्ञ से कम नहीं है जिसमें हम सभी को तन-मन और धन से आहुति देकर यज्ञ को सफल बनाना है ताकि सरस धरती और विश्व मंगल का साकार स्वरूप हमारे सामने आ सके।
पसीने की कुछ बूंदें आज बहेंगी तो कल हर बूँद बादल बनकर आएगी, पहाड़ों और मैदानों तक पसरे जलाशयों को लबालब भरकर सरसता लाएगी और जगह-जगह बने जलाशय प्रकृति के तीर्थ के रूप में अर्से तक आनंद देते रहेंगे।
पानी के आवाहन के लिए हो रहे यही यज्ञ गांव-गांव में वरुण देव की कृपा का अहसास कराएंगे और तब हर गांव होगा पानी का सेठ, जहाँ जो पानी है वह सबके लिए अपना होगा और इस पर अपने गांव का कब्जा होगा।
इसी मकसद से इन दिनों गांव के गांव जगे हुए हैं, लाखों गैतियां, कुदालें, फावड़े और मशीनें पानी के देवता के आवाहन में संगीत सुना रहे हैं। लाखों हाथ जमीन से आसमान तक लहराते हुए जलाशयों की तस्वीर सँवार रहे हैं।
स्वेद की हर बूँद लगी है नया इतिहास बनाने, राजस्थान को जल संकट के कलंक से मुक्ति दिलाने। नियति का यही कायदा है, जहाँ पसीना बहता है वहाँ दरिया बह निकलता है।
जब अपने आस-पास यह यह सब कुछ हो रहा है तो हम कैसे चुपचाप बैठे रहें। अब तक किसी ने ऎसा जगाया ही नहीं कि अपने इलाके के लिए मिल-जुलकर स्वेच्छा से कुछ कर सकें।
जब जगने लगा है जमाना तो हम भी पीछे क्यों रहें। कहीं ऎसा न हो कि सदी का यह लोक अभियान अप्रत्याशित और आशातीत सफलताओं के शिखरों को चूमने लगे और तब हमें यह मलाल रह जाए कि हमारा योगदान कुछ न रहा।
समय बीत जाने के बाद हमारे पास पछतावे के सिवा कुछ न बचेगा। हमारे मन में यह टीस न बनी रहे, हमारा भी कुछ न कुछ योेगदान जरूर मिले इस अभियान को।
इसलिए यह जरूरी है कि हम जहाँ कहीं हों, वहाँ मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान के कामों में अपनी भागीदारी निभाएं।
आने वाली सदियों और पीढ़ियों के लिए ऎसा कुछ करें कि यह अभियान हमेशा यादगार रहे और वरुण देव का वरदान हमेशा अपने राजस्थान पर बना रहे।
यह शाश्वत सत्य है कि जिस दिन राजस्थान जल संकट से मुक्ति पा लेगा उस दिन से यह न केवल भारतवर्ष बल्कि दुनिया के अग्रणी क्षेत्रों में अनूठी पहचान कायम कर लेगा। और इसका पूरा श्रेय आज की उस पीढ़ी को प्राप्त होगा जो कि वर्तमान में इस अभियान को लोक अभियान बनाते हुए किसी न किसी तरह का योगदान कर रही है। ‘जल ही जीवन है’ के मूल मंत्र को अपनाते हुए अपनी आहुति देने में पीछे न रहें।