लेखक के कलम से

इस वजह से भारत में नहीं बन रहा जलवायु परिवर्तन एक सियासी मुद्दा ! —-

कभी सोचा है कोई मुद्दा सियासी कब बनता है? बात आगे बढे उससे पहले ज़रा समझ लेते हैं कि सियासत
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क्या किसान आंदोलन अपनी प्रासंगिकता खो रहा है—– डॉ नीलम महेंद्र (लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार)

आज सोशल मीडिया हर आमोखास के लिए केवल अपनी बात मजबूती के साथ रखने का एक शक्तिशाली माध्यम मात्र नहीं
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उत्तराखंड जल संकट : छोटे प्रयास से बड़ा समाधान निकलेगा गिरीश चंद्र ‘गोपी’

अल्मोड़ा ——-उत्तराखंड में 2013 में आई आपदा और फिर 7 फरवरी को चमोली के तपोवन में आई जलप्रलय की घटनाएँ
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वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ. कृष्णगोपाल मिश्र की समीक्षा कृति लोकार्पित

विगत छः दशकों से सतत साधनारत वरिष्ठ गीतकार डॉ. विनोद निगम के गीतों पर आधारित समीक्षा कृति ‘गीत यात्रा में
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क्या किसान आंदोलन अपनी प्रासंगिकता खो रहा है —- डॉ नीलम महेंद्र (लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार

आज सोशल मीडिया हर आमोखास के लिए केवल अपनी बात मजबूती के साथ रखने का एक शक्तिशाली माध्यम मात्र नहीं
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अपने बच्चो को संस्कार के साथ अपने इतिहास के बारे में जरूर अवगत कराएं —

नई दिल्ली — अखिल वैश्विक छत्रिय महासभा ट्रस्ट की पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रथम बैठक ट्रस्ट के राष्ट्रीय महासचिव एवं
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ग्लेशियर टुटने से हुई भारी तबाही पर चिन्ता व मृतकों को श्रद्धांजली– रमेश गोएल

तपोवन घाटी में ग्लेशियर टुटने से हुई भारी तबाही पर चिन्ता व मृतकों को श्रद्धांजली अर्पित करते हुए पर्यावरणविद् व
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घूंघट में रह कर स्वावलंबी बनती ग्रामीण महिलाएं –राजेश निर्मल

सुलतानपुर, उत्तर प्रदेश——-इंसान और पशु में बस इतना ही फ़र्क है कि पशु अपना सारा जीवन खाने और सोने में
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आँसुओं की दो बूँद बन गया सैलाब!—- सज्जाद हैदर-(वरिष्ठ पत्रकार एवं राष्ट्र चिंतक)

देश के सामने एक नया सवाल आकर खडा हो गया। क्या किसानों को एक नया जुझारू नेता मिल गया। क्या
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“बीहड़ में स्त्री स्वाभिमान की जागरूकता”–सूर्यकांत देवांगन

भानुप्रतापपुर (छत्तीसगढ़)— भारतीय समाज में आज भी बड़ी संख्या में महिलाएं पीरियड्स को लेकर कई मिथकों और संकोचों में अपना
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