- December 7, 2014
विश्व हिंदू परिषद पर लगाम लेकिन—ज्योति पिछड़ी जाति निषाद
आदिति फडणीस / नई दिल्ली – क्या आपको प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक (राजग) के खिलाफ कोई विपक्ष नजर आ रहा है। क्या यदा-कदा राहुल गांधी के नेतृत्व में दंभ भरने वाली कांग्रेस विपक्ष है ? या वामपंथी दल या फिर आक्रामक भाषा में बात करने वाली ममता बनर्जी विपक्ष की भूमिका निभा रही हैं? लेकिन
वास्तव में यह बात सबसे पहले मधु किश्वर ने टटोली। मोदी के खिलाफ अगर कहीं विपक्ष दिख रहा है तो वह संघ परिवार के भीतर ही है। निरंजन ज्योति को मंत्रिमंडल में बनाए रख कर मोदी कम से कम अपनी पहली लड़ाई तो हार गए हैं। हालांकि मोदी ने जान-बूझकर कार्रवाई नहीं की क्योंकि उन्हें आगे के टकराव के लिए स्वयं को तैयार रखना है। उन्होंने विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के आगे हथियार डाल दिए। आम चुनाव से पहले विहिप गर्व से कह रही थी कि मोदी उसकी ही देन है, लेकिन मोदी ज्योति पर इसलिए चुप हैं, क्योंकि इस तरह विहिप को प्रभावहीन कर पाएंगे। ज्योति पिछड़ी जाति निषाद परिवार से आती हैं। यह भी एक अन्य पिछड़ी जाति (ओबीसी) है जिसे नौकरी में आरक्षण के लिए उत्तर प्रदेश के अनुसूचित जाति कोटे में अति पिछड़ी जाति के तौर पर शामिल किया गया था।
ज्योति का परिवार बुंदेलखंड के पिछड़े क्षेत्र से ताल्लुक रखता है। अपने परिवार की जीविकोपार्जन में मदद के लिए उन्होंने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी। वह अपने परिवार के जमीन के छोटे टुकड़े से और नदी से मछलियां पकड़ उन्हें बेच अपने और परिवार के लालन-पालन में मदद के लिए जुट गईं। अपने बचपन के दिनों में भी साध्वी अपने मन की बात कहने में संकोच नहीं करती थी। यही वजह थी कि उन्होंने विश्व हिंदू परिषद के मार्ग दर्शक मंडल के सदस्य स्वामी अच्युतानंद का ध्यान आकृष्ट किया। निरंजन ज्योति धार्मिक सभाओं में भाग लिया करती थीं और इनसे काफी प्रभावित रहती थीं।
हमेशा नई प्रतिभा की खोज में रहने वाले विहिप ने उनकी शादी असफल रहने के बाद उन्हें अपने समाज में शामिल कर लिया। अखाड़ा परिषद से ताल्लुक रखने वाले और साथ ही विहिप के उपाध्यक्ष स्वामी परमानंद उनके गुरु थे। समाज में हिंदुत्व को स्थापित करने के विहिप के अभियान में वह पूरी तरह फिट बैठीं। 2002 में उन्होंने हमीरपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा लेकिन हार गईं।
पुन: 2007 में भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा, लेकिन पांच साल बाद वह हमीरपुर से चुनाव जीत गईं। वह बुंदेलखंड क्षेत्र से चुनाव जीतने वाली भाजपा की तीन विधायकों में शामिल थीं। इसके बाद उन्हें फतेहपुर लोकसभा सीट से चुनाव लडऩे के लिए भेजा गया जहां वह विजयी रहीं। उनके प्रचार अभियान में विहिप की छवि साफ दिखी और भाजपा में वह विहिप का चेहरा बनी रहीं। लेकिन भाजपा ज्योति को लेकर असहज रही, क्योंकि उनके खिलाफ पिछले चुनाव में पार्टी के ही कार्यकर्ताओं ने दुव्र्यवहार का आरोप लगाया था और पुलिस शिकायत भी दर्ज की गई थी। कानपुर के भाजपा प्रमुख को उनके खिलाफ आरोप की जांच करने के लिए कहा गया था।
ऐसा नहीं था कि दलित/ ओबीसी सांसदों की कमी नहीं थी, जिन्हें मोदी मंत्री बना सकते थे। बिहार के संजय पासवान समाजशास्त्र में डॉक्टरेट हैं। इसी तरह, दिल्ली के सांसद उदित राज ने जेएनयू में पढ़ाई-लिखाई की और भारतीय राजस्व सेवा में आने के बाद नौकरी छोड़ दी और राजनीति में आ गए। लेकिन इन लोगों को विहिप का समर्थन प्राप्त नहीं था। मोदी और विहिप के बीच संबंध कभी मधुर नहीं रहे। विहिप सरकार के जरिये हमेशा अतिवादी हिंदू एजेंडा लागू करती रही लेकिन मोदी उनकी योजनाएं विफल करते रहे। किश्वर ने अपनी पुस्तक मोदी, ‘मुस्लिम और मीडिया’ में कहा कि अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व सदस्य वी वी अगस्टिन ने गुजरात के डांग क्षेत्र में विहिप के आतंक की शिकायत की थी।
विहिप ने वहां ‘शबरी कुंभ मेला’ आयोजित करने का प्रस्ताव दिया और मोदी को बताया कि इस क्षेत्र में रहने वाले ईसाई कितने सहमे हुए हैं। मोदी ने मेले पर प्रतिबंध लगाने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि इससे विहिप और मजबूत होगा लेकिन इतना जरूर कहा कि अगर मेले के दौरान कानून का उल्लंघन हुआ तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने उस क्षेत्र के पुलिस आयुक्त को पर्याप्त निर्देश दे रखे थे।
इस बारे में काफी कुछ कहा गया कि किस तरह मोदी ने गुजरात प्रशासन से विहिप को दरकिनार कर दिया। चाहे बाढ़ राहतों के लिए चंदा संग्रह की बात हो या कल्याणकारी योजनाएं हो, मोदी ने विहिप को स्पष्ट कर दिया कि राज्य सरकार ये कार्य करने में स्वयं सक्षम है और उसे बाहर से सहयोग की जरूरत नहीं है। उन्होंने प्रवीण तोगडिय़ा की प्रस्तावित त्रिशूल दीक्षा यात्रा पर भी प्रतिबंध लगा दिया। इतना ही नहीं, श्रीराम सेना के प्रमोद मुथालिक के गुजरात में प्रवेश पर भी अनौपचारिक प्रतिबंध लगा दिया गया। मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में जय श्रीराम का उद्घोष भी नहीं हुआ। जब भी मोदी को कड़े कदम उठाने की जरूरत नहीं पड़ी उन्होंने नहीं उठाया।
भाजपा जब सत्ता से बाहर थी तो उस दौरान स्वेदशी जागरण मंच कुछ खास नहीं कर पाई। जब सरकार गठन के बाद इसके सदस्यों ने बड़ी-बड़ी बातें करनी शुरू कीं तो एक नया संगठन तैयार कर इसके (स्वदेशी जागरण मंच) के प्रभाव के दबा दिया गया। मोदी के लिए विहिप को दबाना कोई बड़ी बात नहीं होगी। लेकिन उसके मंत्री को सरकार में रख कर उनसे निबटना खासा आसान है, निरंजन ज्योति कहीं न कहीं एक राजनीतिक मकसद भी पूरा कर रही हैं। इससे आंतरिक प्रतिरोध भी नियंत्रण में रखने में मदद मिलती है।