पुस्तक समीक्षा :कमोवेश सभी कहानियां गोरखपुर की माटी की खुशबू में तर-बतर है

पुस्तक समीक्षा :कमोवेश सभी कहानियां गोरखपुर की माटी की खुशबू में तर-बतर है

उमेश कुमार सिंह——— गुरु गोरखनाथ जैसे महायोगी और महाकवि के नगर गोरखपुर के किस्से बहुत हैं। गुरु गोरख के ही किस्से इतने सारे हैं कि पूछिए मत। लखनऊ जैसे शहरों को अगर अपवाद मान लें तो ज्यादातर शहरों में कविशायर गली-गली मिल जाएंगे पर कथाकार कम ही मिलेंगे। अलग बात है कि गोरखपुर में प्रेमचंद से भी पहले मन्नन द्विवेदी गजपुरी के उपन्यास रामलाल और कल्याणी मिलते हैं। खंड काव्यकविताएंनिबंध और कुछ जीवनी भी। ईदगाहपंच परमेश्वररंगभूमि जैसी कई कालजयी रचनाएं प्रेमचंद ने गोरखपुर में ही लिखीं। पहले उर्दू में फिर हिंदी में। प्रेमचंद के बाद पांडेय बेचैन शर्मा उग्र की कहानियां मिलती हैं। डायमंड बुक्स द्वारा प्रकाशित पुस्तक कथा गोरखपुर 6 भागों में प्रकाशित हुई है। जिसके लेखक दयानंद पाडेय है। दयानंद पाडेय के 13 उपन्यास, 13 कहानी-संग्रह समेत कवितागजलसंस्मरणलेखइंटरव्यूसिनेमा सहित दयानंद पांडेय की विभिन्न विधाओं में 75 पुस्तकें प्रकाशित हैं। दयानंद पांडेय के उपन्यासकहानियोंकविताओं और गजलों का विभिन्न भाषाओँ में अनुवाद भी प्रकाशित हुआ है।

दयानंद पांडेय के अनुसार कथा-गोरखपुर की कहानियां आप के दिल की घाटियों में संतूर की तरह बजती हैं या नहींमेरे लिए यह जानना दिलचस्प होगा। हांकहानियों का क्रम लेखक के जन्म-दिन और वर्ष के हिसाब से तय किया गया है।

डायमंड बुक्स के चेयरमैन नरेन्द्र वर्मा के अनुसार गोरखपुर अपनी रचनात्मकता के लिए सदैव याद किया जाता है उसी गोरखपुर की कहानी विधा को प्रस्तुत करने का महती कार्य श्री दयानंद पाडेय ने कथा-गोरखपुर’ के माध्यम से किया है। यह शृंखला हिन्दी साहित्य से प्रेम करने वाले पाठकों के लिए अद्भुत संकलन है मैं उनका हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।

कथा-गोरखपुर की खास खासियत यह है कि कमोवेश सभी कहानियां गोरखपुर की माटी की खुशबू में तर-बतर हैं। इन कथाओं में गोरखपुर की माटी ऐसे बोलती है जैसे मां बोलती है। भोजपुरी का खदबदाता मानस इन कथाओं की बड़ी ताकत है। एक से एक अद्भुत प्रेम कथाएं हैं। परिवार के बीच खदबदाती और सामाजिक कथाओं का कसैलापन कथा-गोरखपुर की कहानियों के फलक पर अपने पूरे पन में उपस्थित हैं।

गोरखपुर की कहानियों में एक बड़ा और खास फर्क यह है कि गोरखपुर की कहानियां अपनी जमीन नहीं छोड़तीं। आज के युवा कथाकार भी भले कहीं रहेंकुछ भी करें पर अपना खेतअपना मेड़ और अपनी माटी नहीं छोड़ते। नहीं छोड़ते माटी की सुगंध। माटी का प्यारमाटी की संवेदना और विपन्नता अनायास छलकती रहती है। भोजपुरी का खदबदाता मानस इन कथाओं की बड़ी ताकत है। एक से एक अद्भुत प्रेम कथाएं हैं। परिवार के बीच खदबदाती और सामाजिक कथाओं का कसैलापन कथा-गोरखपुर की कहानियों के फलक पर अपने पूरे-पन में उपस्थित है।

कथाओं से बड़ा फलक रचती यह कहानियांकभी न छोड़े खेत वाली बात को बखूबी रेखांकित करती हैं। माटी का प्यारमाटी की संवेदना और विपन्नता अनायास छलकती रहती है। भोजपुरीभोजपुरी का भाववह जीवन लगातार लिपटता मिलता है। एक से एक नायाब कहानियां हैं इस कथा-गोरखपुर में। गोरखपुर की माटी की महक इन कथाओं में महकती,ग मकती और इतराती हुई इठलाती मिलती है। पढ़िए आप भी इन कथाओं को और इठला कर चलिए यह कहते हुए कि आप ने कथा-गोरखपुर की कहानियां पढ़ी हैं। रियाज खैराबादी याद आते हैं:

जवानी जिन में गुजरी है,  वो गलियां याद आती हैं

बड़ी हसरत से लब पर जिक्रे गोरखपुर आता है। 

 एवी के न्यूज सर्विस
Umesh Kumar Singh

Editor | avknewsservices.com

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