- October 23, 2024
अब वो बात कहाँ….. – अतुल मलिकराम (लेखक और राजनीतिक रणनीतिकार)
रोहित धोलिया — एक रोज मेरा किसी काम से जाना हुआ, घर लौटते हुए शाम हो गई। मैं घर लौट ही रहा था कि दूर किसी चाय की दुकान पर एक पुराना गाना सुनाई दिया। गाने के बोल मेरे कानों में पड़े तो एक पल के लिए मैं जवानी के उस समय में पहुँच गया जब मैं गाने सुनने का बड़ा शौकीन हुआ करता था। लेकिन कुछ ही देर में वापस आज की दुनिया में लौट आया। घर लौटा तो देखा मेरी बिटिया अपने मोबाईल फोन में किसी एप पर गाने सुने रही है। उसे देख कर मेरे मन में खयाल आया कि एक वो जमाना था जब रेडियो और रिकॉर्ड्स पर गाने सुनने के लिए बड़ी मशक्कत करनी पड़ती थी और एक आज का दौर है जब केवल एक क्लिक पर ही दुनियाभर का संगीत मौजूद है। लेकिन जो मिठास उस पुराने दौर में थी वो आज कहीं नहीं मिलती…….
गाने सुनने का यह शौक मुझे शायद विरासत में मिला था। मुझे आज भी याद है बचपन में मेरे दादाजी के पास एक ग्रामोफोन हुआ करता था। जिस पर वे गाने चलाया करते थे। उस समय संगीत सुनना एक रस्म की तरह हुआ करता था। जब भी कोई नया गाना सुनना होता था तो, ग्रामोफोन को बड़ी एहतियात से सेट किया जाता था। कांच का डिस्क निकाला जाता, उसकी सफाई की जाती, और फिर सुई को बड़ी सावधानी से रिकॉर्ड पर रखा जाता। ग्रामोफोन का वो धीमा घूमना, और सुई का डिस्क पर आकर सुरों को निकालना। बचपन की मासूमियत में यह सब बड़ा ही जादुई लगता था उस संगीत में एक अलग ही संतुष्टि थी। वो संगीत महज कानों तक नहीं बल्कि दिल तक पहुंचता था। हालाँकि वह ग्रामोफ़ोन आज भी है लेकिन अब वह घर का सजावटी सामान बन चुका है।
समय बदला तो रेडियों का दौर आया, वह दौर भी बड़ा अनूठा था। मैं और मेरे दोस्त हर शाम फरमाइशी गानों का कार्यक्रम सुनने के लिए झुंड बना कर बैठ जाया करते थे। रेडियो पर बजने वाले गानों के साथ ही कार्यक्रम के प्रस्तुतकर्ताओं की बातचीत, उनकी शेरो-शायरी, और गीतों के पीछे की कहानियां सब मिलकर संगीत का आनंद कई गुना बढ़ा देती थीं। और कभी हमारा फरमाइशी गीत हमारे नाम के साथ बज गया, तो ख़ुशी सातवें आसमान पर पहुँच जाती थी।
समय बदला तो कैसेट्स और टेप रिकॉर्डर्स आ आए। अब लोग अपने पसंदीदा गानों को रिकॉर्ड कर सकते थे और उन्हें कहीं भी और कभी भी सुन सकते थे। इन कैसेट्स की भी अपनी यादें हैं। अपने पसंदीदा गानों को कैसेट में रिकॉर्ड करवाना, दोस्तों के साथ कैसेट्स का आदान-प्रदान भी अलग अनुभव था। धीरे-धीरे कैसेट्स की जगह सीडी और डीवीडी ने ले ली और फिर पेन ड्राइव आई। इन सभी साधनों में ढेर सारे गाने संभाल कर रखे जा सकते थे। साथ ही अपने पसंदीदा गाने देखे भी जा सकते थे।
समय के साथ-साथ दौर बदलता गया और नई-नई तकनीक आई, तो गानों को किसी डिवाइस में स्टोर करने की जरुरत भी ख़त्म हो गई। यूट्यूब और मोबाईल एप जैसे माध्यमों से संगीत सुनना आसान तो हो गया लेकिन मन-पसंद गानों को सुनने का जो उत्साह था वो ख़त्म हो गया। इन तकनीकों ने हमारे लिए संगीत की उपलब्धता तो आसान बना दी लेकिन इस उपलब्धता में गानों की वो मिठास कहीं खो गई। आज हमारे लिए कोई भी गाना केवल एक क्लिक पर उपलब्ध है। आप चाहे जहाँ भी हों दुनियाभर का हर संगीत आपकी जेब में ही है। लेकिन पुराने समय का वो रोमांच और संतोष, जो सुई से निकलते सुरों में था, वो अब केवल सिर्फ यादों में ही रह गया……..