- May 6, 2023
भारत-पाकिस्तान के संबंध: एससीओ की बैठक “रिश्ते सुधारने” में नाकाम
पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो बीते 2 सालों में भारत आने वाले पहले बड़े अधिकारी हैं. भारत-पाकिस्तान के संबंध तो 1947 में आजाद होने के बाद से ही कभी बहुत अच्छे नहीं रहे, लेकिन 2019 में कश्मीर में भारतीय सैनिकों पर हमले के बाद दोनों देशों के बीच बातचीत बिल्कुल बंद है. भारत प्रशासित कश्मीर में इस्लामी चरमपंथियों को समर्थन का आरोप लगाने वाले भारत ने इसके लिए भी पाकिस्तान को दोषी ठहराया.
भारत और पाकिस्तान कश्मीर के पूरे इलाके पर दावा करते हैं, लेकिन दोनों के नियंत्रण में इसका थोड़ा-थोड़ा हिस्सा है. 2019 में भारत ने कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर दिया, जिसके बाद पाकिस्तान की नाराजगी और बढ़ गई.
टकराव के इन मुद्दों के बावजूद पाकिस्तानी विदेश मंत्री के भारत आकर शंघाई कॉपरेशन ऑर्गनाइजेशन (एससीओ) की बैठक में शामिल होने को एक सकारात्मक बदलाव के रूप में देखा गया. हालांकि, इसके साथ ही यह मौका इन पड़ोसियों के बीच रिश्ते सुधारने में नाकाम रहा.
बिलावल भुट्टो निश्चित रूप से अपने भारत दौरे के राजनीतिक निहितार्थों को लेकर सावधान थे. पाकिस्तान में उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी इमरान खान ने पहले ही उन पर “कश्मीर मुद्दे” पर समझौता करने का आरोप लगाया है. गोवा के लिए रवानगी से पहले बिलावल भुट्टो ने ट्विटर पर लिखा, “मैं एससीओ के विदेश मंत्री परिषद में पाकिस्तान के प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहा हूं. इस बैठक में जाने का मेरा फैसला एससीओ चार्टर के लिए पाकिस्तान की प्रतिबद्धता का उदाहरण है. मैं साथी देशों के समकक्षों के साथ रचनात्मक बातचीत के इंतजार में हूं.”
निश्चित रूप से पाकिस्तान के लिए भारत “साथी देशों” में नहीं है, इसलिए भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर के साथ भुट्टो की कोई द्विपक्षीय बातचीत नहीं हुई.
2001 में शंघाई कॉपरेशन ऑर्गनाइजेशन की नींव मध्य एशियाई देशों के बीच सुरक्षा और आर्थिक मुद्दों पर सहयोग के लिए रखी गई थी. पाकिस्तान का प्रमुख सहयोगी देश चीन इसका नेतृत्व कर रहा है, जबकि भारत, पाकिस्तान, कजाखस्तान, किर्गिस्तान, रूस और उज्बेकिस्तान भी इस समूह के सदस्य हैं.
द्विपक्षीय बातचीत नहीं हुई
पाकिस्तान की गरीबी उन्मूलन और सामाजिक सुरक्षा मंत्री शाजिया मारी ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, “एससीओ एक अहम क्षेत्रीय फोरम है और पाकिस्तान 2017 से इसका पूर्ण सदस्य है. हमने एससीओ की सभी जरूरी बैठकों में हिस्सा लिया है, ताकि क्षेत्रीय शांति, समृद्धि और विकास में योगदान दे सकें. बैठक में विदेश मंत्री की मौजूदगी पाकिस्तान के हितों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगी.” इसके साथ ही मारी ने कहा, “गोवा में एससीओ की बैठक में पाकिस्तान की हिस्सेदारी भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय संपर्क नहीं है. यह बैठक बहुपक्षीय संदर्भ में हो रही है, जिससे कि पाकिस्तान अपनी प्रतिबद्धता पूरी करे.”
क्या भारत और पाकिस्तान कर पाएंगे ऐसी दोस्ती
सिंगापुर की नेशनल यूनिवर्सिटी में इंस्टिट्यूट ऑफ साउथ एशियन स्टडीज के रिसर्च फेलो अमित रंजन का मानना है कि भारतीय विदेश मंत्री के साथ बिलावल भुट्टो की सीधी मुलाकात के लिए यह सही समय नहीं है. रंजन ने डीडब्ल्यू से कहा,”भुट्टो-जयशंकर की मुलाकात के लिए इस समय सहायक वातावरण नहीं है. जब तक इस तरह का राजनीतिक वातावरण तैयार ना कर लिया जाए, भारत और पाकिस्तान को बातचीत करते देखना मुश्किल है. यह मौका अब हाथ से जा चुका है.”
भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत को बहाल करने के लिए सहायक वातावरण की जिम्मेदारी सिर्फ पाकिस्तान पर नहीं है. भारत ने कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म कर दिया है. ऐसे में पाकिस्तान की किसी भी सरकार को भारत से बातचीत करने पर घरेलू राजनीतिक मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा.
इस्लामाबाद में राजनीतिक विश्लेषक मोशर्रफ जैदी का कहना है, “पाकिस्तान के लिए भारत से एक सुरक्षित दूरी बनाना जरूरी है. भारत पाकिस्तान से SCO की बैठक में बातचीत के इंतजार में नहीं था. जब तक भारत कश्मीर पर अपनी नीति नहीं बदलता, तब तक कोई बड़े बदलाव की उम्मीद नहीं है.” जैदी ने यह भी कहा, “यह दौरा बातचीत शुरू करने का मौका नहीं था, क्योंकि भारत लगातार पाकिस्तान को सजा देने और नुकसान पहुंचाने के बारे में सोचता है.”
बिलावल भुट्टो ने शुक्रवार को कहा, “बातचीत के लिए सहयोगी वातावरण बनाना” भारत की जिम्मेदारी है. इसके साथ भुट्टो ने यह भी कहा कि 2019 में कश्मीर में भारत के कदमों ने “वातावरण को सचमुच बिगाड़ दिया और अब यह भारत पर है कि वह ऐसा वातावरण बनाए, जिसमें बातचीत हो सके.”
पाकिस्तान की राजनीतिक और आर्थिक मुश्किलें
हालांकि, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कश्मीर को लेकर पाकिस्तान की मांगों पर ध्यान देंगे, इसकी कम ही उम्मीद है. भारत आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है, जबकि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था ध्वस्त होने के कगार पर है. ऐसे में पाकिस्तान से भारत किसी भी तरह की बातचीत के मूड में नहीं दिखता. रंजन का कहना है, “फिलहाल आर्थिक परिस्थितियों के कारण पाकिस्तान को भारत की जरूरत पहले से कहीं ज्यादा है.”
भारत के साथ संबंध सुधरें, तो यह सीमित ही सही, लेकिन जरूरी आपसी कारोबार का रास्ता खोल सकता है, जो पाकिस्तान के लिए बहुत फायदेमंद होगा. हालांकि, मुस्लिम बहुल देश अप्रैल 2022 में पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को सत्ता से हटाए जाने के बाद सत्ता संघर्ष में व्यस्त है. सत्ताधारी गठबंधन पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट और इमरान खान की तहरीक-ए-इंसाफ के बीच चुनाव की तारीखों को लेकर चल रहा संघर्ष किसी नतीजे पर पहुंचता नहीं दिख रहा है.
भारत के विदेश मंत्रालय में एक वरिष्ठ अधिकारी ने डीडब्ल्यू से कहा, “पाकिस्तान में राजनीतिक उलझन द्विपक्षीय बातचीत के लिए उचित वातावरण मुहैया नहीं करा सकती. भुट्टो के दौरे पर कोई बातचीत नहीं होगी.”
पाकिस्तान में भारत के पूर्व उच्चायुक्त अजय बिसारिया भी इस राय से सहमत हैं. उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, “बिलावल भुट्टो भारत तो आए हैं, लेकिन द्विपक्षीय मोर्चे पर किसी कूटनीतिक पहल के मामले में उनके हाथ पीछे बंधे हुए हैं. पाकिस्तान की घरेलू राजनीति उन्हें किसी बड़े रास्ते पर नहीं चलने देगी.”
बिसारिया ने इसके साथ ही यह भी कहा, “इसके बाद भी यह सच है कि उनका कांफ्रेंस के लिए भारत आना अहम है. भारत और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों के बीच शिष्टाचार की एक बातचीत भी भविष्य में दोनों देशों में चुनाव के बाद बातचीत की जमीन तैयार कर सकती है.”
कुछ नहीं से कुछ अच्छा
भुट्टो भले अपनी भारत यात्रा से बहुत कुछ हासिल नहीं कर पाए, लेकिन विदेश नीति के जानकारों का कहना है कि यह दौरा पूरी तरह से बेकार भी नहीं है. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और विदेश नीति के विशेषज्ञ अमिताभ मट्टू ने डीडब्ल्यू से कहा, “भुट्टो के भारत दौरे का मौका और उनके साथ आने वाले पत्रकारों को भारत का वीजा देने से रोशनी की एक चिंगारी जली है. हालांकि, यह द्विपक्षीय संबंधों में चल रहे अंधेरे को दूर करने के लिए पर्याप्त नहीं है.”
पाकिस्तान में भारत के पूर्व राजदूत टीसीए राघवन भी इस राय से सहमत हैं. उनका कहना है कि भुट्टो का दौरा कोई द्विपक्षीय प्रगति नहीं लाएगा और इसे भारत और पाकिस्तान दोनों जगह केवल SCO के संदर्भ में ही देखा जा रहा है. राघवन ने डीडब्ल्यू से कहा, “अगर किसी को सकारात्मकता ढूंढनी है, तो इसमें यह देखना चाहिए कि पाकिस्तान के बैठक में शामिल न होने की तुलना में यह अच्छा रहा. फिलहाल पाकिस्तान की स्थिति ऐसी नहीं है कि वह भारत के मुद्दे पर कोई कदम बढ़ाए.”
(DW.COM)