अकेले उन रास्तों में वह सहम सी गई थी — मंजू धपोला :: चाह नहीं है अब मुझको पायल रावल

अकेले उन रास्तों में वह सहम सी गई थी — मंजू धपोला :: चाह नहीं है अब मुझको    पायल रावल

अकेले उन रास्तों में वह सहम सी गई थी — मंजू धपोला

कपकोट, बागेश्वर (उत्तराखंड)

अकेले उन रास्तों में वह सहम सी गई थी।
वह चार थे और बेचारी अकेली खड़ी थी।।

बेदर्द है जमाना सुना था उसने।
लग रहा था वह बेदर्दी देखने वाली थी।।

कोमल से हाथो को कस के पकड़ा था उन जालिमों ने।
और वो बस दर्द से वह चीख रही थी रो रही थी।।

शर्म का पर्दा उठ रहा था।
और वो बेबस किसी के इंतजार में पड़ी थी।।

दुपट्टा फाड़कर मर्दानी दिखा रहे थे, वह कुछ बेदर्द लोग।
हद पार उन्होंने की, दुनिया उन्हें बेशर्म बता रही थी।।

निर्दोष हूं मैं, निर्दोष हूं मैं बस यही चिल्ला रही थी।
गिर रही थी और फिर खुद संभल रही थी।

तमाशा देख रहे थे कुछ लोग इस खौफनाक मंजर का।
और वो बेबस अकेली ज़माने को देख रही थी।।
—————————–

चाह नहीं है अब मुझको — पायल रावल

चोरसौ, गरुड़ (बागेश्वर, उत्तराखंड)

चाह नहीं है अब मुझको, कहलाऊँ मैं सीता जैसी।
अब तो बस उड़ना चाहती हूं, बिल्कुल कल्पना जैसी।।

फिर क्यों बनूं मैं द्रौपदी जैसी।
कहां बचा है कोई अब कृष्ण जैसा।।

अब तो बस लड़ना चाहूं, लड़ाई मैरी कॉम जैसी।।
चाह नहीं हैं अब मुझको, उपमा मिले गाय जैसी।

अब तो मैं बन के दिखाऊं, शान से किरण बेदी जैसी।।
फिर क्यों बनूं सावित्री जैसी, कौन बचा है सत्यवान अब।

अब तो बस लिखना चाहूँ, विचार सरोजिनी नायडू जैसी।।
चाह नही है अब मुझको, जेवर से मैं लद जाऊं।

अब तो बस जीना चाहूँ, आत्मनिर्भर स्वावलंबी जिंदगी ऐसी।।

चरखा फीचर

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