- July 27, 2017
मेरी अर्थी तुमने सजाई , कल तुम्हारी भी सजेगी—शैलेश कुमार
शुभप्रभात –
-एक ठूंठ पेड़ ने कहा –आज मेरी हालत तुमने बनाई , कल तुम्हारी भी बनेगी। कुल्हाड़ी तुमने चलाई, दर्द तुम्हें होगा , मेरी अर्थी तुमने सजाई , कल तुम्हारी भी सजेगी।
रोक लो, अगर चाहो तो , मेरी प्रति दुष्ट भावना ,अगर मुझे हंसने दोगे , कल तुम भी झूमोगे।
दूषित पर्यावरण और कलुषित लोग –
वृक्ष पर आज कल सभी मेहरवान है। मेहरवान इतने है की एक पिलपिले से पौधा रोपने के लिए मोहल्लावासी को इकट्ठा कर लेते हैं। एक पौधा पर -कैमरा , वीडियो, चैलनवाला उसी तरह इकठा हो जाते है जैसे की मुनिया की रेप हुआ हो।
फिर उस पौधा को क्या हुआ ,बेचारे किस हालात में है कोई पूछने वाला नहीं जैसे की हारे हुए विधायक और पार्टी की हालात होती है।
हो भी क्यों नहीं , एक पौधा रोपने के लिए अंतर्राष्ट्रीय कोष ,राष्ट्रीय कोष की व्यवस्था होती है।
बेचारे पौध-कोष को लूटना भी तो है और लूटेगा कौन ? धूर्त और चालाक ही तो कामयाबी की सीढ़ी चढ़ता है। जितने भी धूर्त और लफंडर है वे समाज कल्याण के लिए आगे आते है। आना भी चाहिए। कोई सपूत तो हो जो भक्ति का काम करे,शक्ति तो आ ही जायेगी।
मनुष्य की प्रवृति देखिये ? निकम्मे बनिया की तरह। उस बोरे का धान, उस बोरे में डालेगा।
प्रकृति से खिलवाड़ कर फिर उसे बचाने की कोशिश में जुट जाएगा। बचाने की कोशिश तब करता है जब उसे पता चलता है की इस कदम से मुझे ही हानि है। भयंकर हानि है।
थोड़ी सी लाभ के लिए जड़ -मूल से बर्बाद कर देगा।
जैसे बाल का काला करना। जब बाल प्रकृति रूप से काला रहेगा तो हजारों उत्पाद उसे काला करने का लिए आएगा। लेकिन जब बाल प्रकृति रूप से सफ़ेद हो जाएगा तो सभी उत्पाद ऐसे लुप्त हो जाएगा जैसे की छिपकिली के पूँछ ।
पर्यावरण का भी यही हालात है। बेचारे पर्यावरण। अपने ही अस्तित्व को खत्म कर विकास की ढोंग रचना उचित है।
विश्व ने क्या विकास कर लिया — केवल लड़ाई ,दंगा ,फसाद की सामग्रियां तैयार कर उसे बेचना ही विकास है।
लड़ाई -दंगा तो महाभारत और रामायण काल में ही हुआ। क्या कोई जंगल साफ़ कर रास्ता बनाया गया। पहाड़ तोड़ा गया।
उस समय का विकास देखिये। आकाश मार्ग। धुल और धुंआ से मुक्त मार्ग। दोनों पक्ष आकाश से आकाश में , धरती से धरती पर ही लड़ाई करते थे।
भले ही यह किवदंती हो लेकिन विकास के लिए बिना धुँआ वाला विमान निर्माण किया जाता तो बातें समझ में आती लेकिन यह विकास तो वैसे ही है जैसे बेटी मार कर बेटा पैदा करना की प्रथा ??
एक बार जंगल काटों और फिर लगाओ ,मियाँ इसी में मारा गया। मारा जाएगा ही क्योंकि मियाँ के पास सिर्फ कुल्हाड़ी और फावडा है।
मैं ऑफिस से निकल कर बाजार (बहादुरगढ़ ) जा रहा था। नाले के किनारे एक बुजुर्ग पीपल का पौधा रोप रहे थे। मुझे बुरा एहसास क्योंकि मेरे पास उस वक्त कैमरा और न मोबाइल था।
एक बुजुर्ग भी पौधा रोपण में लगे है लेकिन कोई फोटो खींचने वाला नहीं। कोई ढमक -ढोल नहीं। निराकार,निर्लिप्त और निस्वार्थ पर्यावरण बचाने में लिप्त है।
ऐसे ही लिप्त व्यक्ति का योगदान किसी भी समस्याओं को बचाने के लिए निरंतर सहयोग में है। ढोल -नगाड़े से समस्या समाधान नहीं होता है।