- July 7, 2016
कृषि क्षेत्र में यंत्रीकरण और उपकरणों का समावेश जरूरी :- राधा मोहन सिंह
कृषि मंत्री ने कहा कि कृषि मंत्रालय इस दिशा में सक्रिय है ताकि देश के विभिन्न कृषि जलवायु क्षेत्रों में छोटे-बड़े सभी प्रकार के किसानों को इसका लाभ मिल सके। उन्होंने माना कि देश में अधिकांश भूमि जोत छोटी होने के कारण कृषि उपकरणो का व्यवसायिक उपयोग आर्थिक रूप से फायदेमंद नहीं है लेकिन उन्होंने आगे कहा कि सक्षम कस्टम हायरिंग केन्द्रों के माध्यम से कृषि के काम के लिए किसानो को कृषि मशीनरी उपलब्ध हो रही है, और यह एक अच्छा प्रयास है।
श्री सिंह ने कहा कि इस सम्मेलन का उदेश्य है की कृषि मशीनरी निर्माताओं, अनुसंधान एवं विकास में लगे वैज्ञानिको और कृषि प्रसार में कार्यरत संस्थाओं के बीच तालमेल बिठाकर नवीनतम अविष्कारों का व्यवसायीकरण कर इन्हें किसानो तक पहुचाया जा सके।
कृषि मंत्री ने इस अवसर पर जानकारी दी कि देश में वर्तमान में, ट्रैक्टर का उपयोग जुताई के लिए कुल क्षेत्रफल के 22.78 प्रतिशत क्षेत्र पर और बुआई हेतु कुल क्षेत्रफल के 21.30 प्रतिशत क्षेत्र पर किया जा रहा है। मशीनीकरण अंगीकरण का स्तर कटाई एवं गहाई कार्य हेतु 60 – 70 प्रतिशत तक देखा गया है, सिंचाई में 37 प्रतिशत, पौध संरक्षण में 34 प्रतिशत और बोने और रोपण में लगभग 29 प्रतिशत पाया गया है परन्तु धान प्रत्यारोपण के मामले में, मशीनीकरण का स्तर 10 प्रतिशत से भी कम है। इस प्रकार, विभिन्न कृषि कार्यों मे मशीनीकरण की भारी गुंजाइश है।
श्री सिंह ने कहा कि मशीनीकरण में उच्च स्तर प्राप्त करने के लिए फार्म पावर की उपलब्धता का वर्तमान स्तर जो 1.84 किलोवाट प्रति हेक्टयर है, उसे 12 वीं पंचवर्षीय योजना के अंत तक कम से कम 2.0 किलोवाट प्रति हेक्टेयर तक अधिक गति के साथ बढ़ाने की जरूरत है। यह विभिन्न ऊर्जा स्रोत और उसके अनुकूल कृषि औजारो की पुनर्स्थापना के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ने इस अवसर पर बताया कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द मोदी की दृष्टि उत्पादकता बढ़ाने के लिए प्रयोगशाला और जमीनी हकीकत के अंतर को कम करने, कृषि के क्षेत्र में एक सतत आधार पर नई प्रौद्योगिकियों का उपयोग करने और तीव्र आर्थिक विकास के लिए घरेलू जरूरतों को पूरा करने के बाद अग्रणी कृषि जिंसों के निर्यात में वृद्धि करने की है।
इस अवसर पर सचिव, कृषि सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग, आईसीएआर के वैज्ञानिक, अधिकारी एवं कृषि विश्वविद्यालयों के कुलपतियों भी मौजूद थे।