सिंहस्थ-2016 : सतरंगी स्वरूप कला-उत्सव

सिंहस्थ-2016 : सतरंगी स्वरूप कला-उत्सव

राजेश पाण्डेय—————————————-मोक्षदायिनी क्षिप्रा और उसकी पवित्र आभा में फैले सिंहस्थ-2016 के पवित्र और आध्यात्मिक मेले में एक साथ 6 मंच पर कलाओं के वैविध्य का सतरंगी स्वरूप कला-उत्सव में प्रकट करने का सुन्दर प्रयास हो रहा है।

कला-उत्सव की सबसे खूबसूरत बात इस तथ्य में शामिल है कि यहाँ होने वाली प्रस्तुतियों में भगवान शिव, श्री कृष्ण और देवी दुर्गा की सनातन कथाओं से निर्मित कला के संसार को अभिव्यक्त किया जा रहा है।

इन प्रस्तुतियों में इन तीनों ही देवधारणाओं की स्थानीय अभिव्यक्तियों को कला के वैविध्य में अनुभूत कर सकते हैं। इन अलग-अलग मंचों पर देश के पृथक-पृथक भागों से पधारे कलाकारों ने अपने ओज से इन तीनों ही देव-धारणाओं को कला की सन्निधि से अपने भाव को प्रकट किया है।

संस्कृति विभाग द्वारा कला उत्सव के चौथे दिन भरतमुनि मंच पर कला उत्सव का शुभारम्भ देश के सुप्रसिद्ध भजन गायक श्री अनूप जलोटा के भजन गायन से हुआ। भजन प्रस्तुति के बाद कोलकाता से पधारे पण्डित दीनानाथ मिश्र ने अपने गायन से समा बाँध दिया।

गायन प्रस्तुति के बाद उज्जैन के संस्कार मंच द्वारा रामलीला के विभिन्न प्रसंगों में कैकई प्रसंग, मंथरा कैकई संवाद एवं राम वनगमन पर केन्द्रित रामलीला की प्रस्तुति दी गयी। रामलीला प्रसंगों पर मुग्ध दर्शकों ने भरतमुनि मंच की अन्तिम प्रस्तुति के रूप में हमारे प्रदेश की युवा गायिका सुश्री मुस्कान चौरसिया के भक्ति संगीत के गीतों का आनन्द लिया।

त्रिवेणी संग्रहालय पर आज प्रस्तुति का शुभारम्भ प्रदेश के सुप्रतिष्ठित क्लेरियोनट वादक श्री कपूर नागर के वादन से हुआ। इसके बाद भोपाल से पधारी लोक गायिका सुश्री रमा दुबे द्वारा बघेली लोक गायन की प्रस्तुति दी गई। त्रिवेणी संग्रहालय पर कला-उत्सव का समापन उज्जैन शहर की सुप्रतिष्ठित बाँसुरी वादिका श्रीमती स्मिता शेण्डे रेड्डी के बाँसुरी वादन से हुआ।

मंगलनाथ जोन के कालिदास मंच में बनारस के कलाकार श्री सत्यवाश प्रसाद ने मृदंगम वादन किया। उनके बाद उड़ीसा के श्री जगन्नाथ बेहरा ने हरि कथा की प्रस्तुति दी। गुवाहाटी के सत्रिय नृत्य में सुश्री दीपज्योति एवं श्री दीपंकर ने अनूठा प्रदर्शन किया।

भोज मंच पर कला-उत्सव का आरंम्भ छत्तीसगढ़ की ख्यात लोकगायिका सुश्री रेखा देवार के भरथरी गायन से हुआ। इसके बाद आंध्रप्रदेश का गरगलू नृत्य, राजस्थान का कालबेलिया नृत्य, कर्नाटक राज्य के वीरगासे नृत्य की प्रस्तुति के साथ ही छत्तीसगढ़ बस्तर की मुरिया जनजाति के काकसार एवं गेड़ी नृत्य की प्रस्तुति हुई।

कार्यक्रम की अगली प्रस्तुति के रूप में पुडुचेरी का कालीअट्टम नृत्य, तेलंगाना राज्य के मथुरी नृत्य, तमिलनाडु राज्य के डमी हॉर्स एवं करगम नृत्य की प्रस्तुति हुई। नवीं प्रस्तुति के रूप में छत्तीसगढ़ राज्य के पंथी नृत्य एवं केरल राज्य के सिंगारी मेलम नृत्य की प्रस्तुति दी गई। समापन तमिलनाडु के वाद्य वादन की सुमधुर ध्वनि और उनके ताल पर एकाग्र पेरिया मेलम नृत्य से हुई।

भर्तृहरि मंच पर कला उत्सव की शुरूआत हरियाणा के कलाकारों द्वारा बीन जोगी नृत्य से साँप को बामी से निकालने की कला और नाग पंचमी के अवसर पर नागों के दर्शन की कला प्रस्तुति से हुई। अगली प्रस्तुति जम्मू कश्मीर के लोक कलाकारों द्वारा रूफ नृत्य की थी।

राजस्थान के कलाकारों द्वारा भवई नृत्य की प्रस्तुति दी गई। पंजाब के कलाकारों द्वारा मलवई गिद्दा नृत्य के बाद उत्तराखण्ड के कलाकारों ने घरियासी नृत्य प्रस्तुत किया। हिमाचल प्रदेश के कलाकारों ने लम्बड़ा नृत्य प्रस्तुत कर साहूकारी परंपरा के प्रतिरोध का चित्रण किया। इसके पश्चात् राजस्थान के प्रसिद्ध लोकनृत्य कालबेलिया की प्रस्तुति हुई। इस मंच पर कला-उत्सव का समापन हरियाणा के श्री ईश्वर शर्मा के भक्ति गायन से हुआ।

विक्रमादित्य मंच में कला-उत्सव का आरंभ भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद् नई दिल्ली द्वारा आमंत्रित भूटान के पारम्परिक नृत्यों से हुई। इन नृत्यों में आरंभ में स्वागत नृत्य प्रस्तुत किया गया। जोएनपा लेग्सो नाम के इस प्रदर्शन में कलाकारों ने अतिथियों और दर्शकों का अभिनंदन किया।

उन्होंने जुंगोरा, थुनेपा पुएन्जी छाम, लैयब डांस, पा छाम, ल्हाब्जा योंग योंग, ड्रमन्यैन डांस आदि के प्रदर्शन किए। दर्शकों ने सागर बुन्देलखण्ड के सैरा नृत्य का भी आनंद लिया जिसे श्री राजेन्द्र चौबे के ग्रुप ने प्रस्तुत किया।

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