- April 19, 2016
खेती ” कर ” : कर के दायरे में किन्हें लाना है जरूरी?
ईशान बख्शी ———–
कर के दायरे में किन्हें लाना है जरूरी?
► मौजूदा व्यवस्था के तहत जो कंपनियां कृषि क्षेत्र में निवेश कर रही हैं उन्हें कर छूट मिलती है
► 2014-15 में भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने 6,733 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण प्रति हेक्टेयर 1.35 करोड़ रुपये में किया जिसकी वजह से कई लोग करोड़पति बने हैं
► जमीन हस्तांतरण कर दायरे में आता है तो देश में करोड़पतियों की तादाद में होगी बहुत बढ़ोतरी
► ऐसी आमदनी को कर के दायरे में लाने का मतलब यह है कि इससे उन लोगों की राह में बाधा आएगी जो कर चोरी करते हैं
अब आठ राज्यों के किसान ई-कृषि बाजार के जरिए कर सकेंगे व्यापार
राजनीतिक रूप से देखें तो यह मुश्किल है लेकिन खेती से होने वाली आमदनी पर कर लगा कर राज्यों की वित्तीय व्यवस्था को और मजबूत बनाया जा सकता है। कृषि क्षेत्र राज्य का विषय है, ऐसे में खेती से होने वाली आमदनी पर भी कर लगाने का फैसला राज्य के पास ही है। नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनैंस ऐंड पॉलिसी की अर्थशास्त्री कविता राव और डी पी सेनगुप्ता के मुताबिक वर्ष 2007-08 में ही दूसरी आमदनी के साथ-साथ खेती की आमदनी पर कर लगाने से करीब 50,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व जुटाया जा सकता था। यह रकम देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 1.2 फीसदी के बराबर है और इससे राज्य की कमाई करीब 19 फीसदी तक बढ़ी होती।
किसान एक बड़ा वोट बैंक है। इस राजनीतिक अनिवार्यता की वजह से सरकारें इस विवादास्पद विषय को नहीं छूती हैं क्योंकि इससे उन पर किसान विरोधी होने का ठप्पा लग सकता है। किसानों की आत्महत्या से जुड़े मुद्दे इस तरह के फैसले को कमजोर ही बनाते हैं। लेकिन कृषि से जुड़ी आमदनी पर कर लगाने के अपने वाजिब तर्क भी हैं। कुछ लोगों को लगता है कि किसानों को नाराज किए बगैर भी कृषि से जुड़ी आमदनी को कर के दायरे में लाया जा सकता है। इसकी वजह से यह कि अगर खेती की आमदनी को आयकर के दायरे में लाया भी जाता है तो किसानों का एक बड़ा वर्ग खासतौर पर छोटे और सीमांत किसान, कर के दायरे से बाहर रहेंगे क्योंकि उनकी आमदनी, 250,000 रुपये सालाना की बुनियादी छूट सीमा से नीचे ही रहेगी जो भारत के सभी करदाताओं पर लागू है।
बढ़ता दायरा
कितने बड़े किसानों को कर के दायरे में लाया जा सकता है? नैशनल काउंसिल ऑफ एप्लायड इकनॉमिक रिसर्च और मेरीलैंड विश्वविद्यालय द्वारा संयुक्त रूप से कराए गए भारतीय मानव विकास सर्वेक्षण 2011-12 के आंकड़े दर्शाते हैं कि करीब 10.5 फीसदी घरों के पास ही 5 हेक्टेयर से ज्यादा जमीन है। इन घरों में करीब एक-तिहाई लोगों के पास एक मोटरसाइकिल या स्कूटर है, 7 फीसदी लोगों के पास वॉशिंग मशीन और 6 फीसदी के पास कार है। इन्हें कर के दायरे से बाहर करने के तर्क को तार्किक बताना मुश्किल है। इन घरों को कर के दायरे में शामिल करने से कर के दायरे को और बढ़ाने में मदद मिलेगी।
दूसरी बात यह है कि मौजूदा व्यवस्था में कृषि क्षेत्र में निवेश करने वाली कंपनियां भी कर भुगतान से छूट पाती हैं। अपने शोध में राव और सेनगुप्ता ने यह अनुमान लगाया कि 50 से ज्यादा कंपनियों की कृषि आमदनी 2009-10 में 100 करोड़ रुपये से ज्यादा रही और उनकी कुल कृषि आमदनी बढ़कर 31,313 करोड़ रुपये हो गई। यह आंकड़ा भले ही अहम हो लेकिन मुमकिन है कि इसे वास्तविकता से कम आंका गया हो। कई कंपनियों ने अपने परिचालन को एक साथ मिलाया है ऐसे में मुमकिन है कि वास्तविक कृषि आमदनी का खुलासा न किया गया हो या उसका कम अनुमान लगाया गया हो। मसलन कई कंपनियां जो कपास का उत्पादन करती हैं और इसका इस्तेमाल धागे या फैब्रिक बनाने के लिए करती हैं, वे कपास से मिलने वाली समान आमदनी दर्ज नहीं करती हैं। इस तरह खेती पर कर लगाकर उस कॉरपोरेट क्षेत्र को कर के दायरे में लाया जा सकता है जो कृषि क्षेत्र में ज्यादा निवेश कर रही हैं, इससे राज्य के राजस्व में तेजी आएगी।
तीसरी बात यह है कि इस क्षेत्र को मिली कर छूट दरअसल कर में सेंध लगाने वालों को आसान मौका मुहैया कराती है। ऐसे में कृषि से जुड़ी आमदनी पर कर लगाकर इस खामी को दूर किया जा सकता है। इस तरीके से कई गुंजाइश बनती है। कुछ रिपोर्ट के मुताबिक आकलन वर्ष 2014-15 में करदाताओं ने छूट के लिए रिटर्न दाखिल करते वक्त जो कुल कृषि आमदनी की घोषणा की वह 9,338 करोड़ रुपये थी। कई लोगों ने यह अंदाजा लगाया है कि लोग इसका इस्तेमाल दूसरे स्रोत से मिलने वाली आमदनी को छुपाने के लिए करते हैं। शायद इसी वजह से वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कर अधिकारियों को कहा है कि वे ऐसे लोगों के बारे में पता लगाएं जो कृषि से जुड़ी आमदनी का दर्जा पाकर आयकर में सेंध लगाकर गलत इस्तेमाल करते हैं। लेकिन समस्या यह है कि अगर इन खामियों को दूर नहीं किया गया तो यह दिक्कत बरकरार रहेगी। लोग कर का भुगतान न करने का फायदा उठाते रहेंगे जब तक उन पर कर नहीं लगाया गया।
चौथी बात यह है कि कृषि से जुड़ी आमदनी को कर छूट देने का समान तर्क भूमि हस्तांतरण से जुड़ी आमदनी पर भी लगाया गया है। इस वजह से राज्य जमीन की बिक्री से मिलने वाले राजस्व से महरूम रह जाता है। केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के भूमि संसाधन विभाग द्वारा जारी एक परिपत्र के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों की खेती लायक जमीन पर कोई कर देनदारी नहीं होती है। शहर की खेती वाली जमीन को भी कर से छूट मिलती है अगर जमीन का इस्तेमाल भूमि हस्तांतरण की तारीख से दो वर्षों के दौरान खेती के काम के लिए किया जाता है। मौजूदा व्यवस्था के तहत जमीन की कीमतों में तेजी के बावजूद जहां जमीन के एक सौदे से लोग करोड़पति हो जाते हैं, उस पर राज्य कर नहीं लगा सकती है।
करोड़पति बनने की राह पर
भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) ने वर्ष 2014-15 में 1.35 करोड़ रुपये प्रति हेक्टेयर के औसत मुआवजे पर 6,733 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया था। एनएचएआई ने अकेले ही 6,733 करोड़पति बनाने में योगदान दिया। करोड़पतियों की वास्तविक संख्या कम हो सकती है क्योंकि मुमकिन है कि कुछ किसान और भूमि मालिकों ने 1 हेक्टेयर से ज्यादा बिक्री की हो। वर्ष 2015-16 में एनएचएआई ने 10,000 हेक्टेयर का अधिग्रहण करने की योजना बनाई है। यह तो सरकार की महज एक इकाई ने ऐसा किया है। पूरे देश में कुल अधिग्रहीत जमीन की तादाद काफी ज्यादा है। सिर्फ भूमि हस्तांतरण से ही रातोरात हजारों करोड़पति बन जाते हैं और इनमें से ज्यादातर को कोई कर नहीं चुकाना होता। अगर इन सभी लेन-देन को कर के दायरे में लाया जाए तो देश में करोड़पति घरों की तादाद तेजी से बढ़ेगी।
कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज के मुताबिक वर्ष 2013 के 53,017 करोड़पति घरों के मुकाबले 2014 में 63,589 करोड़पति थे। अर्थशास्त्री कहते हैं कि खेती से जुड़ी आमदनी पर कर लगाना सही होगा। जो भी व्यक्ति एक निर्धारित सीमा से ज्यादा कारोबार करता है तो उस पर कर लगाया जाना चाहिए चाहे आमदनी का स्रोत कुछ भी हो। विभिन्न समितियों मसलन 1975 में के एन राज की अध्यक्षता में कृषि कर से जुड़ी समिति और पार्थसारथि शोम के नेतृत्व वाले कर प्रशासन सुधार आयोग ने बड़े किसानों पर कर लगाने की सिफारिश की थी। इस क्षेत्र को कर के दायरे में शामिल करने से न केवल कर आधार का दायरा बढ़ेगा बल्कि ज्यादा कमाई के बावजूद कर न देने वालों पर भी शिकंजा कसेगा।